जे पी दत्ता की फिल्म 'पलटन' आपको क्यों नहीं देखनी चाहिए, ये रहे 5 बड़े कारण !
Updated : September 08, 2018 02:07 PM ISTबॉलीवुड में जब भी किसी ज़बरदस्त वॉर-फिल्म की बात होती है, सबसे पहले ‘बॉर्डर’ का नाम लिया जाता है। ‘बॉर्डर’ एक ऐसी वॉर-फिल्म है जिसे देखने के लिए आपको स्पेशली देशभक्ति वाली फीलिंग की ज़रूरत नहीं होती। इस फिलोम को आप किसी भी मूड में देख सकते हैं। और सबसे बड़ी बात ये कि 1997 में आई इस फिल्म को आज भी आप कितनी भी बार देख लें, हर बार ये फिल्म आपको पसंद आती है।
‘बॉर्डर’ के डायरेक्टर जे पी दत्ता को वॉर-फिल्म्स का स्पेशलिस्ट कहा जाता है। ‘बॉर्डर’ बनाने के बाद उन्होंने ‘एल ओ सी कारगिल’ भी बनाई और इस शुक्रवार यानी 7 सितम्बर को वो अपनी तीसरी वॉर-फिल्म ‘पलटन’ के साथ सिनेमा हॉल्स में हाज़िर हुए। लेकिन वही जे पी दत्ता, जिन्होंने ‘बॉर्डर’ बनाई थी, उनकी फिल्म ‘पलटन’ बिल्कुल भी मजेदार नहीं है।
आइए आपको बताते हैं जे पी दत्ता की फिल्म ‘पलटन’ आपको क्यों नहीं देखनी चाहिए-
1. फिल्म का आलसीपन
‘पलटन’ इतनी स्लो फिल्म है कि इसकी स्पीड के आगे आपको कछुआ भी उसैन बोल्ट नज़र आता है। ऊपर से फिल्म बनाने में भी कितना आलसीपन किया गया है ये साफ़ नज़र आता है। फौजियों का किरदार निभा रहे एक्टर्स के बाल और उनके तौर तरीके बिल्कुल भी आर्मी वालों की तरह नहीं लग रहे। ऊपर से फिल्म में आर्मी की वर्दी आपको इतनी हरी नज़र आएगी कि पेड़-पौधे भी शर्मा जाएं। इससे साफ़ समझ आता है कि फिल्म के लिए तैयार दिल से नहीं की गई।
2. ख़राब एक्टिंग
खराब एक्टिंग के मामले में ‘पलटन’ इस साल की सबसे बुरी फिल्मों को भी कड़ी टक्कर दे सकती है। पूरी फ़िल्म में सबसे बड़ा रोल अर्जुन रामपाल का है और वो जब भी कोई डायलॉग बोलते हैं, तो न उनके एक्सप्रेशन बदलते हैं और न ही उनकी आवाज़ से आपको आर्मी ऑफिसर वाली फीलिंग आती है।
3. दिल छूने वाले डायलॉग्स की कमी
‘ओये तू वही है न, लाहौर दा मशहूर गुंडा’, ‘मथुरादास, इससे पहले कि मैं तुझे गद्दार करार देकर गोली मार दूं भाग जा यहां से’, ये सिर्फ एक सैंपल है। ‘बॉर्डर’ फिल्म के बहुत सारे ऐसे डायलॉग्स हैं जो आज भी लोगों को जुबानी याद हैं। लेकिन ‘पलटन’ से आपको एक भी ऐसा आइकॉनिक डायलॉग नहीं मिलेगा। ये एक वॉर-फिल्म की सबसे बड़ी कामयाबी है।
4. फौजियों की पर्सनल कहानी की कमी
वॉर-फिल्म का सबसे खूबसूरत और इमोशनल हिस्सा होता है, आर्मी वालों की पर्सनल लाइफ और उनकी प्यार मोहब्बत। ‘बॉर्डर’ में सुनील शेट्टी और अक्षय खन्ना की पर्सनल कहानियों ने लोगों को रुला दिया था। फौजियों की अच्छी पर्सनल कहानी दिखाने से, लोग आर्मी वालों से कनेक्ट कर पाते हैं। ‘पलटन’ इस मामले में बेहद कमज़ोर वॉर-फिल्म है।
5. बिना वॉर की वॉर फिल्म
कायदे से देखें तो जिस भारत-चीन बॉर्डर की जिस घटना पर फिल्म बनी है, वो एक युद्ध नहीं था। उसे दोनों सेनाओं के बीच एक झड़प कहा जा सकता है। लेकिन इस एक ही घटना पर फिल्म बनाने से दिक्कत ये हुई, कि जहां बहुत बड़ा युद्ध दिखाने का स्कोप ही नहीं है, वहां आप ज़बरदस्ती युद्ध को ज्यादा भयानक और बड़ा नहीं बना सकते। ‘पलटन’ देखते वक़्त तो एक वक़्त ऐसा आता है, जब आपका मन करेगा कि ला भाई बन्दूक दे दे, मैं ही लड़ लेता हूं... तेरे से तो नहीं होगा ! आर्मी की स्ट्रेटेजी भी फिल्म में बिल्कुल नहीं दिखाई गई है।