माधुरी दीक्षित: जिसमें भगवान की आर्ट दिखती है और आइंस्टीन की साइंस !

    माधुरी दीक्षित: जिसमें भगवान की आर्ट है और आइंस्टीन की साइंस !

    माधुरी दीक्षित: जिसमें भगवान की आर्ट दिखती है और आइंस्टीन की साइंस !

    अल्बर्ट आइंस्टीन फिज़िक्स के बहुत बड़े वाले साइंटिस्ट हुए हैं, मतलब इतने बड़े कि उनके दिए हुए सिद्धांत और फ़ॉर्मूले पर आधी फिज़िक्स टिकी है। 12वीं में फिज़िक्स की जो किताबें पढाई जाती हैं, वही जिन्हें पढ़कर मैं फेल होते-होते बचा था... उनमें आइंस्टीन की सिर्फ़ गिनी-चुनी इक्वेशन थीं। इन्हीं आइंस्टीन जनाब ने एक थ्योरी दी थी- थ्योरी ऑफ़ स्पेशल रिलेटिविटी। लेकिन ये आर्टिकल आइंस्टीन या उनकी थ्योरी पर नहीं है। ये आर्टिकल है माधुरी दीक्षित के बारे में ! 

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    तो आइंस्टीन जी की थ्योरी घूम फिरकर ये बात कहती है कि वक़्त यानी टाइम इतना स्लो हो सकता है कि लगेगा जैसे रुक गया है। ये बात मुझे किताबों से समझ नहीं आई, ये बात मुझे माधुरी ने समझाई ! साल 2000 में मैंने टीवी पर पहली बार ‘हम आपके हैं कौन’ देखी थी। ये भी इसीलिए याद है क्योंकि उसमें माधुरी थीं। तभी मैंने पहली बार रोलर स्केट्स भी देखे थे... क्योंकि वो माधुरी के पैरों में थे ! और जब माधुरी की एंट्री हुई तो ‘मेनेजर चाचा’ ने पूरे शरीर का जोर लगाकर खांसते हुए कहा था- ‘शैतान कहीं की ! जब आती है तूफ़ान की तरह’ उस दिन सच में तूफान आया था। 

    देखिए माधुरी की वो यादगार एंट्री-

    बचपन से निकलकर जवानी में कदम रखते एक लड़के ने टीवी पर एक बला सा खूबसूरत चेहरा देखा था। ऐसा चेहरा जिसे वो हमेशा अपनी गर्लफ्रेंड्स में खोजता रहा। लेकिन ये चेहरा मिलना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन था... क्योंकि माधुरी बस एक है ! उस दिन, उस लड़के के साथ कुछ हुआ था... वक़्त रुक गया था, टाइम और स्पेस का कॉन्सेप्ट गड़बड़ हो गया था। क्या हुआ था, ये तब पता चला जब आइंस्टीन की लम्बी-चौड़ी थ्योरी पढ़ी। ये जादू था... माधुरी का जादू ! इस फिल्म में वो ‘निशा’ थीं। मेरे लिए माधुरी खूबसूरत नहीं हैं, वो खूबसूरती का स्केल हैं। 

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    ये बात अकेले मैं ही नहीं मानता, एम एफ़ हुसैन ने भी मानी। वही एम एफ़ हुसैन जो ब्रश पकड़ते थे तो पेंटिंग नहीं करते थे... नया यूनिवर्स रचते थे। उन्होंने माधुरी पर पेंटिंग बना डाली। ये माधुरी हैं। उनके जैसा दूसरा कोई नहीं हो सकता। मगर उनका जादू यही है... वो बहुत बार खुद जैसी भी नहीं रहतीं। जैसा किरदार, वैसी माधुरी। हम उस दौर में नहीं जवान हुए जब माधुरी अपने पीक पर थीं। लेकिन इश्क़ कैसे होता होगा, ये एहसास हमें माधुरी का चेहरा देखकर हुआ। हमने वो फ़िल्में देखनी शुरू की जिनमें माधुरी थीं। हर फिल्म में यही होता। फिल्म शुरू होती, माधुरी की एंट्री होती और वक़्त रुक जाता। 

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    लेकिन आइंस्टीन ने बस वक़्त रोकने या धीमा करने की थ्योरी लिखी थी, सच में ऐसा नहीं हो सकता था। हम जवान होने लगे थे, और माधुरी की उम्र ढलने लगी थी। लेकिन माधुरी तो माधुरी हैं ! उन्होंने फिर एक बार स्क्रीन पर वापसी की, हमें ऐसा लगा कि वो हमारे लिए ही लौटी हैं। ये हमारा प्यार था ! फिर वो फिल्मों में नज़र आती रहीं। वापसी के बाद उनकी फिल्मों का बिजनेस गिरता गया, लेकिन हमें क्या हमें बस माधुरी को देखना था। कोई फर्क नहीं पड़ता, वो अनिल कपूर के साथ हों या रणबीर कपूर के साथ ! 

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    ये सोचना भी डरावना है कि माधुरी पर कभी बढ़ती उम्र का असर दिखेगा। अगर ऐसा हुआ, तो वो जेनरेशन कितनी बदकिस्मत होगी... जो माधुरी को वैसा नहीं देख पाएगी, जैसा हमने देखा है ! वो बेचारे खूबसूरती से इश्क़ करना कैसे सीखेंगे?! सुनो माधुरी ! यार तुम प्लीज़ ऐसी ही रहना जैसी हो, वर्ना इश्क़ का रंग फीका हो जाएगा और दिल ‘धक-धक’ करना भूल जाएंगे...