‘थार’ रिव्यू: अनिल कपूर ने बेटे हर्षवर्धन से भी जमाया बदले की इस कहानी का माहौल; मगर रेगिस्तान में थोड़ी सी खो गई फिल्म

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    थार

    भारत-पाकिस्तान बॉर्डर के पास मुनाबाओ कस्बे में एक पेड़ से लटकी लाश मिली है। गांव में एक घर के दो लोगों को मार दिया गया है। एक इंस्पेक्टर है जो रिटायर होने से पहले एक बड़ा केस सॉल्व करना चाहता है। और इलाके में एक शहरी अजनबी अचानक बहुत दिखने लगा है। आखिर क्या है इस गुत्थी का हल?

    Director :
    • राज सिंह चौधरी
    Cast :
    • अनिल कपूर,
    • हर्षवर्धन कपूर,
    • फातिमा सना शेख,
    • सतीश कौशिक,
    • मुक्ति मोहन
    Genre :
    • रिवेंज थ्रिलर
    Language :
    • हिंदी
    Platform :
    • नेटफ्लिक्स
    ‘थार’ रिव्यू: अनिल कपूर ने बेटे हर्षवर्धन से भी जमाया बदले की इस कहानी का माहौल; मगर रेगिस्तान में थोड़ी सी खो गई फिल्म
    Updated : May 07, 2022 12:04 AM IST

    नेटफ्लिक्स की नई हिंदी फिल्म ‘थार’ के बारे में जो एक चीज़ सबसे पहले ध्यान खींचती है वो है इसका माहौल। भारत-पाकिस्तान के सरहदी इलाके में टिकी ये कहानी पहले 15 मिनट में ही 3 हत्याएं देख लेती है। इंस्पेक्टर सुरेखा सिंह (अनिल कपूर) का पुलिसिया करियर कुछ वक़्त में रिटायरमेंट की शाम देखने ही वाला है, मगर उसे ये अफ़सोस है कि उसके हिस्से कुछ ‘एक्शन’ नहीं आया। 

    इन हत्याओं के पीछे की कड़ियां जोड़ने में उलझा हुआ ये इंस्पेक्टर, अपने पक्के वाले साथी हवलदार के घर लाल मांस खाता हुआ एक सीन में बोलता है- ‘कुछ भी हो, बहुत दिनों बाद मज़ा तो आ रहा है’। इसी सीन में खाने की तारीफ़ के साथ पुलिस छोड़कर ढाबा खोल लेने की सलाह पर हवालदार भूरे (सतीश कौशिक) कहता है कि इस वर्दी में जात-पात छुप जाती है, लेकिन ढाबे में उसके हाथ का खाना खाने कौन आएगा! 

    ‘थार’ में ऐसे कई मोमेंट्स हैं, जो आपके दिल को अचानक हिट करते हैं। कहानी में ये मोमेंट्स कई दरवाज़े भी खोलते हैं जहां से ये फिल्म एक अद्भुत नॉएर फिल्म हो सकती थी। सरहद पर कहीं किनारे दुनिया से बहुत अछूता एक कटा हुआ इलाका, घोड़े-जीप-डकैत-माफिया और लगभग जंग खाया हुआ एक पुलिसवाला, ‘थार’ को एक वेस्टर्न सा भी माहौल देता है। फिल्म इन दोनों टाइप के सिनेमा के बीच की एक लकीर पकड़े अपनी ले में चल रही होती है। 

    लेकिन आधी बीतने के बाद थोड़ी सी घिस चुकी बदले वाली पटरी पर आ जाती है और अंत में बहुत ‘सुविधाजनक’ तरीके से एक हल्की बॉलीवुड थ्रिलर की तरह ख़त्म हो जाती है। इसे देखने में दुःख बस यही है कि कहानी में जितने नए दरवाज़े खुल सकते थे फिल्म उन सबको खोले बिना कहीं और निकल जाती है, और एक बेहतरीन मौका खो देती है। ‘थार’ की सबसे बड़ी खासियत है इसका माहौल, जिसे रचने में फिल्म की सिनेमेटोग्राफर श्रेया देव दुबे के बेहतरीन डेप्थ भरे वाइड शॉट्स और नज़र का बहुत बड़ा योगदान है। 

