एयरलिफ्ट भारत के नहीं, भारतीयों के बारे में एक कहानी है जो ज़रूर देखी जानी चाहिए !
बॉलीवुड फिल्में अधिकतर दर्शकों को किसी यूटोपिया में ले जाती हैं। और ऐसा बहुत कम होता है कि उस यूटोपिया को असल ज़िन्दगी से जोड़ कर देखा जा सके। अक्षय कुमार की एयरलिफ्ट भारत के उस चेहरे की तस्वीर दिखाती है जिसे हम जान बूझ कर अनदेखा कर देते हैं।
1,70,000 भारतीय, अगस्त 1990 , खाड़ी युद्ध, कुवैत का थम , जाना और एक अनमनी भारत की सरकार के आगे खड़ा एक इकलौता भारतीय, जिसे समय ने रक्षक - यह सब कुछ है एयरलिफ्ट के इस सफर में।
इराक द्वारा कुवैत पर हमला करने की सुबह रणजीत कत्याल (अक्षय कुमार) की नींद खुली एक ऐसे झटके से जो उनकी ज़िन्दगी बदल कर रख देने वाला था।
इस फिल्म की कहानी शुरू होती है वहां से, और लेकर जाती है उन सभी कोनों से जहां अफसरों की हिचक और एक बड़े लोकतांत्रिक देश के सबसे सफल रेस्क्यू ऑपरेशन की बारीकियां धीरे धीरे खुलकर सामने आती हैं।
इस फिल्म ने साबित कर दिया है कि बॉलीवुड के बेहतरीन स्टार अगर चाहें तो बिना चमक दमक के भी धमाकेदार फिल्में बनायी जा सकती हैं। इस फिल्म में अक्षय कुमार ने उछल-कूद मचाने वाला हीरोइज़्म छोड़ कर एक ऐसे इंसान की दुविधा दिखाई है जिसे परिस्थितियों ने बीड़ा उठाने पर मजबूर कर दिया।
उनकी पत्नी की भूमिका में निमरत कौर बेहद स्वाभाविक लग रही हैं। बाकी के किरदारों ने भी अपना रोल बखूबी निभाया है। यह फिल दूसरे हाफ में थोड़ी
रेपेटिटिव हो जाती है , लेकिन पूरे तौर पर यह एक बेहद अच्छी फिल्म बन पड़ी है।
फिल्म के अंत में यह जान कर अच्छा लगता है कि किस तरह एक इंसान ने अपने बल बूते पर भारत के सबसे बड़े रेस्क्यू ऑपरेशन को अंजाम दिया और उसमे एयर इंडिया, इंडियन एयरफोर्स तथा इंडियन एयरलाइन्स की मदद से एक चालाक बिज़नेसमैन एक सबसे बड़े देशभक्त की भूमिका में उतर सबको आशा की किरण दे गया।