'बाज़ार' रिव्यू: सैफ अली खान के बेहतरीन नेगेटिव रोल और ठीकठाक कहानी के लिए देखी जा सकती है फिल्म !
- रिव्यू
- अपडेट:
- लेखक: Subodh Mishra (एडिटोरियल टीम)
मूवी: बाजार
रेटेड : 2.5/5.0
कास्ट : सैफ अली खान , Rohan Mehra, राधिका आप्टे , Chitrangda Singh, मनीष चौधरी
डायरेक्टर : Gauravv K. Chawla
बॉलीवुड में शेयर मार्किट और स्टॉक एक्सचेंज जैसी चीज़ों पर बहुत फ़िल्में नहीं बनी हैं। इसलिए सैफ अली खान और रोहन मेहरा स्टारर ‘बाज़ार’ का ट्रेलर आते ही लोगों में इस फिल्म को लेकर अच्छी खासी एक्साइटमेंट थी। ‘बाज़ार’ की सबसे बड़ी खासियत है इसकी कहानी में परतें। हालांकि फिल्म बहुत जगह ढीली है, लेकिन इसके अपमे मोमेंट्स भी हैं जहां आपको फिल्म बहुत इंटरेस्टिंग लगेगी।

‘बाज़ार’ कहानी है, रिज़वान अहमद (रोहन मेहरा) की, जो इलाहबाद से शेयर मार्किट में ट्रेडर बनने आया है। रिज़वान शकुन कोठारी (सैफ अली खान) को शेयर मार्किट के धंधे में अपना खुदा मानता है और उसके साथ कम करने का सपना लिए एक कम्पनी में नौकरी के लिए जाता है। और यहां उसकी सीनियर है प्रिया यानी राधिका आप्टे। प्रिया रिज़वान को शेयर ट्रेडिंग की ए बी सी डी पढ़ाती है और इसी दौरान उन दोनों में प्यार हो जाता है। प्रिया ही रिज़वान को शकुन तक पहुंचाने का रास्ता बनाती है।

इधर शेयर मार्किट की पुलिस कहे जाने वाली सरकारी एजेंसी सेबी (SEBI) शकुन के पीछे नज़र रखे हुए है। शकुन का मानना है कि वफादारी बकरों का काम है इंसानों का नहीं, उनके पास तो दिमाग है। लेकिन वो शकुन कोठारी का वफादार बनना चाहता है। क्या रिज़वान की वफादारी उसकी जिंदगी सेट कर देगी ? क्या शकुन कोठारी रिज़वान को उसका बड़ा मौका देगा ? और रिज़वान अहमद शेयर ट्रेडिंग के नंगे खेल में कहां तक जाएगा ? यही है फिल्म ‘बाज़ार’ की कहानी।

परफॉरमेंस की बात करें तो सैफ अली खान की एक्टिंग हर नए प्रोजेक्ट के साथ इतनी बेहतरीन होती जा रही है कि वो कुछ दिन में अपना एक्टिंग स्कूल खोल सकते हैं। नेगेटिव रोल में सैफ को देखना बहुत ज़्यादा मजेदार होता है। रोहन मेहरा अपनी डेब्यू फिल्म में ही बहुत इम्प्रेसिव हैं। उनका एक्टिंग टैलेंट ये बता रहा है कि वो हमें और भी अच्छी फ़िल्में दे सकते हैं। राधिका आप्टे, चित्रांगदा सिंह और मनीष चौधरी अपने-अपने किरदारों में फिट हैं।

‘बाज़ार’ की खराब बात ये है कि फिल्म जहां पर ढीली है वहां बाहुत ढ़ीली है, लेकिन जहां पर मजेदार है वहां बहुत मजेदार है। फिल्म में बेवजह के गाने ठूंसे गए हैं। गाने किसी काम के नहीं हैं और बेवजह कहानी की स्पीड को कम करते हैं।
गौरव के चावला डेब्यूटेंट डायरेक्टर हैं और ‘बाज़ार’ बताती है कि उन्होंने मेहनत तो की है मगर वो तय नहीं कर पाए कि उन्हें कहानी पर ज़्यादा ध्यान देना है या उसे एक पॉपुलर मल्टीप्लेक्स ऑडियंस के लायक बनाने में।
कुल मिलाकर ‘बाज़ार’ देखी तो जा सकती है मगर तभी जब आप फिल्म में बहुत कुछ इन्वेस्ट करना सकते हों।
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