‘चंडीगढ़ करे आशिक़ी’ रिव्यू: आयुष्मान-वाणी की तपती केमिस्ट्री और एक नरम मुद्दे पर बनी फिल्म दमदार भी है, मज़ेदार भी
बॉडी वाला आयुष्मान खुराना, बढ़िया परफॉर्म करतीं वाणी कपूर, ज़ोरदार केमिस्ट्री भरा रोमांस और एक ऐसा सीरियस मुद्दा जिसे सेंसिटिव के साथ-साथ मज़ेदार तरीके से ट्रीट किया गया है। साथ में चंडीगढ़ वाली शो-शां और बेहतरीन गाने, ‘चंडीगढ़ करे आशिकी’ फुल-ऑन एंटरटेनमेंट की गारंटी है।
आयुष्मान तो जो हैं, वो बताने की ज़रूरत है ही नहीं। लेकिन वाणी कपूर को खुद प्रोडक्ट की तरह फिल्म में नज़र आने की बजे इस बार प्रोडक्ट-प्लेसमेंट करते देख अच्छा लगा। यही वो वाणी है जिसके फैन हम ‘शुद्ध देसी रोमांस’ देखकर बने थे। और इस फिल्म के नाम से याद आया कि ‘केदारनाथ’ डायरेक्ट कर चुके अभिषेक कपूर ने ‘चंडीगढ़ करे आशिकी’ सुशांत सिंह राजपूत को डेडीकेट की है।
आयुष्मान का कैरेक्टर मनु मुंजाल एक जिम चलाता है और ट्रेडमार्क पंजाबियत का सबसे बेस्ट सैंपल है। लोहा घिस के बॉडी बनाता है और उन्हें फुल डिस्प्ले पर रखने वाले कपड़े पहनता है और उसकी आज़माइश के लिए एक लोकल कॉम्पटीशन में हर साल हिस्सा लेता है और जीतना चाहता है। डोले बढ़ाना, डाइट मेंटेन करना और अपने चेलों के साथ मस्ती करना ही उसका लाइफ-गोल है।
और फिर जिम में एंट्री होती है ज़ुम्बा टीचर मानवी (वाणी कपूर) की। मानवी उस टाइप की लड़की है जिसे देखकर गुरुत्वाकर्षण के नियम बदल जाते हैं। वो एक्शन करे या ना करे, लेकिन उसके होने भर से सामने वाले बन्दे में रिएक्शन होने लगते हैं। बस हमारा सख्त लौंडा पिघल जाता है और फिर शुरू होता है ऐसे भभकते रोमांस का दौर जिसके आगे आग भी पानी मांगे। लेकिन मानवी का अपना एक पास्ट है और ये आपको मैं बता सकता हूं कि इसका मतलब एक्स-लवर, ख़राब शादी या ऐसा कुछ नहीं है।
हालांकि जो है, वो एक बहुत सेंसिटिव और इम्पोर्टेन्ट मुद्दा है। ये आयुष्मान की पिछली फिल्मों जैसी सेक्सुअल प्रॉब्लम नहीं है। मगर जो है, वो देखकर आप सोचने पर मजबूर हो जाएंगे। इस फिल्म की खासियत यही है कि जो इशू है, उसपर शुरू में तो थिएटर में कई लोग आपको हंसते दिखेंगे। और हो सकता है कि आप भी हंस रहे हों। लेकिन जब फिल्म इस हंसी का इलाज करती है, तो मामला अच्छा खासा इमोशनल हो जाता है।
वाणी कपूर ने मानवी के कैरेक्टर को शुरू से ऐसा पकड़ा है कि आयुष्मान की ब्रिलियंस के साथ पूरा बैलेंस बनाकर चलता है। और कमाल ये है कि जिन सीन्स में मानवी को स्क्रीन पर चमकना था, उन सीन्स में वाकई वाणी की परफॉरमेंस में इतना ज़ोर था कि वो चमक आपको अपनी आंखों पर महसूस होगी।
डायरेक्टर अभिषेक कपूर की तारीफ़ है कि उन्होंने सेंसिटिव मुद्दे को तमीज़ से डील करते हुए फिल्म का एंटरटेनमेंट भी कायदे से बनाए रखा। फिल्म के डायलॉग चटपटे हैं और माहौल जमाए रखते हैं। फिल्म के गाने स्टोरी को सूट करते हैं और वैसे भी काफी चलेंगे। स्टोरी की पेसिंग फर्स्ट के मुकाबले सेकंड हाफ़ में थोड़ी सी स्लो ज़रूर हुई, मगर कुल मिलाकर फिल्म जनता का अटेंशन पकडे रखेगी।
फिल्म ज़रूर देख डालें, मज़ा तो आएगा ही और साथ में दिमाग के दरवाज़े भी खुलेंगे। साथ ही भरे हुए थिएटर में फिल्म देखने का मज़ा तो आएगा ही।