कैटरीना को पी टी उषा के किरदार में लेना, आज के दर्शकों के साथ सरासर धोखा है !

    कैटरीना को पी टी उषा के किरदार में लेना आज के दर्शकों के साथ सरासर धोखा है !

    कैटरीना को पी टी उषा के किरदार में लेना, आज के दर्शकों के साथ सरासर धोखा है !

    बॉलीवुड इस वक़्त एक नए दौर से गुज़र रहा है, जहां किरदार, कलाकार से ज्यादा मायने रखते हैं। जहां ‘बधाई हो’ जैसी फिल्म बनती है, जिसकी कास्ट में आयुष्मान खुराना जैसा स्टार होने के बावजूद, बड़ा रोल उसके मम्मी-पापा के किरदारों का था।

    इन किरदारों को निभाने वाले नीना गुप्ता और गजराज राव को लोगों से तारीफ़ और अवार्ड दोनों मिले। 

    आज से 2 साल पहले ये हरगिज़ पॉसिबल नहीं था कि विक्की कौशल जैसे नए नाम को लेकर कोई ‘उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक’ जैसी सुपर-डुपर हिट फिल्म बना सके। ये फिल्म आज से कुछ साल पहले बनती, तो इसमें अक्षय कुमार या जॉन अब्राहम को कास्ट करना ही पहली चॉइस होती।

    लेकिन आज ऐसा नहीं है। विक्की कौशल जैसा एक नया लड़का ‘उरी’ में लीड रोल निभाता है, और फिल्म बॉक्स-ऑफिस पर एक से एक धमाकेदार रिकॉर्ड बना डालती है। 

    ये नया बॉलीवुड है, यहां किरदार बड़े हैं और स्टार छोटे। लेकिन ऐसे दौर में दिल तब टूटता है, जब खबर आती है कि पी टी उषा जैसी आइकॉनिक एथलीट पर फिल्म बन रही है और उनका किरदार निभा रही हैं- कैटरीना कैफ।

    अब अगर आपको लगता है कि हम कैटरीना की एक्टिंग पर सवाल उठा रहे हैं, तो आप गलत हैं। ये पढ़ने में थोड़ा बुरा लग सकता है, लेकिन दिखने के मामले में  पी टी उषा एक औसत भारतीय महिला हैं । 

    इतनी साधारण कि अचानक से किसी के आगे खड़ी हो जाएं तो शायद वो पहचान भी न पाएं कि ये पी टी उषा हैं । उतनी ही साधारण, जितनी हमारी मम्मियां हैं ।

    कैटरीना, जिन्हें हज़ारों की भीड़ में लोग पहचान लें... ऐसे किरदार में उन्हें कास्ट करना, सिर्फ सिनेमा प्रेमियों के साथ धोखा है। और ये धोखा सिर्फ पी टी उषा की बायोपिक के साथ ही नहीं हो रहा।

    अनुराग कश्यप जैसे फिल्म निर्माता, जिनका नाम सुनते ही फिल्म के कंटेंट पर भरोसा हो जाता है, उनकी फिल्म ‘सांड की आंख’ में भी कुछ ऐसा ही है। 

    इस फिल्म के पोस्टर हाल ही में सामने आए और लोगों के मज़ाक का शिकार हो गए। ऐसा इसलिए हुआ कि ‘सांड की आंख’ में, 30 साल के करीब उम्र की 2 एक्ट्रेसेज़, तापसी पन्नू और भूमि पेडनेकर, 80 के आसपास उम्र की महिलाओं का किरदार निभा रही हैं।

    पोस्टर में इनका लुक उतना ही नकली लग रहा है, जितना वाकई है। ‘बधाई हो’ से तारीफ़ पाने वालीं नीना गुप्ता, शीबा चड्ढा, या फिर ‘रामलीला’ में यादगार किरदार निभाने वालीं सुप्रिया पाठक जैसी दमदार एक्ट्रेसेज़, क्या ‘सांड की आंख’ के लिए सही नहीं रहतीं ? 

    लेकिन ऐसा करने में शायद निर्माताओं को लगता है कि रिस्क ज्यादा है। इस बात का रिस्क, कि स्टार वैल्यू न होने पर शायद दर्शक न जुटें। लेकिन यही निर्माता ये भूल जाते हैं कि आज के दर्शक ‘बधाई हो’, ‘अन्धाधुन’, ‘स्त्री’ और ‘उरी’ जैसी फिल्मों को सुपरहिट करा चुके हैं, जिनमें कोई स्टार अपील नहीं थीं।

    अगर आज दर्शक कहानियों पर इतना भरोसा कर रहे हैं, तो क्या इस तरह की कास्टिंग करना, दर्शकों के साथ धोखा नहीं है ? इस बात का जवाब आज के फिल्म निर्माताओं को खोजना होगा। वरना, उन्हें ये शिकायत नहीं करनी चाहिए कि दर्शक उनपर भरोसा नहीं करते !