हमारे मां-बाप के रिश्तों को समझने के लिए 'बधाई हो' जैसी फिल्मों की और ज़रूरत है !

    हमारे मां-बाप के रिश्तों को समझने के लिए 'बधाई हो' जैसी फिल्मों की और ज़रूरत है !

    हम फिल्मों में क्या देखना चाहते हैं? ये सवाल किसी से भी पूछा जाए तो नॉर्मली यही जवाब आएंगे- लव स्टोरी, एक्शन, हिस्ट्री, सस्पेंस या ड्रामा। कोई बहुत ईमानदार हुआ तो शायद ‘सेक्स’ बोल दे। लेकिन ये कोई भी नहीं कहेगा कि उन्हें सिनेमा में मां-बाप का प्यार या सेक्स-लाइफ देखने को मिले। दरअसल, हम लोग ऐसे समाज में रहते हैं जहां सेक्स जैसी प्राकृतिक चीज़ को भी भूत मान लिया गया है। जिसका नाम लेना भी पाप है, और जिसके बारे में बात करना तो एकदम ही जुर्म है। ऐसे में एक फिल्म आती है ‘बधाई हो’ ! 

    इस फिल्म में बधाई इस बात की जाती है, कि शादी के लायक हो चुके एक लड़के की मम्मी प्रेग्नेंट हो गई हैं। उसके पापा ने अभी ही उसे यह खुशखबरी दी है। वो लड़का और 12वीं में पढ़ रहा उसका भाई इस बात से शॉक में हैं। लड़के की अपनी गर्लफ्रेंड है, जिसके साथ वो अपने प्यार भरे भविष्य के सपने देख रहा है। लड़का, लड़की के घर आया है और घर पर कोई नहीं है। टेंशन पहले से है, प्यार पाकर लड़का-लड़की दोनों इंटिमेट हो जाते हैं। लेकिन जब वो दोनों एक दूसरे के सबसे करीब होते हैं, तभी लड़के का ध्यान टूटता है। वो एक झटके में उठता है, जैसे सदियों गहरी नींद से उठा हो और लड़की से पूछता है- ‘तू ही बता, ये भी कोई मम्मी-पापा के करने की चीज़ है ?’ 

    ये कितनी अजीब बात है न, कि जिस क्रिया से हमारा जन्म हुआ उसी के बारे में समाज में बात करना अपवित्र टाइप है। सेक्स के बाद वो दूसरी चीज़ जिसके बारे में बात करने पर समाज के कानों में दर्द हो जाता है, वो है प्यार। हमारे समाज में प्यार वो सब्जेक्ट है जिसकी सिर्फ थ्योरी पढ़ाई जाती है, लेकिन प्रैक्टिकल करने पर फाइन लगाया जाता है। और मां-बाप के बीच प्यार तो एक ऐसी चीज़ है जिसके बारे में तो आजतक किसी ने सोचा ही नहीं। खासकर, जो हमारे समाज का मिडल क्लास तबका है, जिसमें सबसे ज्यादा लोग हैं, उन्होंने तो इस बला का नाम कभी सुना ही नहीं है।

    देश की अधिकतर जनता के सामने अगर आप किसी मां-बाप के बीच प्यार की कहें तो आधे से ज्यादा लोग शायद झटका खाकर गिर जाएं। लेकिन ये तो पक्का है कि उनमें से अधिकतर लोग शायद मानने से भी मना कर दें कि ऐसी कोई चीज़ होती भी है। पढ़ा सबने है कि प्यार होता है, ये भी पढ़ा है कि सेक्स भी होता है। लेकिन ये दोनों चीज़ें हमारे मां-बाप ने की होंगी, ये मानने को शायद कुछ ही लोग तैयार हों। हमारी झूठी नैतिकता और ढकोसलों भरे संस्कार हमें ये मानने से रोकते रहते हैं कि हमारे मां-बाप भी आखिर इंसान ही हैं। वो भी हमारी ही तरह प्यार कर सकते हैं, उन्हें भी सेक्स की ज़रूरत है। जैसा कि फिल्म ‘बधाई हो’ ने दिखाया है। हालांकि अधिक उम्र में प्रेगनेंसी और उससे होने वाली समस्याएं एक अलग पहलू हैं। 

    लेकिन ‘बधाई हो’ में अधिक उम्र के शादीशुदा दम्पत्तियों के प्रति समाज के उस रवैये को दिखाया गया है जहां सेक्स तो सेक्स, प्यार तक मंज़ूर नहीं है। आयुष्मान खुराना के मम्मी-पापा के रोल में नीना गुप्ता और गजराज राव ने उन बेचैनियों, समस्याओं को बहुत अच्छे से स्क्रीन पर उतारा है। बढ़ती उम्र के कपल्स की इन बातों और समस्याओं को समझने के लिए हमें ‘बधाई हो’ जैसी फिल्मों की बहुत ज़रूरत है।