हिंदी मीडियम आधुनिक समाज पर आधारित एक मजबूत और हल्के दिल वाली फिल्म है, जो अंग्रेजी भाषा से ग्रस्त हमारे देश की हालत दर्शाती है। इरफान खान और सबर कमर एक दिल्ली की दंपति है, जो अपनी बेटी का दाखिला एक उच्च और अंग्रेजी माध्यम विद्यालय में लेने के लिए लम्बा समय बिताते हैं और हर वो आवश्यक काम करते हैं जिससे उनकी बेटी का दाखिला अच्छे विद्यालय में...और देखें
हिंदी मीडियम आधुनिक समाज पर आधारित एक मजबूत और हल्के दिल वाली फिल्म है, जो अंग्रेजी भाषा से ग्रस्त हमारे देश की हालत दर्शाती है। इरफान खान और सबर कमर एक दिल्ली की दंपति है, जो अपनी बेटी का दाखिला एक उच्च और अंग्रेजी माध्यम विद्यालय में लेने के लिए लम्बा समय बिताते हैं और हर वो आवश्यक काम करते हैं जिससे उनकी बेटी का दाखिला अच्छे विद्यालय में हो सके ! आगे क्या होता है वह घटनाओं की एक श्रृंखला है जो परिवार की दशा को दिखाती है ! कम
निर्णय
“ये फिल्म आपको शिक्षित करने से ज़्यादा आपका मनोरंजन करती है ! अगर आप भी अच्छा समय बिताना चाहते हैं तो इसे ज़रूर देखें !”
हमारे देश में अगर आप कोई भी बात गलत बोलते हैं तो आपको माफ़ी मिल जाती है लेकिन अगर आप अंग्रेज़ी गलत बोलते हैं तो आपको गँवार का तबका दे दिया जाता है। दुनिया की कोई भी भाषा आपको न आये तो आपको कुछ नहीं कहा जायेगा लेकिन अगर अंग्रेज़ी नहीं आती तो आपको अनपढ़ समान माना जाता है। कुछ यही बात दर्शाती है फिल्म हिंदी मीडियम !
इरफ़ान खान और सबा कमर स्टारर फिल्म 'हिंदी मीडियम' में वो सबकुछ है, जो एक दर्शक को मनोरजन के लिए चाहिए होता है। अंग्रेज़ी ना बोल पाने और समाज में अपनाये ना जाने की परेशानी को इस फिल्म में दिखाया गया है। इसके साथ ही देश की गरीबी पर भी नज़र डाली गयी है। ये कहानी है राज और मीता बत्रा की जो सरकारी स्कूल से पढ़े हुए लोग हैं। वो अमीर हैं उनके पास किसी चीज़ की कमी नहीं है लेकिन उन्हें अंग्रेज़ी नहीं आती। ये दोनों अपनी बच्ची पिया को अच्छे, बड़े, अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल में पढ़ाना चाहते हैं लेकिन दिल्ली के नर्सरी एडमिशन्स ने सभी की हालत टाइट की हुई है। अब राज और मीता अपनी बेटी का एडमिशन कैसे करवाते हैं या करवा पाते भी है नहीं ये कहानी है।
इस फिल्म ने समजा और हमारे देश के उन अंशों को छुआ है जिनके बारे में हम सभी जानते हैं लेकिन कभी बात नहीं करते। कतराते हैं हम सच बोलने या समझने से। फिल्म में दिखाया गया है कि दुनिया में इंसानियत अभी बाकि है बस वो हर किसी के पास नहीं है और उसे पाने के लिए बहुत ढूँढना पड़ता है। इसके साथ ही बात की गयी है अंग्रेज़ी भाषा की जो अज भी हमारे देश के कई लोगों के लिए हाउआ है।
कोई दूसरे देश का आदमी जब गलत अंग्रेज़ी बोलता है तो उसे कुछ नहीं कहा जाता लेकिन अगर आप इस देश के वासी हैं तो समझ लीजिये कि अंग्रेज़ी सिर्फ भाषा नहीं आपकी क्लास है। अच्छे स्कूल में नहीं पढ़ोगे तो अच्छी कॉलेज में नहीं जाओगे अच्छी नौकरी नहीं पाओगे। यही बात इस हल्की-फुल्की फिल्म के ज़रिये आप तक पहुँचाई जा रही है।
फिल्म में इरफ़ान और सबा के साथ-साथ तनु वेड्स मनु के पप्पी जी यानी दीपक डोबरियाल और एक्ट्रेस अमृता सिंह भी हैं। उनके साथ कई और कलाकार भी हैं और इन सभी ने मिलकर काफी बेहतरीन काम किया है। पाकिस्तान एक्ट्रेस सबा कमर ने इस फिल्म से बॉलीवुड में डेब्यू किया और एक चिंतित माँ के रूप में उनका कम बढ़िया है। इरफ़ान खान इतने बेहतरीन एक्टर कैसे हो सकते और हर बार मुझे इतना इम्प्रेस कैसे कर देते हैं ये समझना और समझाना दोनों ही मुश्किल काम है।
फिल्म का निर्देशन अच्छा है और गाने भी ठीक है। एक साधारण-सी हल्की-फुल्की इस फिल्म को एक बार देखने में कोई बुराई नहीं है। अगर कुछ नहीं तो आपको बस थोड़ी ख़ुशी और मन की शांति ही मिल जाएगी और कुछ अच्छा सीखने को भी मिलेगा। और हाँ, अगर आपको अंग्रेज़ी नहीं आती तो कोई बात नहीं !