‘निकम्मा’ रिव्यू: अभिमन्यु दासानी और शिल्पा शेट्टी की फिल्म तभी देखने लायक है जब आप पूरी तरह निकम्मे हों!
निकम्मा
अपनी भाभी के कड़क स्वभाव से तंग एक निकम्मा देवर अपनी आज़ादी चाहता है। लेकिन तभी उन्हें मुसीबत में देखकर उसके अन्दर 'भाभी तो मां है' वाली भावना जागती है, और वो दुश्मनों को तबाह करने के लिए खड़ा हो जाता है...
- साबिर खान
- अभिमन्यु दासानी,
- शिल्पा शेट्टी,
- शर्ले सेतिया,
- अभिमन्यु सिंह
- एक्शन-ड्रामा
- हिंदी
ये सोच पाना बहुत मुश्किल है कि ‘मर्द को दर्द नहीं होता’ जैसी फिल्म से बढ़िया डेब्यू करने वाले अभिमन्यु दासानी को किस मजबूरी ने ‘निकम्मा’ बनाया, मतलब ये फिल्म करने पर मजबूर किया। ‘बाग़ी’ बनाने वाले साबिर खान की ये फिल्म उस फ़ॉर्मूला पर बनी है जिसे अब खुद बॉलीवुड भी भूल चुका है। इस फिल्म में एक्शन है और कॉमेडी भी है, लेकिन वो आप तभी देख पाएंगे अगर बीच में कहीं आपकी सोते हुए आंख खुल जाएगी।
अभिमन्यु एक ऐसे लड़के का रोल कर रहे हैं जो पूरी तरह निकम्मा है और उसकी शानदार इंट्रो सीन ये है कि वो बाउंसर पर छक्का मार लेता है! इसके बाद फिल्म में वो बस हर काम के बहाने बनाता दिखता है। लेकिन दिक्कत तब हो जाती है जब उसकी भाभी का ट्रान्सफर किसी दूसरे शहर में हो जाता है और बड़ा भाई उसे साथ में हेल्प करने के लिए भेज देता है।
भाभी के बारे में उसके ख्याल वही हैं जो ट्रेडिशनल इंडियन टीवी सीरियल में होते हैं क्योंकि वो उसे काम-धाम करने को बोलती है। ये भाभी हैं शिल्पा शेट्टी। शिल्पा एक RTO ऑफिसर हैं और नए शहर में बाहुबली टाइप आदमी से भिड़ जाती हैं। क्यों भिड़ती हैं ये मैं नहीं बता रहा क्योंकि इतना भी निकम्मा नहीं हूं! फिर वही, अभिमन्यु के अन्दर का सलमान खान वाला देवर जाग जाता है और वो भाभी के सामने आ रही हर मुसीबत के लिए पहले खड़ा मिलता है।
इसी में कहीं पर शर्ले सेतिया भी हैं, जो अभी तक तारा सुतारिया के निभाए सारे कैरेक्टर्स से भी ज्यादा डब्बा रोल कर रही हैं। और अभिमन्यु से शादी करना चाहती हैं। लव स्टोरीज़ में एक मिठास तो होती है, लेकिन निकम्मा का लव एंगल देखने के बाद आपको साइनाइड चाटने पर मिठास महसूस हो सकती है!
साबिर खान ने टाइगर श्रॉफ को ‘हीरोपंती’ और ‘बाग़ी’ जैसी हिट्स दी हैं, मगर अभिमन्यु दासानी जैसे स्क्रीन पर एकदम फ्रेश लगने वाले लौंडे को उन्होंने जो दिया है, उसे एक कायदे की फिल्म तो बिल्कुल नहीं कहा जा सकता। फिल्म का स्क्रीनप्ले इतना खिंचता चला जाता है कि आपको थिएटर वालों का पेशेंस लेवल समझ आ जाएगा, कि उन्होंने अपनी स्क्रीन खुद नहीं तबाह कर डाली।
शिल्पा शेट्टी स्क्रीन पर अच्छी लगती हैं लेकिन, कैमरा लुक्स और स्लो मोशन वॉक्स के अलावा उनके पास करने को कुछ नहीं है। ‘निकम्मा’ के डायलॉग तो अपने आप में रिसर्च का सब्जेक्ट हैं। इस क्रिएटिविटी की दाद दी जानी चाहिए कि एक्टर की लाइन में वजन देना हो तो किसी शॉर्ट फॉर्म के साथ उसकी फुल फॉर्म बता दो: IPS- इंडियन पुलिस सर्विस! ‘निकम्मा’ देखने के बाद मेरा बॉडी ग्लूकोज इतना कम हो गया है कि इसके म्यूजिक-वूज़िक और टेक्निकल हिस्सों पर बात करना तो नहीं हो पाएगा।
कुल मिलाकर बस इतना कि फिल्म, फिल्ममेकर की है। दिमाग और पैसा आपका। इसे देशहित के कामों में लगाएं, फुस्सी बम खरीदने में नहीं।