Laapataa Ladies Review: मस्ती-मजाक में कई गंभीर संदेश देती है किरण राव की फिल्म, हर एक कैरेक्टर से हो जाएगा प्यार
लापता लेडीज
किरण राव की फिल्म लापता लेडीज गांव देहात की कहानी के साथ समाज के हर तबके के लिए मैसेज देती है। फिल्म एंटरटेनिंग भी है और बहुत सादगी और खूबसूरती के साथ दिखाई गई है।
धोबी घाट के बाद एक बार फिर किरण राव ने डायरेक्टर की कुर्सी संभाली है और हम सबके सामने लापता लेडीज नाम की फिल्म पेश कर दी है। फिल्म भले ही 1 मार्च को रिलीज हो रही है लेकिन इसकी पहले ही काफी चर्चाएं हो रही है। फिल्म का ट्रेलर देखकर ही आप समझ गए होंगे कि इसमें गांव-देहात की कहानी दिखाई जाएगी। लेकिन लापता लेडीज में सिर्फ मस्ती-मजाक और सस्पेंस ही नहीं बल्कि कई गंभीर संदेश भी हैं, जो हमारी सोसाइटी को समझना बहुत जरूरी है। फिल्म सिर्फ एंटरटेनिंग ही नहीं है बल्कि सामाजिक सीख भी देती है।
फिल्म की कहानी?
लापता लेडीज की कहानी एक शादी से शुरू होती है जहां दीपक नाम का एक गांव का लड़का फूल नाम की लड़की को ब्याह के घर ला रहा होता है। लेकिन ट्रेन में और भी जोड़े शादी करके बैठे होते हैं। रात में ही उनका स्टेशन आता है। दीपक गलती से दूसरी दुल्हन को अपने साथ उतार लेता है और फूल को दूसरा शख्स अपने साथ स्टेशन पर उतारता है। लेकिन दूसरे शख्स को स्टेशन पर ही दिख जाता है कि फूल उसकी दुल्हन नहीं है और नतीजा ये कि वो स्टेशन पर ही रह जाती है और अपने पति की राह देखती है। जबकि दीपक के साथ वाली दुल्हन पुष्पा रानी उसके साथ उसके घर चली जाती है।
हालांकि वो ये जानबूझकर करती है क्योंकि उसका मकसद कुछ और होता है लेकिन जैसा आपने ट्रेलर में देखा है मामला उतना शेडी नहीं है। दीपक इधर अपनी पत्नी को ढूंढता है लेकिन उसका परिवार इस दुल्हन को भी साथ रख लेता है। क्या आखिर में दोनों दुल्हनें अपनी सही जगह पर पहुंच पाती हैं। अगर पहुंच भी जाती हैं तो फिर कहानी में रह ही क्या गया? ये सब जानने के लिए तो आपको फिल्म देखनी ही होगी।
फिल्म में क्या अच्छा?
लापता लेडीज में कई मुद्दे दिखाए गए हैं जैसे कि दहेज प्रथा, भ्रष्टाचार, अशिक्षा, गरीबी और लड़कियों का पढ़ाई के लिए संघर्ष। वहीं घूंघट की वजह से तो दुल्हनों की अदला बदली ही होती है। लेकिन हां समस्यों के साथ साथ समधान भी दिखाया है। बिना हो हल्ला मचाए ये फिल्म महिला सशक्तिकरण के अच्छे उदाहरण देती है।
फिल्म में आपको नए एक्टर्स नितांशी गोयल, प्रतिभा रांटा, स्पर्श श्रीवास्तव की एक्टिंग देखकर आपको मजा आ जाएगा। वहीं रवि किशन और छाया कदम की तो अलग ही बात है। रवि किशन की इस फिल्म में अलग से तारीफ करनी होगी। उन्होंने तो फिल्म में अलग ही समा बांध दिया है। उनके साथ दुर्गेश कुमार का छोटा ही सही लेकिन बढ़िया रोल है। छाया कदम ने मंजू माई बनकर दिल ही जीत लिया है।
किरण राव ने लापता लेडीज को भले ही हिंदी भाषा में रखा है लेकिन भोजपुरी की पूरी फील बरकरार है। फिल्म की छोटे शहर की छोटी सी कहानी बहुत बड़े बड़े संदेश दे जाती है। फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक भी अच्छा है। खासतौर से सुखविंदर का गाना सुनकर आपको मजा आ जाएगा। फिल्म का स्क्रीनप्ले और सिनेमेटोग्राफी काफी उम्दा है।
कहां रह गई कमी?
फिल्म का ओवरऑल म्यूजिक भले ही अच्छा है लेकिन जितनी मेहनत विजुअल और कहानी पर की गई है। उसके हिसाब से म्यूजिक में बैकग्राउंड स्कोर पर और मेहनत की जा सकती थी। फर्स्ट हाफ थोड़ा सा स्लो जान पड़ता है लेकिन ये फिल्म की भूमिका बनाने के लिए ही था।
इस फिल्म में आपको एक्शन और बहुत ड्रामा तो नहीं मिलेगा। लेकिन जिस सादगी से ये फिल्म दिखाई गई है। अगर आप उसे समझ पाएं तो आपको ये फिल्म बहुत खूबसूरत लगेगी।