Bambai Meri Jaan Review: अंडरवर्ल्ड डॉन पर बेस्ड अब तक की बेस्ट सीरीज, अविनाश तिवारी-केके मेनन ने सबको छोड़ा पीछे
वेब सीरीज-बंबई मेरी जान
बंबई मेरी जान 1960 से लेकर 1990 तक की मुंबई की कहानी है ! सीरीज क्राइम जर्नलिस्ट हुसैन जैदी की किताब से इंस्पायर्ड हैं जिसमें उन्होंने डांगरी से दुबई पहुंचे दाऊद इब्राहिम के बारे में लिखा है!
अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम, हाजी मस्तान, छोटा राजन और मान्या सुर्वे, गैंग वॉर, गैंगस्टर्स के जीवन पर बनी न जाने कितनी ही फिल्में हमने देखी होंगी। 90 के दशक देश के कुछ हिस्से अंडरवर्ल्ड की चपेट में थे। बड़े बिजनेसमैन, बिल्डर्स से पैसा वसूली जैसे काम इन गैंगस्टर्स के लिए आम थे। इन्हीं नामी डॉन, मुद्दों पर अलग-अलग फिल्में देखी होंगी। लेकिन अब फरहान अख्तर, रितेश सिधवानी के साथ मिलकर एक ऐसी वेब सीरीज ले आये हैं जो अंडरवर्ल्ड डॉन के जन्म से लेकर मौजूदा स्थति को बयान करती हैं।
अमेज़न प्राइम वीडियो पर आज प्रीमियर हुई ‘बंबई मेरी जान’ बंबई में में डॉन के जन्म से लेकर दुनिया देशभर में बदनाम होने की कहानी पर बेस्ड है। 10 एपिसोड की इस सीरीज में आपको हर वो डॉन, गैंगस्टर नज़र आएगा जिसके बारे में कभी अपने अखबार में पढ़ा या न्यूज़ चैनल पर देखा होगा। फिल्में भी बहु सी बनी हैं।
‘बंबई मेरी जान’ क्राइम जर्नलिस्ट हुसैन जैदी की किताब पर बेस्ड है जो उन्होंने अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के जीवन पर लिखी है। किताब में ज़िक्र बातों को सीरीज में दिखाया गया है। बढ़िया स्क्रीनप्ले है। कहानी शुरू होती है 1960 के दशक की बंबई से। सीरीज की शुरुआत एक ईमानदार पुलिस ऑफिसर इस्माइल कादरी (के के मेनन) के किरदार से होती है। इस्माइल कादरी का एक ही मकसद होता है, उस समय हाजी साहब (सौरभ सचदेव) के आदेश से चलने वाले अवैध धंधे को बंद करवाना। ये काम हाजी, अजीम पठान (नवाब शाह) के साथ चला रहा है। बंबई में हो रहे इन अवैध कामों की खबर दिल्ली में बैठे गृह मंत्री तक पहुंचती है। बंबई को बचाने के लिए गृह मंत्री की तरफ से आदेश दिया जाता है और गठन होता है पठान स्क्वाड का। इस स्क्वाड का मकसद बंबई में अवैध धंधों को बंद कर हाजी और पठान की गिरफ्तारी होता है। इस्माइल कादरी अपनी लीडरशिप में पठान ग्रुप को चैलेंज करता है जिसका नुक्सान उसे अपनी नौकरी गंवा कर और गरीबी झेल कर करना पड़ता है।
अंत में इस्माइल कादरी हार जाता है और अपनी ईमानदारी छोड़ कर हाजी के लिए काम करने पर मजबूर हो जाता है। लेकिन उसे नहीं पता की आगे चल कर उसके तीनों बेटे सादिक, दारा (अविनाश तिवारी), अज्जू और बेटी हबीबा (कृतिका कामरा) मुंबई के अगले डॉन बनेंगे।
अब दशक बदल चुका था और बंबई 1975 में प्रवेश कर गैंगस्टर्स के लिए नए नियम बना रहा था। अवैध धंधों बंद कर पुलिस गिरफ्तारी कर रही थी । इसी दौरान देश में लगी एमरजेंसी से हाजी और पठान बिज़नस में पिछड़ते जा रहे थे। दूसरी तरफ दारा (जिसका किरदार दाऊद इब्राहिम से इंस्पायर्ड है) वो मामूली ठगी जैसे घड़ियों का बिज़नस कर, हफ्ता वसूल कर अपना दबदबा कायम कर रहा था। शहर में दारा का डर इतना बढ़ गया था कि हाजी और पठान की गैंग पीछे हटने लगी थी। हालांकि, दारा को भी एक स्थापित गैंग से पंगा लेना भारी पड़ा। उसे अपने जिगरी दोस्त और भाई की मौत देखनी पड़ी। इसके बाद बदले की आग में बंबई जलने लगा। छोटा राजन से इंस्पायर्ड आदित्य रावल की एंट्री कहानी में जान डाल देती है। पठाना को मार कर दारा बंबई को छोड़ भाग जाता है।
10 एपिसोड की ये सीरीज शुरुआत में बोरिंग लग सकती है। लेकिन इस धीमी शुरुआत के साथ जब कहानी आगे बढ़ती है तो आपको स्क्रीन के आगे चिपका कर रख देती है। हालांकि, मेकर्स इस कुछ सीन्स के साथ छटनी कर सकते थे। परफॉरमेंस की बात करें तो केके मेनन ने इस्माइल कादरी के किरदार में जान डाल दी है। अविनाश तिवारी पर अंडरवर्ल्ड डॉन दारा का किरदार काफी अच्छा लगा है। इस सीरीज में कहानी आगे बढ़ने के साथ दारा के लुक्स, पहनावे में भी बदलाव देखा जाता है। कृतिका कामरा डॉन की बहन के रूप में शानदार रहीं। नवाब शाह, सौरभ सचदेव, शिव पंडित, केके मेनन और उनकी रियल लाइफ पत्नी निवेदिता इस सीरीज में भी उनकी पत्नी के किरदार नज़र आई हैं। दोनों काम सराहनीय था।
अंडरवर्ल्ड डॉन, गैंगस्टर पर बनी फिल्मों से बेहतर ये सीरीज आपको पसंद आएगी। शुरुआत के कुछ सीन्स को इग्नोर किया जाए तो अंत आते ही कहानी बदल जाती है और मज़ेदार हो जाती है। मेरी तरफ से इस सीरीज को पांच में से 3।5 स्टार्स।