जानिए दिलीप कुमार के मुहम्मद यूसुफ खान से 'ट्रेजडी किंग' बनने तक के सफ़र को !
Updated : December 11, 2017 05:16 PM ISTहिंदी सिनेमा में पांच दशकों तक दर्शकों के दिल पर राज करने वाले बॉलीवुड के 'ट्रेजिडी किंग' दिलीप कुमार का आज 11 दिसंबर को 95वां जन्मदिन है। बॉलीवुड के सबसे बेहतरीन एक्टर्स में दिलीप कुमार का नाम शुमार है।
दिलीप कुमार का असली नाम मुहम्मद यूसुफ खान है। उनका जन्म पेशावर (अब पाकिस्तान में) में 11 दिसंबर, 1922 को हुआ था। दिलीप के 12 भाई-बहन हैं, उनके पिता फल बेचा करते थे व मकान का कुछ हिस्सा किराए पर देकर गुजर-बसर करते थे, दिलीप ने नासिक के पास एक स्कूल में पढ़ाई की।
हिंदी सिनेमा से कैसे जुड़े!
1930 में दिलीप साहब का परिवार मुंबई आकर बस गया। 1940 में पिता से मतभेद के कारण वह पुणे आ गए। यहां उनकी मुलाकात एक कैंटीन के मालिक ताज मोहम्मद से हुई, जिनकी मदद से उन्होंने आर्मी क्लब में सैंडविच स्टॉल लगाया। कैंटीन कांट्रैक्ट से 5000 की बचत के बाद, वह मुंबई वापस लौट आए। 1943 में चर्चगेट में इनकी मुलाकात डॉ. मसानी से हुई, जिन्होंने उन्हें बॉम्बे टॉकीज में काम करने की पेशकश की, इसके बाद उनकी मुलाकात बॉम्बे टॉकीज की मालकिन देविका रानी से हुई। उनकी पहली फिल्म 'ज्वार भाटा' थी, जो 1944 में आई। 1949 में फिल्म 'अंदाज' की सफलता ने उन्हें लोकप्रिय बनाया। इस फिल्म में उन्होंने राज कपूर के साथ काम किया।
'दीदार' और 'देवदास' जैसी फिल्मों ने बनाया ट्रेजिडी किंग !
'दीदार' (1951) और 'देवदास' (1955) जैसी फिल्मों में दुखद भूमिकाओं के मशहूर होने की वजह से उन्हें ट्रेजिडी किंग कहा गया। 1960 में उन्होंने फिल्म 'मुगल-ए-आजम' में मुगल राजकुमार जहांगीर की भूमिका निभाई जिस भूमिका लोग अब भी तारीफ करते हैं। उन्होंने 1961 में फिल्म 'गंगा-जमुना' का खुद निर्माण किया, जिसमें उनके साथ उनके छोटे भाई नसीर खान ने काम किया। नया दौर, मधुमती, यहूदी, त्रिशूल आदि अन्य अच्छी फ़िल्में हैं
जब हिंदी फिल्मों में काम करना शुरू किया, तो मुहम्मद यूसुफ से अपना नाम बदलकर दिलीप कुमार कर दिया, ताकि उन्हें हिंदी फिल्मों में ज्यादा पहचान और सफलता मिले। दिलीप कुमार ने एक्ट्रेस सायरा बानो से 11 अक्टूबर, 1966 को शादी की। शादी के वक्त दिलीप कुमार 44 साल और सायरा बानो 22 साल की थीं। सायरा बानो दिलीप साहब को 12 साल की उम्र से ही पसंद करती थीं। दिलीप साहब ने 1980 में कुछ समय के लिए आसमां से दूसरी शादी भी की थी।
1980 में इन्हें मुंबई का शेरिफ घोषित किया गया और 1995 में इन्हें भारतीय फिल्मों के सर्वोच्च सम्मान दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इन्हें आठ बार फिल्म फेयर का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार से नवाजा गया है। इन्हें पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-इम्तियाज से भी सम्मानित किया गया है। पाकिस्तान सरकार ने इनके पुश्तैनी मकान को धरोहर घोषित कर दिया है।