शकीला रिव्यू: ऋचा चड्ढा और पंकज त्रिपाठी की सॉलिड परफॉर्मेंस, अच्छी कहानी की खराब राइटिंग को नहीं छुपा सकी!
- रिव्यू
- अपडेट:
- लेखक: Subodh Mishra (एडिटोरियल टीम)
मूवी: Shakeela
रेटेड : 1.5/5.0
कास्ट : ऋचा चड्डा, Pankaj Tripathi, Rajeev Pillai
डायरेक्टर : Indrajith Lankesh
ऋचा चड्ढा और पंकज त्रिपाठी जैसे धांसू परफॉर्मर, साउथ की एडल्ट फिल्म स्टार के संघर्ष की रियल लाइफ कहानी और पैसे खर्च करने को तैयार एक प्रोड्यूसर… फिल्म इंस्टीटयूट में पढ़ रहे कितने ही स्टूडेंट्स को ये तीन चीज़ें एक साथ मिल जाएँ तो वो सिनेमा स्क्रीन पर जादू कर दें। लेकिन डायरेक्टर इंद्रजीत लंकेश ने बनाया क्या? एक पोटेन्शियल दमदार फिल्म का मुरब्बा, जिसपर रोड-रोलर भी चला दें तो आधा बूंद रस नहीं निकलेगा!
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शकीला में एक बहुत दमदार फिल्म होने के सारे लक्षण थे, लेकिन हाय रे स्क्रिप्ट… पूरी फिल्म को ले डूबी! मुझे ऐसा लगा जैसे फिल्म के राइटर्स ने अपनी फीस के आधे पैसे देकर किसी नए रंगरूट को फिल्म लिखने के लिए दे दी थी। और उस बंदे ने भी मिले हुए पैसों में से आधे आगे देकर अपने किसी चेले से फिल्म लिखवाई है। शकीला की शुरुआत से ही ये ऋचा चड्ढा के भरपूर क्लीवेज के साथ ये बता दिया गया कि शकीला के काम का नेचर क्या था। लेकिन जैसे ही उसके बचपन की कहानी शुरू होती है और 6 लोगों का बेहद गरीब परिवार आपके सामने आता है, आप सॉफ्ट-पॉर्न टाइप फिल्मों की, इस टॉप एक्ट्रेस की कहानी में दिलचस्पी लेने लगते हैं। मगर स्क्रीन पर जो हरकतें हुईं, वो किसी भी तरह से एंटरटेनिंग तो नहीं ही कहीं जा सकतीं।
सोचिए, एक लड़की मजबूरी में एडल्ट फिल्मों में काम कर रही है, क्योंकि उसका परिवार बहुत गरीब है और बाप दुनिया में नहीं रहा। उसकी मां ही पैसे के लिए उसे धोखा दे रही है। इंडस्ट्री का टॉप मेल सुपरस्टार उसका करियर तबाह करने में लगा हुआ है। इस कहानी को कितना एक्सप्लोर किया जा सकता था, मगर ढीली स्टोरी-टेलिंग ने बेड़ा गर्क कर दिया। फिल्म की शुरुआत यहाँ से होती है कि शकीला अपनी बायोपिक बनाना चाहती है और इंडस्ट्री के टॉप राईटर से स्टोरी लिखवाने के लिए जाती है, मगर उसे तो शकीला की कहानी पर ही यकीन नहीं है और इसलिए वो शकीला का नार्को टेस्ट करवाते हुए कहानी सुनता है। अगर नार्को टेस्ट ऐसे होते हैं जैसे इस फिल्म में हुआ है, फिर तो ये बहुत फनी ही चीज़ है सच में।
शकीला की स्टोरी नैतिकता के चैप्टर से अलग कर के दिखाई जाती तो ये एक बहुत पावरफुल कहानी होती, मगर फिल्म खुद नैतिकता का वही लेक्चर सा देने लगती है, जहां खड़े होकर समाज शकीला जैसे कलाकारों को जज करता है। शकीला और उसकी बॉडी डबल का बहन जैसा रिश्ता, उनके मोमेंट्स एक्सप्लोर होते तो फिल्म अलग ही लेवल पर चली जाती मगर छोड़िए क्या ही कहें। ऋचा चड्ढा ने शकीला के किरदार में अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी है, अगर स्क्रिप्ट अच्छी होती तो ये फिल्म अलग लेवल पर होती। पंकज त्रिपाठी एक फ्रस्ट्रेटेड, मेल ईगो से भरे सुपरस्टार के रोल में परफेक्ट से भी ऊपर हैं और हर बार की तरह फिर से मज़ेदार हैं। लेकिन फिर भी, एक्टर्स का लगाया दम खराब स्क्रिप्ट की भरपाई कहाँ तक करेगा!
शकीला एक बहुत अच्छा मौका था जिसे एक मास्टरपीस स्टोरी में बदला जा सकता था, मगर ये मौका राइटर्स के ढीलेपन का शिकार हो गया।
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