'जजमेंटल है क्या' रिव्यू: कंगना और राजकुमार राव की जानदार एक्टिंग और अनोखी कहानी के लिए फिल्म ज़रूर देखें !
- रिव्यू
- अपडेट:
- लेखक: Subodh Mishra (एडिटोरियल टीम)
मूवी: मेंटल है क्या
रेटेड : 3.5/5.0
कास्ट : कंगना रनौत , राजकुमार राव , अम्यरा दस्तूर
डायरेक्टर : Prakash Kovelamudi
फिल्म ‘जजमेंटल है क्या’ कंगना रानौत और राजकुमार राव की जानदार परफॉरमेंस का वो पहाड़ है, जहाँ तक दोबारा सिर्फ यही दोनों एक्टर पहुँच सकते हैं। दोनों ने एक बार फिर साबित किया है कि लोग क्यों इनके ज़बरदस्त फैन बने हुए हैं। ‘जजमेंटल है क्या’ ऐसी कमाल साइकोलॉजिकल थ्रिलर है जैसी बहुत लम्बे वक़्त से हमने बॉलीवुड में नहीं देखी है।
कहानी में बस 2 किरदार हैं- बॉबी और केशव। एक मर्डर है, और साइकोलॉजिकल परेशानी। फिल्म पूरी तरह से इन दोनों कैरेक्टर्स पर ही फोकस रहती है, लेकिन फिर भी लास्ट तक आपको इस तलाश में उलझाए रखती है कि मर्डर किसने किया और कैसे किया। बॉबी (कंगना) एक डबिंग आर्टिस्ट है। अपने पास्ट की दुर्घटनाओं की वजह से उसे हलकी सी मेंटल परेशानी है।

केशव (राजकुमार) और उसकी वाइफ रीमा (अमायरा दस्तूर) बॉबी के यहाँ किराएदार बनकर रहने आते हैं। केशव और रीमा का प्यार ज़ोरदार स्पीड से चलता रहता है। अपनी अलग ही दुनिया में रहने वाली बॉबी के लिए केशव और रीमा का रोमांस कुछ ज्यादा ही परफेक्ट है। घबराई हुई सी, खोई हुई सी बॉबी को इनका प्यार बिल्कुल हजम नहीं होता। कहानी में बड़ा ट्विस्ट तब आता है, जब किचन में लगी आग में जलकर रीमा की मौत हो जाती है। यहाँ से कहानी जो मोड़ लेती है, वो ज़बरदस्त ट्विस्ट से भरा हुआ है और कदम-कदम पर ऑडियंस का टेस्ट लेने वाला है।
कंगना की परफॉरमेंस एक बार फिर आपको हिलाकर रख देती है। बॉबी की दुनिया को जिस तरह कंगना ने स्क्रीन पर उतारा है, वो जितना आपको सोचने को मजबूर करेगा, उतना ही परेशां भी और अक्सर उसकी हरकतों को देखकर हॉल में हंसी गूंजती रहेगी। चुटकी बजाते ही रंग बदल लेने वाले इस किरदार को जीना कंगना के लिए बिल्कुल भी आसान नहीं रहा होगा। राजकुमार राव हमेशा की तरह अपने एक्ट में पानी की तरह घुल गए हैं। यान उनके किरदार में एक नया एलिमेंट भी है, राज को न सिर्फ किरदार में डूबना था बल्कि हैण्डसम भी दिखना था। और ये दोनों ही काम उन्होंने बहुत मज़े से किए हैं।
कनिका ढिल्लों की कहानी और डायलॉग ‘जजमेंटल है क्या’ की जान हैं। फिल्म जितनी दिलचस्प है उतनी ही चटपटी भी। फिल्म के बीच में रामायण का रेफरेंस फिट करना उनकी कहानी का इंटरेस्टिंग पार्ट है। और इस बार तो वो स्क्रीन पर एक छोटे से किरदार में भी नज़र आईं, जो फ़ॉर अ चेंज मजेदार थे।
‘जजमेंटल है क्या’ बहुत बहादुरी से लिखी हुई कहानी है। ऐसी फिल्मों के बिजनेस को लेकर कोई श्योर नहीं रहता, ऐसे में इसे इतनी बेहतरी से पेश करना कमाल है। डायरेक्टर प्रकाश कोवेलामुदी ने ये रिस्क उठाया है और कहानी को एक बड़े नए स्टाइल में पेश किया है।

फिल्म की शुरुआत से लेकर अंत तक कहानी कहने का उनका स्टाइल बहुत मजेदार है। उन्होंने साउंड का बहुत अच्छा इस्तेमाल किया है, फिल्म की सिनेमेटोग्राफी कहानी को रंग देती है। लेकिन ‘जजमेंटल है क्या’ में एक दिक्कत है इसका सेकंड हाफ। इंटरवल के बाद फिल्म के कुछ सीन बेवजह लम्बे लगते हैं। कई जगह स्क्रीन पर बहुत कुछ ज्यादा करने की कोशिश नज़र आती है। क्लाइमेक्स तक आते-आते स्पीड थोड़ी ज्यादा हो जाती है, लेकिन फिल्म से आपका ध्यान नहीं टूटता।
कुल मिलाकर कहें तो ‘जजमेंटल है क्या’ नए स्टाइल में अनोखी कहानी कहने का एक ब्रेव रिस्क है। जिसमें कंगना रानौत और राजकुमार राव की परफॉरमेंस जान फूँक देती है। फिल्म कुछ अलग तरह की है, इसलिए हर तरह की ऑडियंस को पसंद नहीं आएगी। लेकिन कुछ नया और अनोखा देखने वालों को फिल्म काफी पसंद आएगी।
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