‘जर्सी’ रिव्यू: शाहिद कपूर और पंकज कपूर की ठोस पार्टनरशिप से जी उठी इमोशन्स की पिच पर लिखी कहानी

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    जर्सी

    अर्जुन तलवार के बेटे ने उससे बर्थडे गिफ्ट में इंडियन क्रिकेट टीम की जर्सी मांगी है। वो जर्सी जिसे पहनना 10 साल पहले अर्जुन का सपना था, लेकिन अब स्पोर्ट्स शॉप से इसे खरीद पाना भी उसके लिए सपना ही है! कौन सा सपना पूरा होगा और कौन सा टूटेगा?

    Director :
    • गौतम तिन्नानुरी
    Cast :
    • शाहिद कपूर,
    • पंकज कपूर,
    • मृणाल ठाकुर,
    • रोनित कामरा
    Genre :
    • स्पोर्ट्स ड्रामा
    Language :
    • हिंदी
    ‘जर्सी’ रिव्यू: शाहिद कपूर और पंकज कपूर की ठोस पार्टनरशिप से जी उठी इमोशन्स की पिच पर लिखी कहानी
    Updated : April 22, 2022 01:53 AM IST

    ‘जर्सी’ को सिर्फ एक स्पोर्ट्स फिल्म या क्रिकेट ड्रामा मानने की भूल मत कीजिएगा, ये आपकी तरफ से एक गलती और फिल्म के साथ नाइंसाफी होगी। ये तो 2 साल से सस्पेंड चल रहे, फ़ूड कॉरपोरेशन के ग्रेड 3 ऑफिसर अर्जुन तलवार की कहानी है। 

    क्रिकेट तो अर्जुन की कहानी में 10 साल पहले था। उस पुरानी लत का हासिल अर्जुन के पास बस उसकी बीवी है- विद्या। इसी विद्या से उसका एक बेटा है किट्टू। किट्टू का बर्थडे आ रहा है। बर्थडे पर उसने पापा से प्रॉमिस ले लिया है कि उसे इस बार इंडियन टीम की ऑफिशियल जर्सी दिलाई जाएगी। 

    ये जर्सी जो सपना थी कभी अर्जुन का और बाली सर (पंकज कपूर) का। वही बाली सर जो, अब अर्जुन के सीलन भरे बंद कमरे में एक अकेला झरोखा है जो उसके सपनों की तरफ खुलता रहता है। लेकिन इन्सान का ऐसा है कि वो बहुत जल्दी एडाप्ट कर जाता है। अर्जुन भी इस कमरे में एडाप्ट कर गया है, अब कभी वो झरोखा खुल जाता है तो वहां से आती हवा फेफड़ों को चुभती है! 

    और ऐसा भी बिल्कुल नहीं है कि अर्जुन और क्रिकेट के रिलेशनशिप में ब्रेकअप हुआ था, वो बस अलग हो चले थे। जिसे इंग्लिश में कहते हैं न- 'ग्रोइंग अपार्ट'। ऐसा कैसे हुआ, क्यों हुआ, ये सब आप फिल्म में ही देखेंगे तभी समझ आएगा। नहीं, ऐसा भी नहीं है कि अब 36 साल का अर्जुन, किट्टू का जर्सी वाला सपना सच करने के लिए क्रिकेट में वापसी करेगा। मतलब, वापसी तो करेगा लेकिन इसकी वजह फिर ये जर्सी नहीं है, कुछ और है। 

    आपको ये पढ़ते हुए लग रहा होगा कि कहानी साफ़ पता तो लग रही है, लेकिन एकदम साफ़ हो नहीं पा रही। जो साफ नहीं हो पा रहा, वो पेंच ही ‘जर्सी’ की कहानी है। और इस कहानी का एक-एक सेकंड शाहिद कपूर ने स्क्रीन पर ‘रज्ज के’ जिया है। 

    अर्जुन तलवार बने शाहिद के क्रिकेटर अवतार में बिल्कुल 26 साल की उम्र वाला सटीक एटीट्यूड भी है और 36 साल का बाप बनने पर वो पहेली भी, जिसका हल तो होता है मगर उसका रास्ता बहुत लंबा है! किट्टू के रोल में रोनित कामरा इतने प्यारे हैं कि उनकी ज़िद पूरी करने के लिए आप भी कमर कस के खड़े हो जाएंगे। और इस पूरी कहानी की कैटेलिस्ट विद्या के रोल में मृणाल ठाकुर भरपूर जमती हैं। 

    फिर आते हैं पंकज कपूर साहब। उनका नाम लिखने से पहले मैंने कानों को छू कर दोष मुक्ति कर ली है। लोगों की स्क्रीन प्रेजेंस होती है। पंकज साहब को देखकर लगता है कि कैमरा बना ही इसलिए था कि हम उन्हें परफॉर्म करते देख सकें। उन्हें देखककर आपको लगेगा कि पिछले सालों में आपने उन्हें और ऐसे क्वालिटी काम को स्क्रीन पर कितना मिस किया है। डायरेक्टर गौतम तिन्नानुरी को सलाम कि अपनी ही फिल्म का रीमेक बनाते हुए उन्होंने फिल्म की आत्मा को भरपूर प्यारा और इमोशनल बनाए रखा। 

    इस कहानी में इमोशंस इतने दमदार और भरमार हैं कि आपकी आंखें कब नम हो जाएं पता नहीं चलेगा। सचेत-परम्परा ने ‘कबीर सिंह’ के बाद एक बार फिर से एक अच्छा एल्बम बनाया है। फिल्म में क्रिकेट के सीन्स जिस तरह फिल्माए गए हैं उनमें अगर आप नोटिस करेंगे तो कुछ-कुछ अलग लगेगा। क्रिकेट मैचों को ‘जर्सी’ में जिस तरह दिखाया गया है वो एंगेजिंग लगने के साथ-साथ बहुत रियल भी लगता है।

    कुल मिलाकर शाहिद कपूर की ‘जर्सी’ इमोशंस का एक सैलाब है जिसमें गोते खाने के बाद आप जब थिएटर से बाहर निकलेंगे तो कुछ देर खामोश रहना चाहेंगे।