इन 5 वजहों से अनुराग कश्यप की 'मनमर्ज़ियां' एक बेहतरीन फिल्म है !
बॉलीवुड में सबसे ज्यादा फ़िल्में लव स्टोरीज़ पर बनती हैं। लेकिन फिर भी हर लव-स्टोरी के साथ कुछ न कुछ ऐसा जरुर जुड़ा होता है जिसे देखने ऑडियंस हॉल में पहुंचती है। 14 सितम्बर को रिलीज़ हुई अनुराग कश्यप की फिल्म ‘मनमर्ज़ियां’। तापसी पन्नू, विक्की कौशल और अभिषेक बच्चन इस फिल्म में मुख्य भूमिका में हैं। ट्रेलर आने के बाद से ही इस फिल्म को लेकर लोगों में बहुत एक्साइटमेंट थी। हमने आपके लिए ये फिल्म देखी और एक शब्द में कहें तो ‘मनमर्ज़ियां’ बहुत धांसू फिल्म है।
आइए आपको बताते हैं वो 5 कारण जिनकी वजह से आपको ये फिल्म ज़रूर देखनी चाहिए-
1. एक मॉडर्न और ताज़ा लव स्टोरी
‘मनमर्ज़ियाँ’ कहानी है रूमी यानी तापसी पन्नू की। रूमी आज़ाद-रूह लड़की है, जो विक्की (विक्की कौशल) से प्यार करती है। दरअसल, उनका प्यार ‘फ्यार’ कहलाता है। इसमें प्यार वाला कमिटमेंट नहीं है, समझ लीजिए कि फ़ से फ्रेंडशिप थी मगर प्यार में तब्दील हो गई। इन दोनों की लव स्टोरी में पंगा तब पड़ता है जब मोहल्ले की छतें टापकर फ्यार करने पहुंच विक्की और, रूमी के घर में धर लिया जाता है। अब जैसा कि समाज में होता है, लड़की जिसके साथ सोती पकड़ी जाएगी, उसे छोड़कर किसी से भी उसकी शादी करा दी जाती है। तो रूमी के लिए सुंदर-सुशील वर की तलाश आ कर रुकती है रॉबी यानी अभिषेक बच्चन पर। शादी हो गई तो क्या स्टोरी खत्म ? क्या प्यार की लास्ट मंज़िल शादी ही है ? और प्यार और फ्यार का लोचा, किस करवट बैठेगा ? यही है अनुराग कश्यप की फ़िल्म ‘मनमर्ज़ियाँ’ की कहानी।
2. बेहतरीन किरदार
रूमी और विक्की का किरदार बिल्कुल भी सिनेमेटिक नहीं है। ये दोनों हमारे में से ही एक लगते हैं। रूमी उतनी ही कन्फ्यूज़ और झल्ली है जितनी कि हमारे आसपास लड़कियां होती हैं। विक्की बिल्कुल वैसा ही है, जैसे लड़के हमारे आसपास मोहल्ले में होते हैं। वो कुछ भी करना चाहते हैं मगर जिम्मेदारियों के लिए कभी तैयार नहीं होते। वहीँ रॉबी एक बैलेंस्ड और मैच्योर किरदार है जैसे लड़के मल्टीनेशनल कम्पनियों में काम करने वाले होते हैं।
3. डायलॉग्स और ह्यूमर
फिल्म के डायलॉग बहुत मजेदार हैं, चाहे गुस्सा दिखाना हो, या मज़ाक या फिर प्यार, फिल्म के डायलॉग एक नए फ्लेवर के साथ किरदारों की बातों को सामने रखते हैं। कुछ डायलॉग तो बड़े ही सादे तरीके से प्यार की गहरे बता जाते हैं और आपको हमेशा याद रहने वाले हैं। जैसे- ‘ये वो वाला प्यार है, इसमें जितना भी करो कम पड़ता है।’
4. अनुराग कश्यप का बेहतरीन डायरेक्शन
अनुराग कश्यप वो डायरेक्टर है जिसका नाम लेते ही खयालों में बस गालियां और खून-खराबा आता है। अनुराग ने यूं तो इस साल एक और लव-स्टोरी ‘मुक्काबाज़’ भी बनाई थी। लेकिन एक लव-स्टोरी के हिसाब से उसमें इंटेलेक्चुअल मसाला थोड़ा ज़्यादा था। लेकिन ‘मनमर्ज़ियाँ’ में प्योर लव-स्टोरी है। और वो भी फूल अनुराग कश्यप स्टाइल में। वो ऐसे कि, अनुराग कश्यप का ट्रेडमार्क है ऑकवर्डनेस यानी एक तरीके के बेढंगापन। मतलब कोई भी चीज़ जिस तरह आपने सोची-समझी है, वो वैसी नहीं होगी, अजीब होगी। जैसे बीवी के बगल में बेड पर लेटा वो आदमी, जो प्यार तो करने जा रहा है… मगर अचानक से ये नहीं समझ पाता कि बीवी के बदन पर हाथ कहाँ रखे। ठीक यहीं पर, फ़िल्म अनुराग कश्यप की हो जाती है।
5. बेहतरीन गाने
गानों के मामले में तो ‘मनमर्ज़ियाँ’ की एल्बम को पहले ही साल की सबसे बेहतरीन म्यूजिक एलबम्स में से एक कह दिया गया है। अमित त्रिवेदी का म्यूजिक फ़िल्म में जादू रच देता है। यहां एक शख्स की तारीफ ज़रूर की जानी चाहिए, वो है लिरिक्स राइटर शेली। शेली के लिरिक्स बहुत सरल होत्र हुए भी मारक हैं और प्यार के मामले में असरदार हैं। ‘ग्रे वाला शेड’, ‘चोंच लड़ियां’ और ‘मनमर्ज़ियाँ’ बेहतरीन गाने हैं।