‘गुल्लक 3’ रिव्यू: मिडल क्लास फैमिली के संघर्षों में लबालब भरे इमोशन्स के दिल पिघलाने वाले, मीठे से किस्से
गुल्लक 3
एक मिश्रा परिवार है, एक छोटा शहर है, एक मिडल क्लास है और ढेर सारे संघर्ष हैं जो प्यार के भरोसे बस हंसी-ठिठोली में कब कट जाते हैं, पता ही नहीं चलता!
‘गुल्लक’ उन गिने-चुने वेब शोज़ में से है जिन्हें शुरू करते टाइम ही ये टाइम ही इस बात का दुख लगने लगता है कि यार आधे-आधे घंटे के बस पांच एपिसोड भर हैं। ये इतनी जल्दी क्यों ख़त्म हो जाता है! गांव के घर में चैत की अलसाई सी दुपहरी जिसने काटी है, उसे ये पता होगा कि उस समय एक जगह बैठे 4 लोग कितने किस्से-कहानियां जिया करते हैं। लेकिन ‘गुल्लक’ कहानियों का शो नहीं है, इसमें हैं किस्से, जिसमें संघर्ष हैं सभी के हिस्से।
और नहीं, ये किसी मुग़लिया सल्तनत के खड़े होने की एपिक गाथा नहीं है। ये तो संतोष मिश्रा के आम मिडल क्लास घर का स्ट्रगल है। जहां अगर सैलरी के अलावा 4 पैसे का एलटीए (LTA) आ जाए, तो खर्च करने के बेस्ट तरीके को लेकर इतनी प्लानिंग की जाती है कि उतनी देर में अम्बानी का एम्पायर किसी छोटे-मोटे देश की कुल इकॉनमी से ज्यादा का प्रॉफिट कमा लेता है।
यहां वक़्त तो घटता ही नहीं, यहां किस्से घटते हैं, और किस्सों की करंसी पर फुल इंटरेस्ट वसूल कर रहा है सोनी लिव का ये शो जिसकी राइटिंग से दूरदर्शन काल के रविवार याद आने लगते हैं। जब लोग बैठकर एक साथ सिर्फ टीवी देखा करते थे। ‘गुल्लक’ ठीक ऐसा ही शो है, दोपहर में गन्ने के रस और मुरमुरे खाते हुए परिवार के साथ बैठकर देखने वाला।
पहले और दूसरे सीज़न में जनता की आंखों का तारा बन जाने वाले इस शो का तीसरा सीज़न और भी प्यारा हो गया है। इसका इमोशनल हाई और ऊपर चला गया है क्योंकि मिश्रा परिवार के दैनिक जीवन में आने वाले संघर्षों की इंटेंसिटी थोड़ी-थोड़ी बढ़ती जा रही है। अब मुद्दा स्कूटी बनाम बुलेट की बहस से थोड़ा गंभीर हो गया है और घर में हुए नए सैलरी सेविंग अकाउंट की तरफ मुड़ गया है। क्योंकि अन्नू मिश्रा (वैभव राज गुप्ता) अब कमाने लगे हैं और जीवन की गंभीरता को समझ रहे हैं।
अमन मिश्रा (हर्ष मायर) के लिए उस चुनाव का भारी समय आ गया है जो लाखों इंडियन स्टूडेंट्स की तकदीर रपट देता है- 10वीं के बाद साइंस, कॉमर्स या आर्ट्स? और हां, स्टूडेंट्स के सामने ये आप्शन इसी ऑर्डर में आते हैं। संतोष मिश्रा (जमील खान) के सामने चिंताएं अलग लेवल की है क्योंकि दौर-दुनिया बदल रही है और खर्चे बढ़ रहे हैं। और सबसे अंत में आती हैं घर की लक्ष्मी- शांति मिश्रा (गीतांजलि कुलकर्णी),जिनकी समस्या अभी भी इतनी ही बेसिक है कि उनके पतिदेव को उन्हें तकलीफ देने वाली डायबिटीज भी नहीं याद रहती, ख़ुशी देने वाला कश्मीर ट्रिप तो बहुत दूर की बात है, लिटरली!
