Merry Christmas Review: विजय सेतुपति-कैटरीना कैफ तो छा गए लेकिन नहीं दिखा राघवन वाला ट्विस्ट
Merry Christmas
मैरी क्रिसमस एक मर्डर मिस्ट्री फिल्म है। जहां मरियम नाम की एक छोटी बच्ची की मां अपने पति का मर्डर करके किसी और पर इल्जाम डालने के लिए बलि का बकरा ढूंढती है लेकिन इसमें वो सक्सेस होती है या नहीं? फिल्म इसी बारे मे हैं।
विजय सेतुपति और कैटरीना कैफ स्टारर मूवी मैरी क्रिसमस रिलीज हो गई है। ये पहली बार है जब साउथ स्टार विजय सेतुपति और कैटरीना कैफ एक साथ पहली बार नजर आए हैं। दोनों के कैमेस्ट्री बड़े पर्दे पर कुछ अलग ही नजर आई। फिल्म को अंधाधुन जैसी फिल्म बना चुके श्रीराम राघवन ने डायरेक्ट किया है। अंधाधुन के बाद लोगों को इस फिल्म से भी काफी उम्मीदें थीं तो आइए जानते हैं कि क्या ये फिल्म उम्मीदों पर खरी उतरी है या नहीं।
फिल्म की कहानी?
फिल्म की कहानी मरियम (कैटरीना कैफ) की है जो क्रिसमस के दिन अपने पति का मर्डर कर देती है और उसे एक बलि का बकरा चाहिए जिसके सिर पर वो इस इल्जाम का डाल सके। इस चक्कर में एलबर्ट (विजय सेतुपति) फंस जाता है। जो क्रिसमस के दिन ही इंडिया आया होता है और कहता है कि वो दुबई में एक आर्किटेक्ट है। लेकिन मामला कुछ और होता है जो कि फिल्म में आपको पता चलेगा।
मरियम और उसकी बेटी एनी और एलबर्ट इत्तेफाक से मिलते हैं और मरियम एलबर्ट को अपने घर ले जाती है। वहां कुछ समय बिताने के बाद दोनों बाहर जाते हैं और फिर घर वापस आते हैं तो उन्हें मरियम के पति जेरोंग की लाश मिलती है। कहानी में यही ट्विस्ट है। क्योंकि मरियम उसी फ्लैट में उसी वापस लाती है जहां से दोनों निकलते होते हैं लेकिन जाते वक्त तो सब ठीक ठाक होता है लेकिन आते ही अचानक से लाश देखकर आप भी चौंक जाएंगे।
हालांकि एलबर्ट इस षडयंत्र में नहीं फंसता। उसके ऊपर पहले से ही एक इल्जाम होता है जिसकी वजह से वो पुलिस का सामना ना करना पड़े, इसलिए मरियम को अकेला छोड़कर निकल जाता है। लेकिन दूसरी बार में मरियम को अपना बलि का बकरा मिल जाता है और वो फंस भी जाता है। लेकिन एलबर्ट दोबारा मरियम के पास आता है तो उसे इस राज का पता चलता है। आखिर फिर क्या होता है? क्या बलि का बकरा (संजय कपूर) फंस जाता है या मरियम या एलबर्ट में से किसे के सिर मर्डर का आरोप आता है। इसके लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
फिल्म में क्या अच्छा?
मैरी क्रिसमस में जाहिर है कैटरीना कैफ, विजय सेतुपति समेत बाकी सपोर्टिंग स्टारकास्ट ने बढ़िया काम किया है। फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर थीम के हिसाब से फिट बैठता नजर आता है। इतना ही नहीं जैसा की फिल्म गुजरे जमाने की फिल्म है तो उस पर भी पूरा काम किया गया है। कहानी तब की है जब मुंबई को बॉम्बे कहा जाता है और फिल्म का पूरा सेट इतना शानदार है कि आप भी मुंबई नहीं बॉम्बे पहुंच जाते हैं।
श्रीराम राघवन ने पूरे काफी बारीकी से हर चीज को दिखाया है। फिल्म की डिटेलिंग काफी अच्छी है। फिल्म में कुछ ट्विस्ट आते हैं जिनमें से एक तो सबसे शानदार है, जिसके बारे में हम और आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते। फिल्म के सेकेंड हाफ में ही आपके पूरी फिल्म का असली मजा देखने को मिलता है। वहीं फिल्म के डायलॉग्स में भी आपको मजा आएगा। जो पंच की तरह इस्तेमाल किए गए हैं।
कहां रह गई कमी?
फिल्म की सबसे बड़ी कमी इसका क्लाईमैक्स है और कुछ ऐसी चीजें जिनके बारे में आप पहले से ही पता लगा सकते हैं। भले ही फिल्म में एक आद तगड़े ट्विस्ट हैं लेकिन वो भी फिल्म को बचा पाने में थोड़े नाकाम नजर आते हैं। फर्स्ट हाफ तो पूरी भूमिका बांधने में ही निकल जाता है। जिससे कि आपको थोड़ा ऊबाऊपन महसूस हो सकता है। फिल्म के क्लाईमैक्स से आप इतने निराश होंगे कि आपको लगेगा कि राइटर को लिखते हुए आगे समझ नहीं आया कि क्या लिखा जाए और इसलिए उसने कहानी खत्म कर दी है।
राघवन की इस फिल्म में वो अंधाधुन जैसा धमाका, सस्पेंस और ट्विस्ट देखने को नहीं मिलेगा। लेकिन हां क्योंकि राघवन की फिल्म तो एक एवरेज अच्छे सिनेमा को देखने के लिए आप जा सकते है। फुरसत में हैं और हल्के फुल्के ट्विस्ट वाली मूवी देखना चाहते हैं तो फिर आराम से ये फिल्म देख सकते हैं।