शाबाश मीठू मूवी रिव्यू: तापसी पन्नू ने निभाया मिताली राज का बढ़िया किरदार, लेकिन फिल्म देखकर पीट लेंगे माथा

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    शाबाश मीठू

    तापसी पन्नू अपनी नई फिल्म शाबाश मीठू लेकर हाजिर हैं। फिल्म में महिला क्रिकेटर मिताली राज की कहानी दिखाई गई है। कैसे वो खुद आगे बढ़ती हैं और महिला क्रिकेट टीम इंडिया को आगे बढ़ाती हैं, ये फिल्म में बखूबी दिखाया गया है।

    Director :
    • सृजित मुखर्जी
    Cast :
    • तापसी पन्नू,
    • विजय राज
    Genre :
    • बायोग्राफी
    Language :
    • हिंदी
    शाबाश मीठू मूवी रिव्यू: तापसी पन्नू ने निभाया मिताली राज का बढ़िया किरदार, लेकिन फिल्म देखकर पीट लेंगे माथा
    Updated : July 14, 2022 11:33 PM IST

    तापसी पन्नू स्टारर फिल्म शाबाश मीठू के बारे में सब जानते हैं कि ये एक बायोपिक फिल्म है। बायोपिक है तो जाहिर है सारा फोकस भारतीय महिला क्रिकेटर मिताली राज पर ही होगा। शाबाश मीठू में भी यही हुआ है। लेकिन सबसे जरूरी है फिल्म में वो वर्ल्ड कप दिखाया जाना जिसके बाद महिला क्रिकेट टीम को अपनी एक नई पहचान मिली। न सिर्फ मिताली राज बल्कि महिला क्रिकेट टीम को लोग जानने लगे। लेकिन मिताली राज ने जिस जज्बे और लगन के साथ अपना क्रिकेटर बनने का सपना पूरा किया और वूमेन इन ब्लू को आगे बढ़ाया, क्या फिल्म भी उसी इमोशन्स के साथ बनाई गई है। क्या आपके अंदर मिताली राज की जिंदगी के बारे में जानकर जोश भर उठेगा। आइए इस रिव्यू में जानते हैं।

    फिल्म की कहानी?
    फिल्म की मिताली राज के बचपन से ही शुरू होती है। कैसे उसकी दोस्ती एक लड़की से होती है जो लड़कों की तरह क्रिकेट खेलती है और उसे भी सिखाती है। छुप छुप के क्रिकेट खेलने का सिलसिला चालू होता है। नादान सी मिताली राज जब छुप कर खेल रही होती है तो कोच संपत (विजय राज) की उस पर नजर पड़ती है और वो उसके घर पहुंच जाते हैं, ये बताने की ये बेटी आगे चलकर क्या कमाल कर सकती है। ट्रेनिंग का दौर शुरू होता है। कड़ी मेहनत होती है और आखिर में टीम नेशनल टीम के लिए मिताली को चुन लिया जाता है। यहां उसे अलग चैलेंज मिलते है। एक समय पर मिताली हारकर अपने घर भी लौट आती हैं। आखिरकार मिताली टीम इंडिया की कैप्टन बनती हैं और फिर वर्ल्ड कप के फाइनल तक टीम को ले जाती हैं।

    फिल्म में क्या अच्छा?
    मिलाती राज के बचपन को स्क्रीन पर पूरा टाइम दिया गया है और छोटी मिताली को देखना काफी अच्छा भी लगता है। कोच और उसकी शिष्य की बॉन्डिंग अच्छी दिखाई गई है। कहीं सख्त तो कहीं नरम। तापसी पन्नू के अंदर जोश और जज्बा पूरा दिखता है। मिताली यानी तापसी पन्नू को अच्छा क्रिकेट खेलते दिखाया गया है। महिला क्रिकेट टीम को क्या क्या झेलना पड़ा। ये सब बाखूबी फिल्म में दिखाया गया है। इंग्लैंड टूर के लिए कैसे अकेले ही ये लड़कियां चल देती हैं, उनके साथ एक मैनेजर तक नहीं होता। लोकल ट्रांसपोर्ट में सफर करना पड़ता है। बेसिक चीजों से जूझते हुए जब मिताली एसोसियेशन का दरवाजा खटखटाती हैं तो वहां भी पूरी टीम के बेइज्जत किया जाता है। और अंत में जब टीम इंडिया को वूमेन इन ब्लू चिल्ला चिल्ला कर उनका एयरपोर्ट पर स्वागत किया जाता है तब भी आपको अच्छा लगेगा। वहीं म्यूजिक की बात करें तो शुरुआत का ओपनिंग म्यूजिक बढ़िया लगेगा। 

    कहां रही कमी?
    फिल्म में सबसे बड़ी कमी फिल्म की रफ्तार है। फिल्म बार बार आपको ऐसा लगेगा कि थम गई है और आगे नहीं बढ़ रही है। दूसरी सबसे बड़ी कमी जो डायरेक्टर सृजित मुखर्जी ने की है वो ये कि फिल्म में वर्ल्ड कप दिखाया जा रहा है और आपने उस पर जरा भी मेहनत नहीं की है। आखिरी तक ऑरिजनल फूटेज को फास्ट फॉरवर्ड करके पूरा क्रिकेट वर्ल्ड कप निकाल दिया है और उसके बाद फिल्म खत्म। बीच बीच में क्रोम इस्तेमाल करके तापसी पन्नू को स्क्रीन पर ले आया जाता है बस। माना की ये फिल्म एक बायोपिक है लेकिन इसका मूल तो क्रिकेट ही था। जहां इंडिया में क्रिकेटर को राष्ट्र खेल से ज्यादा प्यार मिलता है वहां स्क्रीन पर क्रिकेट संबंधित फिल्म लोगों को जरा भी रास नहीं आएगी। म्यूजिक की बात करें तो फिल्म में अमित त्रिवेदी का म्यूजिक जरूर है लेकिन यहां उनसे भी निराशा हाथ लगती है। फिल्म में वर्ल्ड कप शुरू होने से पहले तापसी जो टीम को स्पीच देती हैं, उस पर जरा भी मेहनत नहीं की गई है। 

    कुल मिलाकर फिल्म को आप फर्स्ट हाफ या उससे कुछ आगे तक देख सकते हैं। लेकिन उसके बाद आपको फिल्म और उसमें दिखाए गए क्रिकेट से निराशा ही हाथ लगेगी। एक अच्छी स्टोरी को अच्छे तरीके से दिखाया जा सकता था। हम इस फिल्म को 5 में से 2 स्टार दे रहे हैं।

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