तीसरे सीज़न में आकर गुल्लक अब बड़ा होने लगा है। जहां पहले सीजन में शो मिडल क्लास की आम जिंदगियों के बेहद साधारण रोजनामचे को सेलिब्रेट कर रहा था और दूसरे में पारिवारिक कनफ्लिक्ट की बातें कर रहा था’; वहीं ‘गुल्लक 3’ में मिडल क्लास के एम्बिशन्स और सोशल स्ट्रक्चर पर बात करने लगा है। शो की ग्रोथ मिश्रा परिवार के बड़े चिराग अन्नू मिश्रा के टर्म्स में भी नापी जा सकती है, एक गंभीर सीक्वेंस में जब वो अपने पापा की चप्पल पहनते हैं तो आपको बहुत कुछ फील होता है।
सीज़न का एंड इस बार बहुत इमोशनल है, टिशू लेकर बैठिएगा। आज 30 साल के आसपास पहुंचे हर लड़के को वैभव में अपना एक हिस्सा दिख सकता है और वो इस हरेक हिस्से को उतनी ही सादगी मगर टशन के साथ जीते हैं। वो पूरी तरह ऐसे लड़के बन जाते हैं जो कितने भी संघर्ष में हों, कितने भी वल्नरेबल हों लेकिन घर-गली-मोहल्ले-दोस्तों के रॉकस्टार होते हैं। हर्ष मायर युनिवर्सल छोटे भाई हैं- चपल, चतुर, चालाक, चौकस… बनने की अटेम्प लगातार करने वाले। लेकिन घर पर बाप और बड़े भाई से हमेशा ‘टोचन’ प्राप्त करने वाले।
जमील खान को जनता की एक पूरी खेप अब सिर्फ संतोष मिश्रा के नाम से याद रखेगी। वो मिडल-क्लासियत का सबसे रेगुलर फेस हैं और उनके इमोशनल सीन्स में उनकी चुप्पी का शोर आपको बहुत तेज़ हिट करता है। गीतांजलि में तो जाने कितने ही लोगों को अपनी मां दिख सकती है, इससे ज्यादा कुछ कहते ही नहीं बनता उनके बारे में।
बिट्टू की मम्मी के रोल में सुनीता रजवार इतनी प्यारी और इतनी कॉमिक हैं कि सही समय पर गलत बात बोलने की उनकी अदा पर भी आप को हंसना ही आता है, गुस्सा नहीं। और इन सारे सिक्कों को समेटकर, सहेज कर रखने वाली गुल्लक की आवाज़- शिवांकित सिंह परिहार। शिवांकित ने TVF के लिए कई मज़ेदार कैरेक्टर्स किए हैं जिनमें ‘रजा रबिश कुमार’ तो बहुत ही ज्यादा पॉपुलर हुआ। लेकिन ‘गुल्लक’ में सिर्फ उनकी आवाज़ भर लोगों के कान में हमेशा रहेगी।
शो के राइटर राइटर- दुर्गेश सिंह और एडिशनल राइटिंग करने वाले विदित त्रिपाठी को शो की मासूमियत और सादगी रचने के साथ, कानों पर छन्न से गिरने वाले खनकदार डायलॉग्स के लिए भर-भर कर तारीफ़ मिलनी चाहिए। शो की आत्मा, इसके क्रिएटर श्रेयांश पांडे को एक बार फिर से बधाई कि उनकी ये गुल्लक धीरे-धीरे ऑडियंस की मुहब्बत से ठसाठस भरी जा रही है।
गुल्लक 3 के DOP शिव प्रकाश का नाम लेना ज़रूरी है क्योंकि इसकी सिनेमेटोग्राफी बहुत कमाल है, चाहे गन्ने का रस निकालती मशीन के बगल खड़े अमन मिश्रा हों या फिर चप्पलों में जाते अन्नू मिश्रा के पांव। एडिटर गौरव गोपाल झा का कमाल है कि पूरे पांच एपिसोड्स में शो कहीं भी भागता हुआ नहीं लगता और छोटे-छोटे एपिसोड्स में भी शो की अलसाई तासीर बरकरार रहती है।
डायरेक्टर पलाश वासवानी को मुझ स्माल-टाउन से आए, 90s में बड़े हुए लड़के का दिल मुहब्बत के अलावा और कुछ नहीं दे सकता। अनुराग सैकिया का दिल बहार म्यूजिक और स्कोर तो शो की जान ही है। कुल मिलाकर सिर्फ इतना कि ये शो एक बार देखने से दिल ही नहीं भरेगा। ये एक एवरग्रीन मैटेरियल बन गया है।