अपनी हर फिल्म में समाज की सोच बदलते हैं फिल्म 'पैड मैन' के डायरेक्टर आर बाल्की !
Updated : February 06, 2018 07:41 PM ISTबॉलीवुड में हर साल औसतन 1000 फ़िल्में बनाई जाती हैं। फिल्म निर्माताओं और डायरेक्टर्स का ये लक्ष्य रहता है कि वो हर बार कोई नयी कहानी लेकर दर्शकों के सामने आएं। यूं तो फ़िल्में बनाने का मेन मकसद ही एंटरटेनमेंट है, लेकिन अगर एंटरटेनमेंट के साथ फिल्म में कुछ सोशल मेसेज भी हो तो दर्शकों का मज़ा भी दोगुना हो जाता है। अपनी शुरुआत से लेकर आजतक बॉलीवुड में बहुत सारी फ़िल्में ऐसी बन चुकी हैं जिनमें सोशल मेसेज भी होता है। लेकिन फिल्मों में कहीं न कहीं समाज में बनी-बनाई सोच को ही दिखाया जाता है।
बॉलीवुड डायरेक्टर्स की भीड़ में ऐसे डायरेक्टर्स कम ही हैं जो समाज में पहले से बने हुई सोच और धारणाओं को चैलेन्ज करते हैं। ऐसे ही एक डायरेक्टर हैं आर बाल्की।
बाल्की ने अपनी पहली फिल्म ‘चीनी कम’ 2007 में बनाई थी। अपनी हर फिल्म में बाल्की समाज की किसी पुरानी सोच को बदलने की कोशिश करते हैं। 9 फरवरी को आर बाल्की की फिल्म 'पैड मैन' रिलीज़ होने वाली है। आइए आपको बताते हैं आर बाल्की की उन फिल्मों के बारे में जिसमें उन्होंने समाज को चैलेन्ज किया-
1. चीनी कम
‘चीनी कम’ बाल्की की पहली फिल्म थी। अपनी पहली ही फिल्म में उन्होंने इस सोच को चैलेन्ज किया कि प्यार करने की एक उम्र होती है। अमिताभ बच्चन, तब्बू और परेश रावल जैसे मंझे हुए कलाकारों को लेकर बाल्की ने एक ऐसी फिल्म बनाई जिसमें 64 साल के आदमी को 34 साल की महिला से प्यार हो जाता है। खुद से 30 साल छोटी तब्बू के प्यार में पड़े अमिताभ की उम्र, उनके पिता से भी ज़्यादा होती है। लड़की के पिता के रोल में परेश रावल और अमिताभ की बातचीत के ज़रिये बाल्की ने प्यार में उम्र के मिथ को तोड़ने की कोशिश की और कामयाब भी हुए।
2. पा
‘पा’ में अमिताभ बच्चन ने ‘प्रोजीरिया’ नाम की बीमारी से पीड़ित एक ऐसे बच्चे का किरदार निभाया जिसका शरीर उसकी उम्र से कहीं ज़्यादा तेज़ी से बूढ़ा हो जाता है। इस फिल्म में विद्या बालन ने अमिताभ की मां का किरदार निभाया था। किसी बीमारी पर बनी फिल्मों में ‘पा’ को यकीनन सबसे बेहतरीन फिल्म कहा जा सकता है। अपनी ही उम्र के बच्चों के सामने बूढ़े दिखने वाले बच्चे की फीलिंग्स को बाल्की ने बड़े ही सेंसिटिव तरीके से पर्दे पर उतारा। अभिषेक बच्चन ने इस फिल्म में अमिताभ बच्चन के पिता का रोल किया था।
3. शमिताभ
फिल्मों में एक्टिंग करने के लिए एक एक्टर की आवाज़ बहुत महत्वपूर्ण होती है। लेकिन ‘शमिताभ’ में बाल्की ने दिखाया कि एक गूंगा आदमी भी एक्टिंग के सपने देख सकता है। फिल्म में साउथ के सुपरस्टार धनुष ने एक ऐसे आदमी का किरदार निभाया जो जन्मजात गूंगा है लेकिन एक्टिंग करना उसका सपना है। उसका ये सपना पूरा करने के लिए उसे एक दूसरे आदमी की आवाज़ में डबिंग करणी पड़ती है। अमिताभ बच्चन ने ऐसे आदमी की भूमिका निभाई जो बॉलीवुड फिल्मों में नाकामयाब रहा लेकिन उसकी आवाज़ के दम पर एक अच्छे मगर न बोल पाने वाले एक्टर का करियर बन सकता है। ये फिल्म फ्लॉप रही थी मगर इसकी कहानी की खूब सराहना की गई थी।
4. की एंड का
भारतीय समाज में आज भी यह धारणा है कि एक परिवार में मर्द का काम नौकरी कर के पैसे कमाना है जबकि औरत का काम घर संभालना। अपनी फिल्म ‘की एंड का’ में बाल्की ने इस सोच को सीधा टक्कर दी। ‘की एंड का’ में करीना कपूर एक ऐसी महिला के रोल में दिखीं जो अच्छी नौकरी करती है और खूब आगे बढ़ना चाहती है। उसे अर्जुन कपूर के रूप में ऐसा पति मिलता है जो घर के सारे काम करता है और अच्छे से घर संभालता है।
5. पैड मैन
महिलाओं से जुड़े मुद्दे आज भी हमारे सैम,आज में एक बड़ा टैबू हैं, उनपर खुलेआम बात करना खराब माना जाता है। महिलाओं के शरीर में होने वाले एक नैचुरल बदलाव- पीरियड्स के बारे में बहुत दबी आवाज़ में बातें की जाती हैं। फिल्म ‘पैड मैन’ में बाल्की एक ऐसे कैरेक्टर को सिनेमा स्क्रीन पर लेकर आ रहे हैं जिसे अपने आसपास की औरतों को पीरियड्स के दौरान पुराने गंदे कपड़े और अखबार इस्तेमाल करते देखकर बहुत बुरा महसूस होता है। ये आदमी इस बात को गंभीरता से सोचता है और हर महिला के तक सेनेटरी पैड्स पहुँचाने की सोचता है। लेकिन उसे पता लगता है कि सेनेटरी पैड बनाने वाली मशीने बहुत महंगी हैं। महिलाओं को परेशानी से निजात दिलाने के लिए वो एक ऐसी मशीन बनाता है जो बहुत सस्ती भी है और एक दिन में 120 सेनेटरी पैड बना सकती है। ये कहानी अरुणाचलम मुरूगनाथम की सच्ची कहानी पर आधारित है।