'अंग्रेज़ी मीडियम' रिव्यू: इरफान खान की जानदार परफॉर्मेंस से भरी फिल्म नैतिकता का चैप्टर बन जाती है!
- रिव्यू
- अपडेट:
- लेखक: Subodh Mishra (एडिटोरियल टीम)
मूवी: Angrezi Medium
रेटेड : 3.0/5.0
कास्ट : Irrfan Khan, राधिका मदन , करीना कपूर
डायरेक्टर : Homi Adajania
इरफान ने अंग्रेज़ी मीडियम का शूट अपने ट्रीटमेंट के बीच में किया था। लेकिन स्क्रीन पर उन्हें देखकर ये बात सोच पाना एकदम नामुमकिन है। घसीटेराम के पड़पोते चम्पक में आपको इरफान दिखते ही नहीं, दिखता है सिर्फ और सिर्फ उनका किरदार चम्पक। और इरफान अगर केक हैं तो चेरी हैं दीपक डोबरियाल। बंदा एक-एक सीन में इरफान के साथ शोल्डर टू शोल्डर मैच करता नज़र आता है। माननीय पंकज त्रिपाठी जी के शब्दों में कहें तो ये छोटा वाला न... बहुत हरामी है।
अंग्रेज़ी मीडियम की कहानी है एक बाप बेटी की। चम्पक और तारिका उदयपुर में रहते हैं। चम्पक बड़े से खानदान से हैं जहां सबलोग पीढ़ियों पुराने बुजुर्ग घसीटेराम के नाम से मिठाई की दुकानें चलाते हैं और उनमें से कौन घसीटेराम का असली वारिस है इस बात पर मुकदमा लड़ते रहते हैं। तारिका का बचपन से एक ही सपना है कि उसे विदेश जाना है। स्कूल पास करते ही तारिका के हाथ अपना सपना पूरा करने का एक मौका आता है मगर वहाँ कुछ स्यापा हो जाता है। लेकिन पंगा ये है की इस कांड के सेंटर मे भी चम्पक जी ही हैं, यानी तारिका के पिता जी। तो अब चम्पक जी का मिशन है बेटी को लंदन पहुंचा के रहना। अब लंदन जाना, दिल्ली से ऋषिकेश जाने जितना सस्ता तो नहीं है न! और सपनों के बीच पैसा आते ही कहानी में बवाल कटने लगता है, ये हम सब जानते हैं। तो क्या चम्पक जी अपनी बिटिया का एडमिशन लंदन मे करवा पाएंगे? इसके लिए वो पैसा कहाँ से लाएँगे? और इस पूरी अफरातफरी मे क्या चम्पक और तारिका उसी तरह प्यारे बाप-बेटी रह पाएंगे जैसे वो पहले थे? ये फिल्म देखकर पता लगाएँ।
अब बात करते हैं मुद्दे की। ‘अंग्रेज़ी मीडियम’ वैसे अच्छी फिल्म है देखी जा सकती है। फ़र्स्ट हाफ मे फिल्म जहां से शुरू होती है वो मज़ेदार है चम्पक और तारिका की केमिस्ट्री बहुत नैचुरल है। दोनों बहुत क्यूट बाप बेटी हैं। ऊपर से चम्पक का चचेरा भाई गोपी। चम्पक और गोपी में आपस की बड़ी लड़ाई है लेकिन ये लड़ाई अपनी जगह और घर की बात अपनी जगह। दोनों साथ शराब पीते हैं और पी के ‘तू भाई है मेरा’ हो जाते हैं। पूरी स्टोरी मे गोपी जिस तरह चम्पक के साथ-साथ उसकी कोशिशों को पूरा करवाने में लगा रहता है वो बहुत मज़ेदार है।
लेकिन सेकंड हाफ शुरू होते ही जो होना शुरू होता है वो भेजे से बाहर बाउन्स होने लगता है। मतलब दोनों भाई लंदन एयरपोर्ट पर फंस जाते हैं और उल्टे पाँव इंडिया डिपोर्ट कर दिए जाते हैं। लेकिन फिर से लंदन पहुँच जाते हैं, वो भी उस कंट्री के सिटिज़न बनकर जहां के लोगों को अपने पड़ोसी मुल्क तक मे एंट्री नहीं मिल रही। अंदाज़ा लगाइए ये कौन सा देश है? अरे भई 90s थोड़ी चल रहा है कि कुछ भी पिला दोगे घोलकर... करीना कपूर और डिंपल कपाड़िया की एंट्री के बाद स्टोरी और स्क्रीनप्ले का और भी अब्बा-हारमोनियम हो जाता है। मतलब करीना और डिंपल जी दोनों अपने कैरेक्टर मे फिट हैं और उन्होने परफॉर्म भी अच्छा किया है। मगर उनके कैरेक्टर सही से लिखे नहीं गए। रणवीर शौरी इस फिल्म में क्या कर रहे हैं ये तो शायद ही कोई बता सके! पंकज त्रिपाठी 5 मिनट के लिए आते हैं, और माहौल बना देते हैं। और आपको फील होता है कि इस बंदे को थोड़ा और स्क्रीन टाइम दे देते तो क्या घिस जाता! और सबसे बड़ी दिक्कत ये कि नैतिकता का चैप्टर बनने के चक्कर में फिल्म उस पॉइंट से ही भाग गई जिस पॉइंट से शुरू हुई थी। तारिका के सपने और चम्पक के एफर्ट से शुरू हुई फिल्म, बच्चों की फ़्रीडम वर्सेज़ पैरेंट्स की कुर्बानी मे कन्वर्ट हो जाती है।
फिल्म के एंड मे इरफान का कुछ ऐसा डाइलॉग है कि बच्चों की उंगली नहीं छोड़ेंगे तो वो लौटकर गले कैसे लगाएंगे! लेकिन दिक्कत यही है कि पूरी फिल्म मे चम्पक जी ने तारिका की उंगली छोड़ कर उसे सुकून से उड़ने ही नहीं दिया। और अगर नीयत सही हो लेकिन आइडिया खराब हो तो भी नहीं जमता न! लेकिन पूरी फिल्म मे परफॉर्मेंस सबकी कमाल की हैं। इरफान और दीपक डोबरियाल तो हैं ही एकदम पॉलिश एक्टर्स लेकिन राधिका मदान भी किसी से कम नहीं हैं। ‘पटाखा’ और ‘मर्द को दर्द नहीं होता’ के बाद एकबार फिर इरफान के साथ वाले सीन्स में राधिका बहुत कमाल हैं। एक सीन में तारिका ने चम्पक को हग किया हुआ है। इस सीन मे राधिका के हाथ पर नज़र रखने पर आपको समझ आएगा कि उनकी परफॉर्मेंस मे कितनी बारीकी है।
कुल मिलाकर ‘अंग्रेज़ी मीडियम’ इरफान खान, दीपक डोबरियाल और राधिका मदान की खूबसूरत केमिस्ट्री और मज़ेदार कॉमेडी भरी सॉलिड परफॉर्मेंस के लिए ज़रूर देखी जा सकती है। फिल्म आपको थोड़ी इमोशनल भी लग सकती है मगर थोड़ा सा नैतिकता का चैप्टर है।
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