'फितूर' फिल्म रिव्यू : आदित्य रॉय कपूर के अलावा फिल्म में देखने लायक कुछ नहीं है !

    'फितूर' फिल्म रिव्यू : आदित्य रॉय कपूर के अलावा फिल्म में देखने लायक कुछ नहीं है !

    चार्ल्स डिकेन्स के उपन्यास ' ग्रेट एक्सपेक्टेशंस ' पर आधारित यह फिल्म  रिलीज़ होने के पहले ही काफी सुर्खियाँ बटोर चुकी है, चाहे वो रेखा का फिल्म बीच में छोड़ कर चले जाना हो या कैटरीना के 55 लाख के बाल, या फिर मशहूर गाने पश्मीना का कॉपी होना- इस फिल्म की काफी पब्लिसिटी पहले ही हो चुकी है। 

    अभिषेक कपूर, जिन्होंने 'रॉक ऑन' और 'काई पो चे ' जैसी बेहतरीन फिल्में दी हैं , उनसे इस बार भी काफी उम्मीदें थीं उनकी फिल्म 'फितूर' को लेकर जोकि 12 फ़रवरी को सिनेमाघरों में रिलीज़ हुई है।  यह रही इस फिल्म के बारे में कुछ बातें:

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    सब कुछ घुला-मिला हुआ है , एक अनसधा नैरेशन , बुझी बुझी सी कैटरीना कैफ , कुछ सांसें थाम लेने वाले दृश्य , कश्मीर की खूबसूरती, एक गंभीर आदित्य, और उलझी उलझी सी तब्बू : फितूर में है यह सब कुछ। 

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    आदित्य रॉय कपूर इस फिल्म की जान हैं ,  यह सब कुछ नूर की ज़िन्दगी के उतार-चढ़ावों के बारे में है।  उनकी तीव्र आँखें उनमें छुपे पागलपन को परदे पर झलका देती हैं।  

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    तब्बू एक बेहतरीन अदाकारा हैं।  भले ही उनका रोल कैसा भी हो।  इस फिल्म में उनका जो किरदार है उसकी उलझन और बेतरतीबी आपको भले ही अपने बाल नोचने पर मजबूर कर दे लेकिन वह फिर भी देखने लायक है क्योंकि वह किरदार की मांग है।  


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    कैटरीना कैफ के किरदार को कुछ करना नहीं इस फिल्म में सिवाय खूबसूरत दिखने के।  लेकिन फिर इस किरदार की कोई ऐसी मांग भी नहीं थी कि उन्हें एक्टिंग करनी पड़ती तो ठीक ही है, आप निराश नहीं होंगे।  फ़िरदौस और नूर के बचपन का किरदार निभाने वाले बच्चे काफी प्रभावित करते हैं।  

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    सिनेमेटोग्राफी बेहद अच्छी है।  कश्मीर धरती का स्वर्ग लगता है , और आप वहां जाने को बेकरार ज़रूर होंगे।  लीड कैरक्टर्स के बीच की केमिस्ट्री बेहद अच्छी है।  

    सीधे सीधे कहें , तो फितूर में कुछ नया नहीं है।  यह वैलेंटाइन्स डे के लिए सबसे अच्छा ऑप्शन नहीं है और इसे अवॉयड किया जा सकता है।  

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