‘द बैटमैन’ रिव्यू: रॉबर्ट पैटिन्सन हैं अभी तक के सबसे उदास-सबसे तबाह ब्रूस वेन, फिल्म का एक-एक फ्रेम है पोएट्री!
द बैटमैन
गॉथम अब और डार्क हो चुका है और खौफ का पैगाम लेकर बैटमैन को खोजने आ गया है एक नया विलेन जो शहर के सबसे नमी लोगों की लाशों पर पहेलियां बुझाता फिर रहा है। क्या गॉथम का डार्क नाईट इस नए खतरे का सामना कर पाएगा?
...तो सबसे पहली बात ये है कि मैट रीव्स का बैटमैन, इस पॉपुलर सुपरहीरो कैरेक्टर का सबसे सादा, सबसे ज्यादा जूझता, सबसे तबाह और सबसे बेहतरीन डिटेक्टिव वर्ज़न है। रॉबर्ट पैटिन्सन का बैटमैन जब अपना सूट उतारकर अपनी पीठ आपकी तरफ किए दिखता है तो दो आपको वो सब साफ़ दिखता है, जो बीते दो सालों में उसने अपने शहर, अपने गॉथम को साफ़ रखने के लिए झेला है।
फिल्म के पहले सीक्वेंस में ही साफ़ हो जाता है कि ये अभी तक की फिल्मों में दिखा गॉथम नहीं है, ये बहुत अलग है। इस गॉथम में बस स्क्रीन पर कलर टोन बदल देने से आने वाला ग्रे-शेड नहीं है; बल्कि इसकी इमारतें भी पुरानी-जर्जर और दीवारों में अपराध की बू लिए हैं (यानी शानदार CGI)।
एक रेलवे स्टेशन पर पैसेंजर को लूट रहे गैंग के सामने आता बैटमैन, आपको जब पहली बार स्क्रीन पर दिखता है तभी समझ आ जाता है कि यहां मामला अलग है। कैसे? ऐसे कि अभी तक का सबसे रियल बैटमैन बने क्रिश्चियन बेल की स्क्रीन एंट्री भी अधिकतर समय किसी एक्शन से ही होती है, कहीं से जम्प लेकर या किसी हथियार के साथ; मतलब उस एंट्री में एक हीरोपन तो था।
यहां ऐसा नहीं है, ये बैटमैन अंधेरे के बीच से पैदल चलता हुआ आ रहा है, लेकिन सिर्फ इसी वजह से आप उसे हलके में नहीं ले सकते क्योंकि उसके क़दमों की थाप से आप समझ जाएंगे कि अब ये रात, कोई साधारण रात नहीं रहेगी। और उसपर भी कमाल ये है कि वो आकर अपन इंट्रो नहीं दे रहा न कोई और बता रहा है कि वो कौन है।
जब गैंग का एक मेंबर उसे देखकर खिल्ली उड़ाता हुआ पूछता है कि ‘तू कौन है?’ तो जवाब आता है ‘प्रतिशोध’ (सॉरी ‘बदला’ लिखने से बहुत मिथुन चक्रवर्ती वाला फील आ रहा था!) और ये जवाब तुरंत नहीं आता, 2 सेकंड रुक कर आता है, ऑलमोस्ट जैसे जवाब सोचने में वक़्त लिया गया हो। मैट रीव्स की ‘द बैटमैन’ में यही सबसे बड़ी खासियत है। पैटिन्सन का बैटमैन पूरी तरह अपनी ‘विजिलांते’ साइड को शुरू से चमकाता नहीं फिरता।
वो अपनी इस शख्सियत को रेशा-दर-रेशा बुनता है और अगर आपने कभी हथकरघे की बुनाई देखी हो, तो समझिए कि स्क्रीन पर इस बैटमैन का बुना जाना इतना ही खूबसूरत है। इस खूबसूरती को स्क्रीन पर उतारने में रीव्स के सबसे बड़े साथी हैं- सिनेमेटोग्राफर ग्रेग फ्रेज़र, जिन्होंने ऑस्कर नॉमिनेटेड ‘ड्यून’ पर भी काम किया था; और माइकल जियाचीनो का म्यूजिक स्कोर।
ग्रेग ने शैडोज, सिल्योएट के साथ अपने कलर पैलेट से जो संसार रचा है जिसे आप छूकर पास से देखना भी चाहेंगे, उसकी खूबसूरती को देखकर आहें भी भरेंगे और उसके खौफ में भी रहेंगे कि जाने यहां क्या हो जाए (क्योंकि स्क्रीन पर बहुत जगह बहुत सारी खाली जगह है आपके दिमाग को खौफ और सवालों में भटकाने के लिए)।
कहानी बस इतनी समझिए कि इस पहले सीन के बाद ही गॉथम के मेयर की लाश बरामद होती है, जो सिर्फ लाश नहीं है, उसे खौफ का परचम बना दिया गया है। टेप किए हुए उसके मुंह पर लिखा है ‘अब और झूठ नहीं’। साथ में है बैटमैन के लिए एक छोटे से कार्ड में लिखी पहेली। ये काम है ‘रिडलर’ का। उसके कैरेक्टर का कहानी से रिश्ता जितना ज्यादा यहां लिखा जाएगा वो स्पॉयलर होता जाएगा, इसलिए एक लाइन में समझ लीजिए: आधी फिल्म के बाद आपको समझ नहीं आएगा कि ‘प्रतिशोध’ असल में कहा किसे जाए बैटमैन को या फिर उसके इस चैलेंजर को?
