'रक्तांचल' रिव्यू: पूर्वांचल पर बनी इस सीरीज़ में मसाला तो है, मगर बासी!

    'रक्तांचल' रिव्यू: पूर्वांचल पर बनी इस सीरीज़ में मसाला तो है

    'रक्तांचल' रिव्यू: पूर्वांचल पर बनी इस सीरीज़ में मसाला तो है, मगर बासी!

    कुछ साल पहले हमने गोरखपुर में एक बहुत ज़बरदस्त जुमला सुना था, एक लवंडे की जिज्ञासा जगी तो उसने पूछा भैया अपने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ काहें तय की गई, इलाहबाद बनारस या गोरखपुर काहें नहीं। तो जवाब मिला, अइसन है बेटा कि सत्ता का शासन लखनऊवे में ख़त्म हो जाता है, उससे आगे चलता है कट्टा का शासन। अब सवाल ये है कि क्या एम एक्स प्लेयर की सीरीज ‘रक्तांचल’ में इत्ता दम है?

    हमारे पूर्वांचल में क्रिमिनल 4 टाइप के होते हैं- जगलर, डिफ़ॉल्टर, बदमाश और बाहुबली। ‘बाहुबली’ फिल्म का नाम सुनके हमारे यहां पहली बार सबको यही लगा था कि कोई पूर्वांचल बेस्ड गैंगस्टर ड्रामा है। तो ‘रक्तांचल’ कहानी है बने-बनाए बाहुबली वसीम खान और सून टू बी बाहुबली विजय सिंह की। वसीम खान के रोल में हैं ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ में थंगाबली बनके फेमस हुए निकितन धीर और विजय सिंह हैं क्रांति प्रकाश झा, ‘धोनी वाले फिलम में वो लड़का याद है जिससे धोनी ने हेलिकॉप्टर शॉट सीखा था, वही। स्टोरी शुरू होती है बाप का बदला लेने से, अब अमिताभ बच्चन के जमाने विजय नाम का बड़ा एंग्री यंगमैन इतिहास रहा है, तो इस विजय को भी कुछ क्रांति तो करनी ही थी, लेकिन पूर्वांचल का अपना इतिहास भी तो है न, यहां बाबू लोग क्रांति का मतलब ही क्राइम करना जानते हैं।

    पूर्वांचल के लिविंग बाहुबलियों में से टॉप 5 के नाम से जोड़ें तो आराम से 200 से 250 क्रिमिनल केसेज़ बनते हैं जिसमें मर्डर से लेकर अटेम्प्ट टू मर्डर तक, पूरी रेंज है। वसीम और विजय की स्टोरी इन टॉप 5 में से 2 से बहुत सिमिलर है। ये राज़ मैंने आपको नहीं बताया है याद रखिएगा, अब भई पॉलिटिकली करेक्ट रहना भी तो ज़रूरी है न, क्योंकि इनकरेक्ट तो ‘रक्तांचल’ में ही बहुत कुछ है। नंबर 1, पूर्वांचल से दिल्ली-मुंबई जाने वाला इन्सान सबसे पहले तो ‘मैं’ को ‘हम’ बोलने के ले ट्रोल होता है। एक पूर्वांचली के पास और कुछ हो न हो इस ‘हम’  में ही तो उसकी सारी नवाबियत है, और रक्तांचल बनाने वालों ने हमसे हमारा गुरूर छीन लिया बताइए। पूर्वांचल की स्टोरी में 'मैं' बोलता हुआ इन्सान मिमियाता हुआ लगता है, इसलिए हमने पहले तो यहीं पर इस सीरीज को पूर्वांचल से बेदखल कर दिया।

    ऊपर से गाली, भाई हमारे यहां बेटा अपने बाप के मुंह से गाली सुनकर बिदक जाता है। शालीन लोग हैं भाई हम। गाल्ली के आगे पीछे हम लोग जो बोलते हैं, भौकाल उससे बनता है, गाली से तो बवाल हो जाता है। अगर हम किसी को कहें, तुम्हारे ‘अंग विशेष’ पर ऐसा लतियाएंगे, दिमाग का ढिबरी बुझ जाएगी। जनरेटर की तरह डगडगाते फिरोगे! बताइए, कहीं से गाली लगी आपको? एक सीन में विजय सिंह पुलिस की वर्दी में वसीम खान के अड्डे में घुस जाता है, बताइए। भाईसाहब, हमारे यहां लड़के बम्मई वाले काका का चेहरा भुला गए होंगे लेकिन गोला बाजार थाना के 5 साल पुराने दरोगा, जो अब आजमगढ़ में पोस्टेड हैं, उन्हें पहचान जाएंगे। ऊपर से वही जमीन हड़पने की लड़ाई, वही दशहरे वाला मेला। मतलब सब कुछ बहुत-देखा दिखाया है।

    एक्टिंग के मामले में क्रांति प्रकाश झा ने जबरजस्त काम किया है। निकितन धीर, वसीम के रोल में दिख तो बड़े भौकाली रहे हैं, लेकिन उनके साथ मुंह खोला ढेंचू बोला वाला मामला हो जाता है। असली दमदार काम किया है सपोर्टिंग एक्टर्स ने रोंजिनी चक्रबर्ती, विक्रम कोचर, कृष्णा बिष्ट, वगैरह का काम बहुत बढ़िया है, इनके कैरेक्टर्स सीमा-कट्टा और सनकी, लिखे भी ठीक गए हैं। बाकी जो लोग पूर्वांचलियों को भोजपुरी गानों के नाम पर ट्रोल करते हैं, वो अब भी करते रहेंगे क्योंकि रक्तांचल में ऐसे टाइप के दो गाने फिट कर दिए गए हैं।

    कुल मिलाकर कहूँ तो ‘रक्तांचल’ पूर्वांचल की बाहुबली स्टोरीज़ का वही वर्ज़न है जो 15-20 साल पहले दिल्ली मुंबई आके बसे पूर्वांचली से आपको सुनने में मिलेगा। बस, इससे ज्यदा कुछ नहीं।

    हमारी तरफ से ‘रक्तांचल’ को 2 स्टार, हर हर महादेव!