निर्णय - सारे एक्टर्स की अच्छी परफॉरमेंस के बावजूद, स्क्रिप्ट की कमी ने पूरी फिल्म ख़राब कर दी ।
शाहरुख़ जब स्क्रीन पर इश्क करता है तो वक़्त फ्रीज हो जाता है। फिल्म देखने वाले को लगता है जैसे इन्द्रधनुष में रंग भी शाहरुख़ ने ही भरे होंगे। लगता है वो जिस लड़की को चाहता है, वो परी बन गई है, उसके पर निकल आए हैं। ‘जीरो’ में अनुष्का से शाहरुख़ का इश्क देखकर यही सब फील हुआ।
लेकिन, बन्दा जब मोहब्बत में टूटता है न, तो दिल के उन कोनों में भी दर्द होता है... जिनका उसे पता भी नहीं होता कि वोहोते भी हैं या नहीं ! ‘जीरो’ के ट्रेलर और गानों से ऐसी ही मोहब्बत हुई थी। लेकिन फिल्म देखने के बाद मैं सिर्फ टूटा नहीं हूं। टूट के बिखर चुका हूं।
आप हैरान हैं न कि ऐसी मीठी शुरुआत कर के ये मैं किस तरफ पहुंच गया ? क्योंकि असल में ‘जीरो’ ने यही किया ! क्योंकि इंटरवल से पहले की ‘जीरो’ और इंटरवल के बाद की ‘जीरो’ 2 अलग फ़िल्में हैं। क्योंकि ‘जीरो’ के सेकंड हाफ में मैंने 6 बार टाइम देखा। क्योंकि मेरे बगल में बैठा बन्दा, जो फर्स्ट हाफ में लगातार स्माइल चमका रहा था, बीच में आंसू पोंछ रहा था... सेकंड हाफ में वो पत्थर बन चुका था और स्क्रीन के अलावा हर तरफ देख रहा था। और क्योंकि, ‘जीरो’ देखकर निकलने के बाद से मुझे कुछ पर्सनल दुःख सा फील हो रहा है !
‘जीरो’ की कहानी: बउवा सिंह, कद 4 फुट 6 इंच, रंग गेहूंआ, गालों में डिंपल, निवासी मेरठ, उत्तर प्रदेश को अफ़िया युसुफजई भिंडर से इश्क हो जाता है। आफ़िया को सेरिब्रल पाल्सी है और वो व्हीलचेयर बाउंड हैं। 2 इमपर्फेक्ट लोगों के बीच एक मोर दैन परफेक्ट लव स्टोरी शुरू हो जाती है। कहानी बस इतनी ही है। इसके बाद न मुझमें बताने की हिम्मत है, न आप सुन पाएंगे।
क्योंकि इसके आगे की कहानी फिल्म में मिली ही नहीं। बहुत सारी फिल्मों की प्रॉब्लम होती है कि उनमें होता तो सबकुछ है मगर दिल ही नहीं होता। ‘जीरो’ की प्रॉब्लम ये है कि इसमें दिमाग नहीं है। रत्ती भर भी नहीं। शाहरुख़ के रोमांस के भरोसे आप इंटरवल तक तो झेल जाएंगे। मगर इसके बाद ‘जीरो’ आपको बेवकूफ समझने लगती है। इसकी उम्मीद आनंद एल राय से तो बिल्कुल नहीं थी।
बउवा सिंह का कैरेक्टर शाहरुख़ की सबसे बेहतरीन परफॉरमेंसेज़ में गिना जाएगा। ‘जीरो’ का बउवा बहुत लम्बे वक़्त तक लोगों को याद रहेगा। कैटरीना की परफॉरमेंस आपको सरप्राइज कर देगी। लेकिन उनका करैक्टर आर्क जिस तरह का है वो पॉइंटलेस था। अनुष्का हमेशा की तरह अपने रोल को पूरी सीरियसनेस में प्ले कर रही हैं। ज़ीशान अयूब, तिग्मांशु धुलिया और स्क्रीन पर दिखने वाले हर एक्टर ने बेहतरीन काम किया है। लेकिन ‘जीरो’ की स्क्रिप्ट ने इन सबका मोमेंट छीन लिया।
‘जीरो’ के वी एफ एक्स (vfx) कमाल के हैं, विज़ुअल बहुत अपीलिंग हैं मगर इन सबके बावजूद फिल्म की कहानी ऐसी फिसली है कि एंड तक पहुंचते पहुंचते कहानी टुकड़े-टुकड़े हो कर बिखर गयी।