    इसके साथ में अजय जयंती का म्यूजिक बहुत समय बाद किसी हिंदी फिल्म में ऐसा स्कोर बन पड़ा है जिसे सुनते रहा जा सकता है। राज सिंह चौधरी की लिखी स्क्रिप्ट अगर और टाइट होती मामला बहुत अलग होता। इस कहानी में उन्होंने जो फीमेल कैरेक्टर्स लिखे हैं उन्हें डेवलप होने का और स्कोप मिलना चाहिए था। जहां बबीता (अनुष्का शर्मा) कहानी में एकमात्र फीमेल है जिसे ‘मन का मालिक’ कहा जा सकता है, वहीं इंस्पेक्टर की पत्नी प्रणति (निवेदिता भट्टाचार्य) को सिर्फ एक सीन में थोड़ा मौका मिला और वो भी बहुत दिलचस्प बन गया। 

    पूरे करियर में बिना प्रोमोशन, इंस्पेक्टर बना रह गया सुरेखा सिंह जब पूछता है कि उसके इसी पोस्ट पर रह जाने से वो खुश है? तो जवाब मिलता है कि यहां कसबे में इज्जत मिलती है, लोग जानते हैं, साग-सब्जी वाले पैसे नहीं लेते और घर पर आया प्लंबर एक भी रुपया नहीं लेकर गया; इसलिए वो अपने पति के इंस्पेक्टर ही बने रहने से खुश है। ‘थार’ का सबसे बड़ा फीमेल रोल फातिमा सना शेख के हिस्से आया है, चेतना के किरदार में वैसे तो उनमें गांव वाला देसीपन थोड़ा हल्का लगता है; लेकिन ‘बांझ’ का ताना सुनकर जी रही चेतना जब खुलनी शुरू होती है तो आप चाहते हैं कि उसे और दिखना चाहिए। 

    ‘गौरी’ के रोल में मुक्ति मोहन का काम तो अच्छा लगता है, लेकिन इस महत्वपूर्ण रोल को लिखा ऐसे गया है कि उन्हें करने को ज्यादा कुछ नहीं मिलता। अपने डेब्यू से ही क्रिटिक्स की नज़रों में आए हर्षवर्धन कपूर की परफॉरमेंस एक बार फिर से देखने लायक है। एक संदिग्ध से लगने वाले और बिना पलक झपकाए बेहद भयानक हरकतें कर रहे किरदार में उनका ठहराव देखने लायक है। उनके पास बेहद कम डायलॉग हैं और सिर्फ रियेक्ट किए बिना उन्हें अपना एक्ट पूरा करना था जो उन्होंने अच्छे से हैंडल किया। लेकिन कहानी की असली जान अनिल कपूर हैं। 

    उनका बिना पलक झपकाए छत की तरफ देखते रहना, किसी से बात करते हुए उसके अन्दर झांकते रहना जैसे आपको बांध लेता है। किसी भी सीन में वो न आपको ‘ओवर’ करते लगते हैं और न ‘अंडरप्ले’ करते। अनिल अपने किरदार का तापमान एकदम परफेक्ट बनाए रखते हैं। उनके साथी सतीश कौशिक को देखकर एक बार फिर लगता है कि वो कितनी आसानी से इन सपोर्टिंग किरदारों में ढल जाते हैं। उन्हें देखकर लगता है कि फिल्ममेकर्स को अभी उनसे और बहुत कुछ मिल सकता है।

    कुल मिलाकर नेटफ्लिक्स पर ‘थार’ एक ऐसी हिंदी फिल्म है जिसे कहानी का बेहतरीन माहौल और जानदार लैंडस्केप तैयार करने की कला के लिए देखा जा सकता है। हालांकि, ये फिल्म जितना कर सकती थी, इसने उससे कम ही अचीव किया, लेकिन दमदार परफॉरमेंस इसे देखने का एक और कारण हो सकती है।