पंचायत 2 रिव्यू: फुलेरा गांव की ये कहानी दिल छू लेगी, हंसने के साथ रोना भी नहीं रोक पाएंगे आप
बात साल 2020 की है जब दुनिया कोरोना वायरस की चपेट में थी। लोगों का घरों से निकलना मुश्किल था, सड़कों पर सन्नाटा, घर में मातम जैसा माहौल। ऐसे बुरे हालातों में दिमाग को सुकून देने के लिए अमेज़न प्राइम वीडियो पर एक सीरीज प्रीमियर हुई ‘पंचायत’ जिसने काफी हद तक बुरे माहौल को थोड़ा हल्का करने में मदद की। उस समय जब सीरीज का इंट्रो दिखाया गया था तो गली मौहल्ले की दीवारों पर छपे मुहावरे, खेत खलियान, कुआं, नदी, हैंडपंप ने शहरों में रहने वालों की गांव से जुड़ी यादों को ताजा कर दिया। वैसे तो इस सीरीज में बहुत कुछ खास नहीं था। लेकिन ये अपने आप में बेहद खास थी इसलिए अब इसका दूसरा सीजन भी धूम मचा रहा है।
आमतौर पर किसी भी शो या फिल्म का सीक्वल कभी पहले जितना शानदार नहीं रहा। लेकिन पंचायत के दूसरे सीजन की अनोखी, सच्ची जैसी दिखने वाली कहानियों ने ऑडियंस को अपने से जोड़ लिया है। इस नए सीजन की शुरुआत वही से हुई जहां जीतू भैया उर्फ गांव फुलेरा के पंचायत सचिव अभिषेक त्रिपाठी ने छोड़ी थी। पानी की टंकी से उतरते सचिव साहब इस नए सीजन में पहले जितने चिडचिडे नहीं लगते। जैसे गांव उनका घर और पंचायत के सदस्य उनका परिवार बन गया हो। वहीं सीरीज का पहला एपिसोड अगर बोरिंग होता तो शायद स्किप करके आगे बढ़ते या वहीं इस गांव की कहानी को छोड़ देते, लेकिन ये दूसरे सीजन का हर एपिसोड आपको बांधे रखता है। ये वैसा ही लगता है जैसे आमतौर पर गाँव में होता है।
जीतेंद्र का किरदार तो सीरीज की जान है ही, लेकिन प्रधान जी रघुवीर यादव, उप प्रधान प्रहलाद, सहायक विकास और प्रधाननी नीना गुप्ता ने कमाल कर दिया है। इस बार सुनीता राजवर और प्रधान जी की बेटी बनी सानविका ने एंट्री मारी है। पहले एपिसोड में जिंदगी की सच्चाई दिखाई गई है। तो दूसरे में गांव के प्रधान से दुश्मनी, इसमें गांव में CCTV लगना, पक्की सड़क, महिला प्रधान की बात ऐसे छोटे मुद्दों से बड़ी सीख दी गई। सीरीज को देखने के बाद शायद इस सोच में खो सकते हैं मेकर्स ने गांव में रहते हुए ये कहानियां लिखी होंगी।
पंचायत एंटरटेन करती है कुछेक एपिसोड में लगता है कि सचिव साहब और प्रधान जी की बेटी की लवस्टोरी पर फोकस जाने वाला है। लेकिन अंतिम एपिसोड इस हैपी सीरीज का सबसे दुखद बना देता है। स्क्रीनप्ले इतना दमदार है कि पंचायत के घरों में ये सन्नाटा काटने को दौड़ता। इस आखिरी सीन ने पूरी सीरीज की कहानी को बदल दिया और शायद ये भी बताया कि असल जिंदगी में सबकुछ फिल्मों की तरह हैपी एंडिंग नहीं होता है। लोग पहाड़ जैसे दुखों का सामना करते हैं और फिर इसी दुख को सीने पर लिए आगे बढ़ते हैं। कहानी देख कर तो लग रहा है कि इसका तीसरा सीजन भी अगले साल तक आ जायेगा। अभी ये कहानी अधूरी है।
आज कल बन रहे एक्शन, ट्रिलर प्रोजेक्ट्स के बीच इस तरह का कुछ हल्का ऑडियंस तक पहुंचाया जाना जरुरी है। ये देखने में हल्का जरुर है, लेकिन जानदार और दमदार है। सीरीज को डायरेक्ट किया है दीपक कुमार मिश्रा ने। वैसे तो ये सीरीज आज प्रीमियर होनी थी लेकिन ऑनलाइन लीक होने की वजह से पहले ही प्लेटफार्म पर अवेलेबल है। तो इस वीकेंड फ्री हैं और कुछ अच्छा देखना चाहते हैं तो ‘पंचायत 2’ देख डालिए। मेरी तरफ से सीरीज को 5 में से 3.5 स्टार्स।