सिर्फ ख़राब 'स्टोरी-टेलिंग' नहीं शाहरुख़, 'ज़ीरो' असल में फैन्स के साथ एक बड़ा धोखा था !
ज़ीरो की असफलता को लेकर हाल में दिए एक इंटरव्यू में शाहरुख़ ने माना कि शायद उन्होंने गलत फिल्म बनाई, उन्होंने इस फिल्म की कहानी पर सही से काम नहीं किया। लेकिन इस फिल्म को लेकर आज की ऑडियंस का अलग ही मानना है। इनकी पिछली फ्लॉप फिल्मों के बाद ये फिल्म शाहरुख़ के डूबते करियर को बचाने और उन्हें वापस टॉप स्टार बनाने के लिए बनाई गई थी। बस यहीं मेकर्स गलती कर गये।
एक दौर था जब किसी फिल्म में शाहरुख़ खान का नाम होना ही काफी था। एक ऐसा एक्टर जो आज के नए कलाकारों को बाहें खोल कर रोमांस करना सिखाता है, वो हीरोइन के लिए विलेन बन जाने के बाद भी फिल्म का हीरो कहलाता है। लगातार हिट फिल्म्स, अवार्ड्स के बाद अब शाहरुख़ का वक़्त बदल गया है। ये बदलते सिनेमा की पहचान सी बन गई है, जहाँ ऑडियंस एक्सपेरिमेंट के साथ कुछ नया और अलग देखना चाहती है। फिल्म में एक्सपेरिमेंट के नाम पर तो बहुत कुछ था लेकिन इम्प्रेस करने जैसा कुछ नहीं। ये फिल्म सिर्फ उनके स्टारडम को वापस लाने के लिए बनाई गई, जहाँ वो प्लॉप साबित हुए।
पिछले कुछ सालों में आई शाहरुख़ की फ़िल्में उनके फैन्स को निराश करने के लिए काफी थीं। जिनमें फैन, जब हैरी मेट सेजल, रईस जैसी फ़िल्में शामिल हैं। इन फिल्मों के जरिये शाहरुख़ ने कुछ अलग करने की कोशिश तो की लेकिन औंधे मुंह जा गिरे। इस बीच नई फ़िल्में, विकी कौशल, आयुष्मान खुराना और राजकुमार राव जैसे नए एक्टर्स ऑडियंस के दिलों में घर कर चुके थे। ऐसे में शाहरुख़ के डूबते हुए करियर को सहारा देने का काम आनंद एल रॉय ने अपने कंधो पर ले लिया और फिर ‘जीरो’ जैसी फिल्म बना डाली।
जब ज़ीरो का पहला टीज़र सामने आया था तब तो मान लिया गया था कि शाहरुख़ ने वापसी कर ली है। 5.7 फुट के शाहरुख़, बौने बउआ बन कर तबाही मचाने वाले हैं। लेकिन अफ़सोस शाहरुख़, हमें फिल्म में ऐसा कुछ नहीं मिला। ये फिल्म ऑडियंस के साथ के बड़ा धोखा थी, उन्होंने शायद अपने फैन्स, फैन फॉलोविंग, स्टारडम के बलबूते ये मान लिया था कि ऑडियंस को कुछ भी दिखा दिया जायेगा तो फिल्म चल जाएगी. ये फिल्म इतनी बनावटी थी कि जहाँ एक बौना किरदार ‘बउआ’, जिसकी शादी नहीं हो रही, उसे किसी सुपरस्टार से प्यार हो जाता है। फिर उसकी लाइफ में एक साइंटिस्ट की एंट्री होती है जो उसे नासा तक ले जाती है। और सबसे ज्यादा शाहरुख़ का तारे तोड़ने वाला एंगल तो अगले कई महीनों तक आपको इनकी की फ़िल्में देखने से रोकेगा। फिल्म में ये सब कल्पना से परे की चीज़े थी जो शायद आज की ऑडियंस को बेवकूफ बनाने के लिए काफी था। इसलिए शाहरुख़, सिर्फ कहानी ही नहीं ये एक ख़राब एक्सपेरिमेंट था जिसे दोबारा कभी देखा नहीं जा पायेगा।
अगर फिर शाहरुख अपने फ़िल्मी दुनिया में अपनी पुरानी पहचान ढूंढने के लिए इस तरफ का एक्सपेरिमेंट करेंगे तो शायद फिर से उनके फैन्स नाराज़ न हो जाये।