जानिए कारगिल युद्ध के हीरो विक्रम बत्रा की ज़िन्दगी की असली कहानी, जिसे स्क्रीन पर निभाएंगे सिद्धार्थ मल्होत्रा !

    जानिए कारगिल युद्ध के हीरो विक्रम बत्रा की ज़िन्दगी की असली कहानी, जिसे स्क्रीन पर निभाएंगे सिद्धार्थ मल्होत्रा !

    डायरेक्टर-प्रोड्यूसर करण जौहर बॉलीवुड एक्टर सिद्धार्थ मल्होत्रा के साथ मिलकर 1999 में कारगिल युद्ध में शहीद हुए कैप्टेन विक्रम बत्रा के जीवन पर फिल्म बनाने जा रहे हैं। कैप्टेन बत्रा को कारगिल का शेरशाह भी कहा जाता है। ये एक बायोपिक फिल्म होगी, जिसमें सिद्धार्थ कैप्टेन बत्रा का किरदार निभाते नज़र आयेंगे। इसके साथ ही ये पहली बार है कि सिद्धार्थ एक बायोपिक में काम कर रहे हैं। जहां सिद्धार्थ अपने रोल को लेकर ख़ुश हैं वहीं कैप्टेन बत्रा के जीवन की कहानी हमारे देश के हर बच्चे, बूढ़े और जवान इन्सान का जानना भी ज़रूरी है। 1999 के कारगिल युद्ध में शहीद हुए कैप्टेन बत्रा हमारे देश के एक जाबाज़ हीरो से कम नहीं थे। आइये आपको बताते हैं उनके बहादुरी से भरे जीवन के बारे में।

    जानिए कारगिल युद्ध के हीरो विक्रम बत्रा की ज़िन्दगी की असली कहानी, जिसे स्क्रीन पर निभाएंगे सिद्धार्थ मल्होत्रा !

    9 सितम्बर 1974 को जन्में विक्रम बत्रा बचपन से ही बहादुर थे। पालमपुर के रहने वाले विक्रम स्कूल में ऑल-राउंडर रहे। वे पढ़ाई के साथ-साथ स्पोर्ट्स में भी बहुत अच्छे थे। सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल गिरधारी लाल बत्रा और स्कूल टीचर कमल कान्त के घर जन्में विक्रम बत्रा जुड़वाँ भाईयों में से एक थे। वे अपने भाई विशाल से 14 मिनट पहले जन्में थे। बचपन से ही विक्रम में देशभक्ति की भावना प्रबल थी और वे देश के लिए कुछ बड़ा करना चाहते थे। इसीलिए 1995 में अपनी स्नातक की पढ़ाई पुरी करने के बाद विक्रम ने कंबाइंड डिफेन्स सर्विसेज (CDS) के पेपर देने शुरू किया।

    कुछ बड़ा करने की चाह रखने वाले विक्रम ने होंगकोंग के एक फर्म द्वारा दी गयी नेवी मर्चेंट की नौकरी को छोड़ 1996 में भारतीय आर्मी में हिस्सा लिया था। इस बारे में अपनी माँ को विक्रम ने कहा था कि ज़िन्दगी में पैसा ही सबकुछ नहीं होता है। मुझे अपने जीवन में अपने देश के लिए कुछ बड़ा और अलग करना है। उनकी पहली पोस्टिंग जम्मू कश्मीर के बारामुला जिले के सपोरे में हुई थी।

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    1999 में जब कारगिल युद्ध की शुरुआत हुई तब विक्रम ने बेलगाम में अपना कमांडो कोर्स पूरा किया था और अपने परिवार के साथ घर पर होली मनाने गये हुए थे। वहीं उनके दोस्त ने उन्हें कहा था कि युद्ध की शुरुआत हो चुकी है और जल्द ही उन्हें बुला लिया जायेगा। जिसके जवाब में विक्रम ने कहा था कि मैं या तो जीतकर पाने देश का झंडा फेहरा का वापस आऊंगा या फिर उसमें लिपटकर। लेकिन मैं वापस ज़रूर आऊंगा।

    1 जून 1999 को विक्रम की टीम की ड्यूटी कारगिल में लगी थी और वे वहां पहुंच गये थे। इसके 18 दिन बाद 19 जून 1999 को उन्हें पॉइंट 5140 पर अपना पहला बड़ा युद्ध लड़ने का आर्डर मिला। खतरे और चुनौती के बावजूद विक्रम ने अपनी टीम को आगे बढाया और दुश्मन के कैंप को घेर लिया, उनके सिपाही मार गिराए और 13 जे एंड के राइफल जीत में बरामद की। भारत की जीत के बाद इस जगह का नाम टाइगर हिल पड़ा।

