‘दसवीं’ रिव्यू: अभिषेक बच्चन, निमरत कौर की गुदगुदाती कहानी हुई पास; टॉपर यामी गौतम ने संभाला क्लास का स्कोर
दसवीं
पॉलिटिशियन चौधरी ने मुख्यमंत्री बनकर संभाला है पूरा राज्य मगर पढ़ाई में है नील बटे सन्नाटा। मगर हालात से चैलेन्ज लेकर चौधरी ने ठान ली है दसवीं पास करने की कसम। क्या पूरा होगा चैलेन्ज या जाएगी मुख्यमंत्री की कुर्सी?
अभिषेक बच्चन और निमरत कौर को ‘दसवीं’ के ट्रेलर में ही देखकर समझ आ गया था कि हरियाणा की बोली कॉपी करने में ये दर्शकों के कान को बहुत चोट पहुंचाने वाले हैं। एक नई ज़बान सीखने का इनका सारा एफर्ट ‘ट’ और ‘ठ’ में खर्च हो गया।
फिल्म के पहले 10-15 मिनट इनके एक्सेंट को बर्दाश्त करने भर की हिम्मत जुटाने में लग जाते हैं। लेकिन ये लेवल पार कर लेने के बाद जब आप फिल्म की कहानी पर थोड़ा यकीन दिखाना शुरू करेंगे तो ‘दसवीं’ में से घर परिवार के साथ देखने लायक एक ठीक-ठाक फिल्म निकल आएगी।
मुख्यमंत्री गंगा राम चौधरी (अभिषेक बच्चन) की सियासत पर आफत उन्हें पहुंचा देती है जेल, जहां के कायदे कानून उन्हें लगते हैं खेल। लेकिन नई सुपरिन्टेन्डेन्ट ज्योति देसवाल के आने के बाद उनका जीना हो जाता है मुहाल और फिर इस तरह बदलते हैं हालात कि आ जाती है ईगो वाली बात। और इस ईगो के दम में चौधरी साहब खा लेते हैं कसम कि दसवीं कर के रहेंगे हम, वरना मुख्यमंत्री की कुर्सी से हमारा प्रेम ख़त्म! उधर चौधरी साहब के जाने के बाद उनकी सत्ता संभाल रही उनकी चौधरानी को अपनी नई पारी लगने लगती है तूफानी और वो कड़ी करने लगती हैं अलग परेशानी। बस इतनी सी है ‘दसवीं’ की कहानी।
अभिषेक बच्चन और निमरत कौर ने अपने रोल्स में अपने दम भर जान डालने की कोशिश बहुत की है लेकिन फिल्म देखते हुए लगा कि जैसे ये इनके बेस्ट से काफी दूर था। यामी गौतम ने अपने रोल को इन दोनों के मुकाबले ज्यादा बेहतर निभाया है। लेकिन तीनों ही कैरेक्टर्स में असल समस्या परफॉरमेंस की नहीं राइटिंग की है।
तीनों किरदार और कहानी हरियाणा में सेट लगते हैं, लेकिन ये वहां से मैच नहीं करते बल्कि उनका कैरिकेचर सा बना देते हैं। ठीक उसी तरह जैसे फिल्म में स्टेट का नाम हरियाणा है नहीं, हरित प्रदेश है। इसीलिए इस सारे ड्रामे के बीच एक किरदार बहुत अच्छा लगता है- घंटी।
डिजिटल कंटेंट में ‘छोटे मियां’ के नाम से फेमस अरुण कुशवाहा का काम, कॉमिक टाइमिंग और अंदाज़ पर्याप्त हंसी का खज़ाना है और समझ से बाहर लगते लीड किरदारों के बीच घंटी को देखकर आप भी कहेंगे कि घंटी तो भगवान है! डायरेक्टर तुषार जलोटा की ये फिल्म एंटरटेनमेंट के साथ ये मैसेज देने की कोशिश करती है कि लाइफ में एजुकेशन कितनी ज़रूरी है। लेकिन ‘दसवीं’ का एंटरटेनमेंट तो बहुत ज़ोरदार नहीं ही है, साथ ही मैसेज देने के मामले में भी ये थोपा हुआ लेक्चर लगती है।
हालांकि ऐसा नहीं है कि सब बुरा ही बुरा है, ये फिल्म सबसे अच्छी वहीं बैठती है जहां ये न एंटरटेनमेंट देने की कोशिश कर रही है न मैसेज। हिस्सों में ये फिल्म्स अपना जादू करती है और कुछ एक डायलॉग्स में थोड़ी गहरी बातों तक जाती है। फिल्म में हिस्ट्री की पढ़ाई से रिलेटेड एक बहुत बढ़िया टेक है और ये बहुत बेहतरीन लगा।
कुल मिलाकर ‘दसवीं’ एक ‘वन टाइम वाच’ फिल्म है जो फैमिली वाला माहौल में आराम से नेटफ्लिक्स पर लगा कर बैठा जा सकता है।