क्रिस्टोफर नोलन से लेकर बाक़ी सभी पिछले बैटमैन के मुकाबले यहां आपको विलेन स्क्रीन पर बहुत कम समय के लिए दिखता है। लेकिन जब आत है तो रिडलर बने पॉल डानो को देखकर आपको अपने अन्दर कुछ तो हिलता हुआ महसूस होगा! बैटमैन के साथ कैटवुमन यानी सेलीना काइल भी हैं और एक मेल सुपरहीरो फिल्म में ज़ोई क्रावित्ज़ का कैरेक्टर कैसा है और उनका काम कैसा है, इसे ऐसे समझिए कि फिल्म के एंड के थोडा सा पहले जब वो बैटमैन से कहती हैं- हनी, मैंने कहा था न मैं अपने दम पर आराम से टिकी रह सकती हूं; तो आपको पता होता है कि ये बात सौ टके सच है!
आधा कुंटल प्रोस्थेटिक्स के नीचे पेंगुइन बने कॉलिन फेरेल जब स्क्रीन पर आते हैं तो अपने आप टेंशन फील होने लगती है और उनके पास फिल्म के कुछ सबसे बेहतरीन डायलॉग भी हैं। जॉन तर्तुरो और जेफ्री राइट ने अपने सॉलिड एक्टर्स वाले टैग को पूरा जिया है। अच्छाई और बुराई के बीच की जिस बारीक सी लकीर पर सुपरहीरो फिल्म्स का प्लॉट घूमा करता है, ‘द बैटमैन’ में वो इतनी घुल जाती है कि है भी या नहीं ये समझ नहीं आएगा। ब्रूस वेन के अपने पिता को भी ये लकीर एक बार के लिए उस तरफ ले जाकर खड़ा कर देती है।
सरकार और ब्यूरोक्रेसी का करप्शन किस तरह कुर्सी पर बैठे लोगों के डीएनए में जमा हुआ है वो ‘द बैटमैन’ की सबसे ठोस बात है। और उसे नॉएर स्टाइल के डिटेक्टिव की तरह खोजता बैटमैन एक बेहतरीन ह्यूमन हीरो बन जाता है और सुपरपावर न होना उसे और बेहतरीन बनाता है।
पैटिन्सन का बैटमैन बाइक पर शहर भर घूमता दिखता है, पूरी फिल्म में सिर्फ एक बार उंचाई से कूदता है और वो भी विंगसूट पहनकर, इसी हाईटेक गैजेट की हेल्प से नहीं। उसका बैटमोबाइल (कार) भी पिछले बैटमैन्स से बहुत अलग है, वो सीधा कोई हाई-टेक AI पावर्ड टेक नहीं है, बल्कि एक दमदार सॉलिड कार है बस, जो आम कार से ज्यादा मज़बूत है।
मतलब ये है कि मैट रीव्स ने बैटमैन को पूरी तरह से एक इंसान बना दिया है, जो बस क्राइम से लड़ने के लिए एक रबर सूट पहने हुए है। लेकिन फिर ऐसा नहीं है कि इस फिल्म में सब कुछ शानदार-दमदार ही है। रीव्स और पीटर क्रेग का स्क्रीनप्ले बीच-बीच में कई जगह कुछ ज्यादा ही स्लो लगने लगता है। फिल्म अपनी ही खूबसूरती में कभी-कभी इतना खो जाती है कि आपको पैरों में तितलियां महसूस होने लगेंगी- कब होगा एक्शन?
रीव्स ने बैटमैन को डिटेक्टिव वाला स्टाइल देकर कॉमिक्स से उसका एक उधार वापिस किया है जो पिछली फिल्मों में कहीं खो गया था। क्रिश्चियन बेल और बेन एफ्लेक, दोनों के बैटमैन में वायलेंस की एक आंधी थी, दोनों ने जमकर एक्शन किए। पैटिन्सन का बैटमैन स्क्रीन पर गिनकर शायद 3 बार फुल ऑन एक्शन करता दिखता है, हालांकि जितना करता है वो बहुत स्टाइलिश और शानदार लगता है।
लेकिन पिछली फिल्मों से तुलना होना लाजमी है और 3 घंटे के रनटाइम के साथ, पैटिन्सन का बैटमैन उन फिल्मों से एक इमेज की उम्मीद कर रहे फैन्स को, डायनामिक्स के मामले में, थोड़ा सा निराश कर सकती है। अधिकतर समय डार्क नॉएर-डिटेक्टिव स्टाइल में चल रही फिल्म अंत में थोड़ा सा ग्रैंड होने की कोशिश करती है और ये हिस्सा उतना दमदार नहीं है। क्लाइमेक्स थोड़ा खींचा हुआ लग सकता है।
लेकिन कुल मिलाकर मैट रीव्स की फिल्म बैटमैन को एक बिलकुल नए सांचे में ढालती है और बिना शक सबसे बेहतरीन तरीके से शूट हुई बैटमैन फिल्म्स में से एक है। ‘द बैटमैन’ की विजुअल लैंग्वेज बहुत गहरी है और पॉप कल्चर में बहुत पॉपुलर हो चुके इस किरदार को पूरी तरह एक नए रंग में ढालती है। लेकिन इस विजुअल लैंग्वेज के साथ एक थिएटर फाड़ एक्शन धमाका टाइप उम्मीद रख रहे दर्शक को थोड़ा सा निराश करेगी।