'साहेब, बीवी और गैंगस्टर' तिग्मांशु धुलिया की फिल्म फ्रेंचाइजी है। इस सीरीज की पहली फिल्म 2011 में आई थी और इसे ऑडियंस और क्रिटिक्स दोनों ने बहुत पसंद किया था, इसलिए 2013 में इसका सीक्वल 'साहेब बीवी और गैंगस्टर रिटर्न्स' बनाया गया। इसका तीसरा पार्ट 'साहेब, बीवी और गैंगस्टर 3' 27 जुलाई 2018 को रिलीज़ हो रहा है। इस फिल्म में माही गिल, जिमी शे...और देखें
'साहेब, बीवी और गैंगस्टर' तिग्मांशु धुलिया की फिल्म फ्रेंचाइजी है। इस सीरीज की पहली फिल्म 2011 में आई थी और इसे ऑडियंस और क्रिटिक्स दोनों ने बहुत पसंद किया था, इसलिए 2013 में इसका सीक्वल 'साहेब बीवी और गैंगस्टर रिटर्न्स' बनाया गया। इसका तीसरा पार्ट 'साहेब, बीवी और गैंगस्टर 3' 27 जुलाई 2018 को रिलीज़ हो रहा है। इस फिल्म में माही गिल, जिमी शेरगिल, संजय दत्त, चित्रांगदा सिंह और सोहा अली खान काम कर रहे हैं। इसके प्रोड्यूसर तिग्मांशु धुलिया और राहुल मित्रा हैं। कम
निर्णय
“ इस फिल्म में कुछ भी नया मुद्दा नहीं है जो इसे अलग बनता हो इसकी सिक्कवेल से ”
दिल्ली की बरसात की एक खासियत है… अक्सर ऐसा होता है कि बादल घिरते हैं, हवाएं, चलती हैं, बादल गरजते हैं, आप भीगने को तैयार होते हैं, मगर इतनी भी बारिश नहीं होती की सड़क के गड्ढे में पानी भर जाए। लेकिन फिर कभी अचानक से ज़ोरदार बारिश हो जाती है। फिर ऐसी झमाझम बारिश से लड़ते-बचते आप ‘साहेब बीवी और गैंगस्टर 3’ देखने पहुंचते हैं, और वही होता है जो अक्सर दिल्ली की बरसात करती है… ट्रेलर देख के बना माहौल फ़ाख्ता हो जाता है, और फ़िल्म का मज़ा- निल बटे सन्नाटा ! मैंने तिग्मांशु धूलिया को हमेशा, बॉलीवुड के नायाब डायरेक्टर्स में से एक माना है। लेकिन उन्हें बीच-बीच मे कुछ हो जाता है। उन्होंने ‘पान सिंह तोमर’ बनाई, ‘हासिल’ बनाई, ‘साहेब बीवी और गैंगस्टर’ बनाई और बीच मे एकदम से ‘बुलेट राजा’ जैसा कुछ कर बैठे। इस बार भी वो कुछ ऐसा ही कर बैठे हैं। हुआ क्या है, वो बाद में… पहले फ़िल्म की कहानी- ‘साहेब बीवी और गैंगस्टर 3’ राजनीति, ताकत की भूख और वजूद की लड़ाई की बिसात पर बना शतरंज का एक खेल है। इस खेल की रानी हैं माधवी देवी यानी माही गिल। रानी को ताकत चाहिए और उसके लिए राजा को काबू में करना ज़रुरी है, जो माधवी देवी बहुत कायदे से कर रही हैं… राजा साहेब यानी आदित्य प्रताप सिंह (जिमी शेरगिल) को जेल में डलवाकर। मगर आदित्य प्रताप सिंह भी कच्ची मिट्टी के बने तो हैं नहीं, सो पैंतरेबाज़ी कर निकल आते हैं। अब उनका मकसद है सत्ता की ताकत और माधवी देवी, दोनों को मुट्ठी में करना। एक तीसरा किरदार है कबीर उर्फ़ बाबा (संजय दत्त), जो अपने महल से निकाला गया राजकुमार है मगर लंदन में गैंगस्टर (जैसा कुछ) बन चुका है। उसकी हरकतों के नतीजे में उसे सज़ा के तौर पर वापिस भारत डिपोर्ट कर दिया जाता है। लेकिन बाबा के नज़रिए से देखें तो ये सज़ा नहीं मज़ा है क्योंकि इससे, राजा बनने के उसके सपने को पंख मिलते हैं। सहब को माधवी और माधवी को साहेब, अपने बस में चाहिए और साथ में राजनीतिक पावर की भूख तो है ही। कबीर को वापिस चाहिए रजवाड़ा शान, जिससे उसे 20 साल तक बेदखल रखा गया। ययही शतरंज का खेल है। इस खेल को कौन, किस तरह खेलता है और कामयाब होता है, यही ‘साहेब बीवी और गैंगस्टर 3’ की कहानी है। फ़िल्म की कहानी में और भी ढेर सारे किरदार हैं और उन्हें निभाने के लिए कबीर बेदी, दीपक तिजोरी, चित्रांगदा सिंह, सोहा अली खान, नफ़ीसा अली, मतलब सपोर्टिंग कास्ट की पूरी अच्छी खासी भीड़ है। अपने-अपने किरदार में सभी लोग अच्छे हैं। हालांकि सोहा अली खान का किरदार ‘रंजन’, बेवजह ही है। फ़िल्म की पावर-इक्वेशन में रंजना का कोई योगदान नहीं है। ‘साहेब बीवी और गैंगस्टर 3’ ताकत के लालच में इंसानी दिमाग का काला चेहरा दिखाने में कामयाब फ़िल्म है। इस फ़िल्म के किरदार बेहतरीन लिखे गए हैं। मगर ये फ़िल्म ढीली भी यहीं पर है। अपने किरदारों से तिग्मांशु धूलिया का प्यार साफ़ नज़र आता है। लेकिन ये किरदार मिलकर एक ऐसी कहानी नहीं रच पा रहे, जो फ़िल्म की पूरी लंबाई तक दर्शकों को बांध सके। संजय दत्त के किरदार से और बहुत कुछ मसालेदार निकलवाया जा सकता था, मगर उन्हें मीठा बना दिया गया। चित्रांगदा हर फ्रेम में बेहद खूबसूरत हैं, मगर उन्हें सिर्फ मुजरे तक लिमिटेड कर दिया गया। जिमी शेरगिल अपने चॉकलेटी चेहरे के साथ कितने घिनौने लग सकते हैं, ये हमने फ़िल्म ‘मुक्काबाज़’ में देखा है। लेकिन वो यहां साहेब वाला रूटीन काम ही करते रहे। इस फिल्म में एकमात्र उजाले की किरण माही गिल हैं, उलझे हुए इमोशन्स को उन्होंने बहुत सहजता से जिया है। फ़िल्म की कहानी, एक बिखरे तरीके से शुरू होती है जिसे समेटने में ही आधी फ़िल्म बीत जाती है। और बाकी रही सही कसर बेमतलब के गाने पूरी कर देते हैं। ‘साहेब बीवी और गैंगस्टर 3’ के डायलॉग ज़बरदस्त हैं। जिमी शेरगिल का संजय दत्त और माही गिल से सामना, हमेशा कुछ मज़ेदार लेकर आता है। फ़िल्म खुद से कोई ऐसा कारण नहीं देती कि आप इसे जा कर देखें, फिर भी अच्छी डायलॉग बाज़ी और बदलते वक्त में नाक की लड़ाई लड़ रहे रजवाड़ों का क्लेश जानने के लिए देखी जा सकती है।