‘सम्राट पृथ्वीराज’ रिव्यू: अक्षय कुमार की फिल्म हिंदू सम्राट जोर तो लगाती है, मगर भरपूर असर नहीं कर पाती
सम्राट पृथ्वीराज
मुहम्मद गौरी से कड़ी टक्कर लेने वाले सम्राट पृथ्वीराज चौहान की कहानी, जिनकी शौर्यगाथा को कवि चंद बरदाई ने ‘पृथ्वीराज रासो’ में लिखा है। कन्नौज की राजकुमारी संयोगिता के साथ उनकी प्रेम कहानी और राजकुमारी के पिता जय चंद से मिला धोखा भी इतिहास में दर्ज है।
- डॉक्टर चंद्रपकाश द्विवेदी
- अक्षय कुमार,
- मानुषी छिल्लर,
- सोनू सूद,
- संजय दत्त,
- आशुतोष राणा,
- मानव विज
- पीरियड ड्रामा
- हिंदी
अक्षय कुमार को पीरियड ड्रामा फिल्म में सोच पाना भी बहुत सारे बॉलीवुड फैन्स के लिए आसान नहीं रहा होगा। लेकिन फिर भी लोगों ने उम्मीद की कि शायद ‘सम्राट पृथ्वीराज’ में अक्षय का काम देखकर वो सरप्राइज हो जाएं। ट्रेलर आया तो बहुत लोगों को इस रोल में अक्षय भाए भी। मगर क्या डायरेक्टर चंद्रप्रकाश द्विवेदी की ये फिल्म, अक्षय और सम्राट पृथ्वीराज की कहानी को एक एपिक अंदाज़ में स्क्रीन पर उतार पाई?
बॉलीवुड और इतिहास का वैसे भी छत्तीस का आंकड़ा रहा है, इसलिए फिल्मों को हिस्ट्री का चैप्टर समझ कर देखने जा रहे हैं तो वैसे भी गलती आपकी है। लेकिन ‘सम्राट पृथ्वीराज’ की असली दिक्कत इतिहास भी नहीं, स्टोरी टेलिंग है। फिल्म के पहले सीन में सम्राट पृथ्वीराज चौहान बने अक्षय कुमार, मुहम्मद गौरी की कैद में, गज़नी- अफ़ग़ानिस्तान में हैं। (इतिहास में ऐसा हुआ था या नहीं ये जिज्ञासा है तो इलाज भी आप ही करें, मैं बस रिव्यू करूंगा!)
पृथ्वीराज की आंखें निकाली जा चुकी हैं और गौरी अपने शेरों के सामने उन्हें डाल कर, अपनी रियाया के साठ तमाशा देख रहा है। शेर जीतेंगे या अक्षय, ये तो आपको पता ही है। शुरुआत में दस मिनट में इस सीक्वेंस के बाद ये फिल्म धीरे-धीरे ऐसी फीकी पड़नी शुरू होती है कि फिर सीधा इंटरवल ब्लॉक के पास जा कर उठती है। क्यों? क्योंकि फिल्म का मकसद किसी तरह पृथ्वीराज को जल्दी से जल्दी मुहम्मद गौरी से भिड़वाना लगता है।
डायरेक्टर चंद्रप्रकाश द्विवेदी का लिखा स्क्रीनप्ले, अपने मेन हीरो का शौर्य और पराक्रम दिखाने से ज्यादा ऑडियंस को इतिहास में बैठे इस फिल्म के कैरेक्टर्स से इंट्रोड्यूस करवाने की कोशिश करता रहता है। ये रहे अजमेर-पति पृथ्वीराज चौहान, ये रहे चंद बरदाई (सोनू सूद), ये रहे काका (संजय दत्त), ये रही संयोगिता (मानुषी छिल्लर), ये रहे कन्नौज-पति जयचंद (आशुतोष राणा)। कथित रूप से ‘पृथ्वीराज रासो’ से प्रेरित ये कहानी, इस दिलचस्प काव्य की तरह पृथ्वीराज के कोर में नहीं जाती। न ही इस कहानी के विलेन मुहम्मद गौरी को स्क्रीन पर खूंखार दिखा पाती है।
