‘पुष्पा- द राइज’ फिल्म रिव्यू: अल्लू अर्जुन को रोकना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है, मगर खिंची हुई लगती है कहानी!
अल्लू अर्जुन अभी तक स्क्रीन पर जैसे दिखे हैं, उनके लिए स्टाइलिश, डैशिंग और शाइनी जैसे शब्द इस्तेमाल किए जात रहे हैं। मगर ‘पुष्पा- द राइज’ में अल्लू अर्जुन इतने रॉ और रफ हैं कि उनका एक लुक भर ‘भयानक’ शब्द की परिभाषा बन जाता है।
जब इस फिल्म का ट्रेलर आया और अनाउंस किया गया कि ये अल्लू की पहली पैन-इंडिया फिल्म होने वाली है, तो उनके हिंदी फैन्स की एक्साइटमेंट तो छप्पर फाड़ कर निकल गई। और इसी का नतीजा है कि आज दिल्ली में कई जगह ‘पुष्पा’ के शोज़ फुल चल रहे हैं।
फिल्म शुरू होने के साथ ही अल्लू का किरदार पुष्पराज स्क्रीन पर आग लगानी शुरू कर देता है। पहले पार्ट की कहानी उसकी इस जर्नी पर फोकस करती है कि वो कैसे एक आम मजदूर से, एक खूंखार गैंगस्टर बन गया। नाजायज़ औलाद का ठप्पा लगा हुआ एक लड़का जिसे कदम-कदम पर बस रुकावटें ही मिलीं, वो कैसे लाल चन्दन की स्मगलिंग में एक-एक सीढ़ी चढ़ता गया और इस धंधे के बड़े-बड़े बादशाहों की आँख में खटकने लगा, मोटे तौर पर यही फिल्म का प्लॉट है।
रश्मिका मंदाना के श्रीवल्ली में उसे अपना प्यार नज़र आता है और ये सबप्लॉट फिल्म को रोमांटिक और कॉमिक मोमेंट्स देता है। हालांकि, इस तरह की गैंगस्टर फिल्मों में जैसा अक्सर होता है, फिल्म का लीड फीमेल कैरेक्टर। हीरो की शान में रखी गई एक्सेसरी जैसा होता है। और एक चटपटी कॉमेडी करने वाला साइड-किक लेकर हीरो की टीम पूरी हो जाती है।
इस बड़े पॉपुलर से गैंगस्टर ऑरिजिन ड्रामा को उठाते हैं अल्लू अर्जुन के ज़ोरदार एक्शन सीन, शानदार विजुअल और जानदार म्यूजिक। मैंने फिल्म हिंदी में देखी और इसलिए हम डायलॉग और गानों पर जया बात नहीं करेंगे। क्योंकि सुनने में फिल्म की हिंदी, तेलुगु ट्रांसलेशन वाली फील दे रही थी।
रश्मिका मंदाना और सारे सपोर्टिंग एक्टर्स का काम अच्छा है और कहानी में सभी ने अपना योगदान कैरेक्टर के हिसाब से पूरा दिया है, लेकिन ‘पुष्पा- द राइज’ पूरी तरह अल्लू अर्जुन शो है। उनका ये कैरेक्टर फैन्स को लम्बे समय तक याद रहेगा और इसका टशन भरा एटीट्यूड काफी मजेदार है। मगर फिल्म की दिक्कतें भी यहीं से शुरू होती हैं।
इंटरवल हटाकर, पूरे 3 घंटे की ये फिल्म, पुष्पराज के कैरेक्टर को खडा करने से ज्यादा समय उसे सेलिब्रेट करने में लगाती है। हालांकि ये सेलिब्रेशन ज़ोरदार है मगर कुछेक सवाल खटकते रहते हैं। मसलन पुष्पा के बचपन से लेकर जवानी तक का बहुत बड़ा हिस्सा मिसिंग लगता है और ये सवाल काटता रहता है कि वो अगर इतना विस्फोटक किरदार है तो मजदूर बना कैसे।
अगर उसमें इतना ही ज़ोर था तो पहले ही उसने रास्ता क्यों नहीं निकाल लिया। हो सकता है कि फिल्म के पार्ट 2 में यह सब दिखाया जाए। फिल्म के अंत में फहाद फासिल का कॉप भंवर सिंह आता है तो माहौल जम जाता है, हालांकि ये हिस्सा अगले पार्ट में ही पूरा खुलेगा।
कुल मिलाकर ‘पुष्पा- द राइज’ एक टेम्पलेट गैंगस्टर ऑरिजिन स्टोरी है और मसला एंटरटेनर है, मासेज़ में ये फिल्म बहुत पसंद की जाएगी और बॉक्स-ऑफिस पर नोट भी छापेगी ही। लेकिन जो लोग सिर्फ हीरो की शान से अलग, अच्छी कहानी की तलाश में जाएंगे उन्हें थोड़ी सी निराशा होगी।