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    अपनी जीत से खुश विक्रम ने अपने कमांडर से बात करते हुए कहा था 'ये दिल मांगे मोरे'! यही बात ध्यान में रखते हुए करण ने अपने फिल्म का नाम ये रखा है। विक्रम को और ज्यादा करने की इच्छा थी। 29 जून को उन्होंने एक और खतरनाक ऑपरेशन पर जाते हुए अपने पिता से बात की थी और उन्हें कहा था कि वे फिकर ना करें और विक्रम बिल्कुल ठीक हैं। ये आखिरी बार था जब विक्रम की उनके घरवालों से बात हुई।

    विक्रम का अगला ऑपरेशन कारगिल युद्ध के सबसे खतरनाक माउंटेन वारफेयर कैंपेन था। 17000 फूट के पहाड़ पॉइंट 4875 पर बर्फ और कोहरे के बीच दुश्मन से लड़ने के लिए विक्रम ने अपनी टीम के साथ 7 जुलाई की रात को चढ़ाई शुरू की थी। पाकिस्तानी सैनिक 16000 फूट की ऊंचाई पर उनका इंतज़ार कर रहे थे। विक्रम को शेरशाह के कोड नाम से पुकारा जाता था और दुश्मन को पता था कि शेरशाह कौन है। उनकी बहादुरी के किस्से हमारे देश के साथ-साथ दुश्मन देश में भी मशहूर थे।

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    इस गंभीर लड़ाई में विक्रम अपने साथी कैप्टेन अनुज नायर के साथ मिलकर लड़े और दुश्मन के बंकर को खाली करवाया और उन्हें मार गिराया। इन दोनों की बहादुरी देशकर दुश्मन सेना के होश उड़ गये थे। विक्रम का युद्ध ख़त्म होने से कुछ समय पहले उनके एक जूनियर अफसर को धमाके की वजह से पैर में चोट लग गयी। विक्रम अपना बंकर छोड़ उनकी मदद करने जाने लगे तो उनके सूबेदार ने उन्हें रोका। इसपर विक्रम ने कहा कि तू बाल बच्चेदार है हट जा पीछे। तेज़ गोलीबारी की बीच विक्रम ने अपने साथी की ओर बढ़ते हुए दुश्मन की मशीन गन पर ग्रेनेड फेंके और उनके 5 सिपाहियों को मार गिराया। उन्होंने अपने साथी को उठा लिया था जब उनके सीने में गोली आकर लगी।

    गोली लगने के बावजूद विक्रम ने अपनी लड़ाई पूरी लड़ी और मिशन के ख़त्म होने के काफी समय बाद दम तोड़ा, जिसकी वजह से उनका नाम इतिहास के पन्नों में जुड़ गया। उनके साथी कैप्टेन अनुज नायर दुश्मन के बंकर खली करवाते हुए शहीद हो गये। सुबह तक भारत ने पॉइंट 4875 को वापस अपने कब्ज़े में कर लिया लेकिन अपने दो वीर जवानों को कैप्टेन विक्रम बत्रा और अनुज नायर को खो दिया।

    जानिए कारगिल युद्ध के हीरो विक्रम बत्रा की ज़िन्दगी की असली कहानी, जिसे स्क्रीन पर निभाएंगे सिद्धार्थ मल्होत्रा !

    आज कैप्टेन विक्रम बत्रा का स्टेचू पालमपुर के टाउन स्क्वायर पर लगा हुआ है। कैप्टेन विक्रम बत्रा को भारतीय सरकार ने उनकी बहादुरी और दुश्मन से लड़ने की अच्छी लीडरशिप के लिए परम वीर चक्र (जंग में बहादुरी दिखाने के लिए भारत का सबसे बड़ा अवार्ड) से नवाज़ा। इसके साथ ही कैप्टेन अनुज नायर को उनकी बहादुरी के लिए महा वीर चक्र (भारत का दूसरा सबसे बड़ा अवार्ड) से नवाज़ा।

    देश के जाबाज़ सिपाही रहे कैप्टेन विक्रम बत्रा दिल के रोमांटिक थे। 1995 में पंजाब यूनिवर्सिटी में उनकी दोस्ती डिंपल चीमा से हुई थी। इन दोनों ने ही कॉलेज छोड़ दिया था और विक्रम के कैप्टेन बनने से पहले इन दोनों का प्यार उफ़ान पर था। अपनी पोस्टिंग के बीच विक्रम डिंपल से मिलने भी आते-जाते रहते थे। इनका रिश्ता चार साल चला और इन्होंने शादी का प्लान बनाया था। लेकिन कारगिल युद्ध पर जाने के बाद विक्रम कभी वापस नहीं लौटे और डिंपल आज भी उन्हें याद करती हैं।

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