बल्कि किसी भी किरदार को गहराई से खड़ा करने में फिल्म पिछड़ती है और नतीजा ये होता है कि पूरी कहानी में आप अपने इमोशंस को बहुत ज्यादा इन्वेस्ट नहीं कर पाते। पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की कहानी को भी फिल्म, एक प्रॉपर लव स्टोरी की तरह भरपूर प्रेम से ट्रीट नहीं कर पाती। क्लाइमेक्स को और कुछेक और मौकों को छोड़ दें तो ‘सम्राट पृथ्वीराज’ में कुछ ऐसा नहीं है जो पूरी फिल्म आपको बांधे रखे और आगे क्या होगा या कैसे होगा इसकी एक्साइटमेंट दे।
फिल्म का एकमात्र पॉइंट ये लगता है कि सम्राट पृथ्वीराज, मुहम्मद गौरी, जयचंद और संयोगिता के बार में जो भ बेसिक जानकारी आपको है, यहां बस वो आपको उसी तरह स्क्रीन पर होता दिखेगा। ‘पृथ्वीराज रासो’ से जिस शानदार योद्धा और युद्ध कौशल में पारंगत पृथ्वीराज की इमेज बनती है; फिल्म अपने हीरो को वैसा नहीं खड़ा कर पाती। मामला इतना फीका है कि एक लाइन में भिः ये इनहीं बताया गया कि पृथ्वीराज और संयोगिता के पिता में क्या रिश्ता था। चंद बरदाई और पृथ्वीराज चौहान के साथ की शुरुआत कैसे हुई, काका कण की बहादुरी और सम्राट के लिए उनका जज्बा। ये सबकुछ फिल्म आपको कर के नहीं दिखाती। बस एक आध लाइन में बोल के बता देती है।
‘सम्राट पृथ्वीराज’ में युद्ध के सीन्स भी कुछ ऐसे ग्रैंड या अनोखे नहीं हैं, जो आपने पहले न देखे हों। बेसिकली ये फिल्म सम्राट पृथ्वीराज चौहान की गाथा की एक ठंडी रीटेलिंग बन गई है। अक्षय को देखकर ऐसा लग रहा था कि उन्हें अपना किरदार अंडरप्ले करने को बोला गया है, जबकि उन्हें बहुत विशाल सा लगना चाहिए थे। मानुषी छिल्लर अपने डेब्यू पर कॉन्फिडेंट लगीं और उनकी स्क्रीन प्रेजेंस अच्छी है।
रोल सही से न लिखे होने के कारण सोनू सूद को भी कुछ बहुत ज्यादा करने को नहीं मिला और संजय दत्त, आशुतोष राणा जैसे ठोस कलाकारों को फिल्म किसी तरह वेस्ट करने में कामयाब हो गई है। ऊपर से बेहद औसत डायलॉग, जिनमें पृथ्वीराज के हिस्से उर्दू-फ़ारसी ऑरिजिन के शब्द ज्यादा थे और मुहम्मद गौरी के हिस्से हिंदी के। साथ में फिल्म का म्यूजिक भी कुछ ऐसा ख़ास नहीं है जो थिएटर से निकलकर आपको याद रहे।
कुल मिलाकर कहा जाए तो ‘सम्राट पृथ्वीराज’ में एक एपिक स्टोरी के ड्रामा बिल्ड-अप और हीरो एलिवेशन की जितनी जगह बनती थी, वो नहीं दी गई। और यही वजह है कि एक शानदार महागाथा का स्कोप होते हुए भी ये फिल्म ठंडी लगती है। हालांकि, अक्षय को पीरियड ड्रामा में देखने के लिए और एक जानी सुनी सी कहानी को पर्दे पर देखने के लिए एक्साइटेड लोग इसे झेल जाएंगे।