द व्हाइट टाइगर रिव्यू: आदर्श गौरव, प्रियंका चोपड़ा का काम और विडंबनाओं भरी कहानी जानदार हैं!
- रिव्यू
- अपडेट:
- लेखक: Subodh Mishra (एडिटोरियल टीम)
मूवी: The White Tiger
रेटेड : 3.0/5.0
कास्ट : प्रियंका चोपड़ा , राजकुमार राव
डायरेक्टर : Ramin Bahrani
मैंने कई सालों पहले अरविंद अडिगा की ‘द व्हाइट टाइगर’ पढ़ी थी। ‘मैन बुकर प्राइज़’ विनिंग ये नॉवेल तब भी मुझे ठीक लगा था। मगर उस वक़्त भी मुझे इससे एक शिकायत थी। मेरे लिए बड़ा सवाल ये था कि इसी नॉवेल पर बनी गौरव आदर्श, प्रियंका चोपड़ा और राजकुमार राव की फिल्म क्या मेरी इस शिकायत को दूर कर पाएगी?
सबसे पहले तो न्यूकमर गौरव आदर्श ने ‘द व्हाइट टाइगर’ में जो काम किया है, वो ऑनस्क्रीन परफॉर्मेंस के मामले में, अपने आप में एक बेंचमार्क जैसा है। धनबाद के किसी लक्ष्मणगढ़ जैसे एकदम अनजान इलाके रहने वाले बलराम हलवाई के कैरेक्टर में आदर्श की बारीकियाँ बहुत कमाल की हैं और जिस तरह उन्होने अपनी भाषा को उसमें ढाला है वो शानदार है। फिल्म के लगभग आधे हिस्से में कार के रियर व्यू मिरर में गौरव की आँखें नज़र आ रही हैं और उन आँखों में आपको लालच, गुस्सा, शर्म, काइयाँपन सब एकदम साफ़ नज़र आता है।

सपोर्टिंग रोल में, पिंकी का कैरेक्टर प्ले कर रहीं प्रियंका चोपड़ा की ये परफॉर्मेंस, शायद पिछली कुछ फिल्मों की उनकी बेस्ट परफॉर्मेंस कही जा सकती है। लेकिन प्रियंका के ठीक अपोज़िट, राजकुमार राव को मैंने काफी वक़्त बाद थोड़ा सा ट्रैक से इधर-उधर देखा। ऐसा लगा जैसे ‘अमेरिका रिटर्न’ दिखने और साउंड करने का प्रेशर उनपर थोड़ा भारी पड़ गया। ‘द व्हाइट टाइगर’ के डायरेक्टर रमिन बहरानी ने ‘मैन पुश कार्ट’ जैसी कमाल की फिल्में बनाई हैं।
उनके नजरिए में इंडिया और भारत का जो दोहरापन है वो साफ दिखता है। उदाहरण के लिए- जहां एक तरफ समाजवाद की बात करने वाले लोग खुद कट्टर पूंजीवादी हो सकते हैं, और वंचित जनता से सहानुभूति रखने वाला खुद अपनी सुविधाओं के खूब मज़े ले सकता है। 2 लाइन में फिल्म की कहानी का परिचय दूँ तो बलराम हलवाई (आदर्श गौरव) लक्ष्मणगढ़ जैसे, नक्शे से भी गायब किसी छोटे से गाँव से है और उसकी कहानी कर्ज़ में डूबे बाप के, बिना इलाज मर जाने से शुरू होती है। जवान होते ही वो तय कर लेता है कि गाँव के इलाके के सबसे बड़े रईस के घर काम करके ही उसका कुछ भला होने वाला है और वो उसके अमेरिका रिटर्न बेटे, अशोक (राजकुमार राव) का ड्राईवर बन जाता है, पिंकी (प्रियंका) अशोक की वाइफ़ है।

अपने रईस मालिकों से वो क्या सीखता है, अपने कंधों से गरीबी, कास्ट और शोषण का मलबा उतारने के लिए वो क्या कुछ करता है। यही फिल्म की स्टोरी है। अब आते हैं ‘द व्हाइट टाइगर’ से मेरी शिकायत पर। मैं खुद ऐसी जगह से आता हूँ जहां जाति-वर्ग विभाजन और शोषण सुबह आँख खुलने के साथ दिखना शुरू हो जाता है। इस नॉवेल में भी मुझे दिक्कत ये लगी थी कि ये बलराम हलवाई के दबाए जाने को इस संदर्भ में बहुत सॉलिड तरीके से नहीं दिखा पाता। मतलब, मैं नहीं चाहता कि बलराम को ‘द व्हाइट टाइगर’ अपने समाज का योद्धा या क्रांतिकारी दिखाए।
असल में, बलराम को लगा कि इस पूरे जंजाल से निकालने का रास्ता पैसा है, और उसकी ड्राइविंग फोर्स वो लालच है। लेकिन अगर बलराम की ड्राइविंग फोर्स लालच है, तो उसपर और फोकस होना चाहिए था। इसके अलावा फिल्म की पेस एक इशू है। तकनीकी तौर पर फिल्म मज़ेदार है और एक बार के लिए तो ज़रूर देखी जा सकती है।
मतलब, कुल जमा बात ये है कि ये व्हाइट टाइगर अपने जलवे तो दिखाता है, लेकिन इसकी गुर्राहट में बहुत ज़बरदस्त ज़ोर नहीं है। हाँ, देखने में एक अनोखी चीज़ है, बस इसलिए देख सकते हैं।
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