'गहराइयां' रिव्यू: दीपिका पादुकोण का दमदार काम देखने लायक, लेकिन कहानी में खटकती है गहराई की कमी!

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    गहराइयां

    ज़िन्दगी में एक जगह फंसा महसूस कर रही अलीशा को, अपनी कज़िन टिया के बॉयफ्रेंड ज़ैन से वो एनर्जी मिलती है जो उसे चाहिए। 6 साल के रिश्ते में बंधी अलीशा को ज़ैन नाम का तूफान उसे अपनी मंजिलों तक ले जा पाएगा या सब तबाह कर देगा?

    Director :
    • शकुन बत्रा
    Cast :
    • दीपिका पादुकोण
    Genre :
    • ड्रामा
    Language :
    • हिंदी
    Platform :
    • एमेज़ॉन प्राइम
    'गहराइयां' रिव्यू: दीपिका पादुकोण का दमदार काम देखने लायक, लेकिन कहानी में खटकती है गहराई की कमी!
    Updated : February 11, 2022 12:31 PM IST

    दीपिका पादुकोण जैसा सॉलिड एक्टर, शकुन बत्रा जैसा क्रिटिक्स का फेवरेट डायरेक्टर, सिद्धांत चतुर्वेदी जैसा ब्रेक-आउट स्टार, और धर्मा जैसा दमदार प्रोडक्शन। ये सब चीज़ें एकसाथ हों तो जनता अपने आप फिल्म के लिए एक्साइटेड हो ही जाएगी। और इसके साथ खूबसूरत म्यूजिक में डूबा रिलेशनशिप ड्रामा, ऐसी फिल्म में क्या ही गलत जा सकता है?

    जवाब है- स्क्रिप्ट। ‘गहराइयां’ के ट्रेलर में ही एक-एक फ्रेम कितना सुन्दर लग रहा था। हालांकि ढाई घंटे खर्च करने के बाद ऐसा लगा कि जैसे फिल्म अपने नाम से थोड़ी उलट हो गई। लेकिन दीपिका पादुकोण ने स्क्रीन पर एक बार फिर से जो कैरेक्टर क्रिएट किया है, उसे देखकर जो सुकून मिला है, वो बहुत कमाल का है। दीपिका के कैरेक्टर अलीशा में काफी गहराई है- बचपन से जुड़े एक ट्रॉमा, ज़िन्दगी में एक जगह फंस जाने वाली फीलिंग, गोते खाती फाइनेंसियल हालत और 6 साल से साथ एक बॉयफ्रेंड जो अपनी एक अलग दुनिया में है, जहां सब ‘चलता है’ मोड में है। 

    इस सब से जूझते हुए वो किसी तरह अपना बैलेंस खोजने की कोशिश कर ही रही है कि एक दिन उसकी सुपर अमीर-घरवालों की रईसी के चश्मे से दुनिया देख रही कज़िन टिया (अनन्या पांडे), अपने बॉयफ्रेंड ज़ैन (सिद्धांत चतुर्वेदी) के साथ रीयूनियन करने आ जाती है। ज़ैन अपनी कहानी ये बताता है कि वो भी एक आम घर से आया और स्ट्रगल करके यहां तक पहुंचा है। 2-4 बातों में ही ज़ैन और अलीशा एक दूसरे को कुछ स्पेशल लगने लगते हैं। और रिश्तों के समंदर में आता है वो बवंडर जो सबकुछ उधेड़ने लगता है।

    लेकिन डायरेक्टर शकुन बत्रा यहां से इस कहानी को जहां ले जाते हैं वो रिलेशनशिप-ड्रामा से ज्यादा पल्प-फिक्शन लगने लगता है। स्क्रीन पर ये कहानी बहुत खूबसूरत लगती है। नीले रंग की टोन लिए एक से एक खूबसूरत फ्रेम, सुंदर घर, सुन्दर कपड़े, सुन्दर चेहरों भरी इस फिल्म में एक चीज़ बहुत ज्यादा मिसिंग लगती है- कनेक्शन। कनफ्लिक्ट क्रिएट करने तक फिल्म ठीक जा रही थी, लेकिन इसका हल जिस तरह निकाला गया है, वो स्क्रिप्ट में गहराई की कमी दिखा देता है। 

    कहानी के ट्रीटमेंट में दीपिका और सिद्धांत के कैरेक्टर्स को बाकी दोनों से थोड़ा महत्वपूर्ण रखकर कहानी आगे बढ़ती है, लेकिन अनन्या और धैर्य के कैरेक्टर्स इतने फ़्लैट हैं कि कहानी में जैसे एक और डायमेंशन की कमी रह जाती है। ये दोनों कैरेक्टर्स क्या करते हैं, इनके एम्बिशन क्या हैं, पैशन क्या हैं इसे स्क्रिप्ट में जैसे भुला दिया गया है। 

    दीपिका के अलावा बाक़ी तीनों किरदारों का डेवलपमेंट मिसिंग लगता है और सब अपनी कहानी ‘निपटाने’ वाले स्टाइल में खुद से बताते हैं। आधे पॉइंट तक फिल्म बहुत स्लो लगती है और क्या कहना चाहती है ये आपको कन्फ्यूज़न में डाल देगा। लेकिन इसके बाद जो कुछ होता है उसे देखकर आप सोचते रहते हैं- हैं? क्या? ये कैसे हो सकता है? अरे कुछ भी!

    दीपिका और सिद्धांत की केमिस्ट्री को लेकर फिल्म की रिलीज़ से पहले मेकर्स ने बहुत माहौल बनाया, लेकिन फिल्म देखकर आप समझेंगे कि ‘सब धुआं है आसमान थोड़े ही है!’ सिद्धांत की बातों से रोमांस फील ही नहीं होता। अनन्या पांडे ने आधे-अधूरे लिखे कैरेक्टर में अपनी तरफ से पूरा ज़ोर लगाया है और फिल्म के सेकंड-हाफ़ में ये दिखता है। 

    धैर्य का किरदार सबसे ज्यादा ढीला लिखा गया है और एक वक़्त के बाद तो स्क्रीन से गुम ही हो जाता है। फिल्म में सबसे ज्यादा गहराई तब आती है जब दीपिका और उनके पिता के रोल में नसीरुद्दीन शाह स्क्रीन पर साथ होते हैं। फिल्म की सिनेमेटोग्राफी और कलर्स और म्यूजिक जादू भरा ज़रूर है और इसके गाने तो शायद अबतक आपके फेवरेट बन भी चुके होंगे।

    कुल मिलाकर कहें तो ‘गहराइयां’ में एक बेहतरीन रिलेशनशिप ड्रामा होने का पूरा दम था, लेकिन राइटिंग में गहराई की कमी ने माहौल थोड़ा सा ठंडा कर दिया। हां, दीपिका के काम और उनकी एक और शानदार परफॉरमेंस के लिए फिल्म देखी जा सकती है।