‘द फ़ैमिली मैन 2’ रिव्यू: मनोज बाजपेयी, समांथा अक्किनेनी की टक्कर से और भी डार्क, एक्शन-पैक और दिलचस्प हो गया है शो
‘द फ़ैमिली मैन 2’ रिव्यू: मनोज बाजपेयी, समांथा अक्किनेनी की टक्कर
Updated : June 04, 2021 08:38 PM IST
महीनों के लंबे इंतज़ार के बाद आखिरकार दर्शकों के फेवरेट शो ‘द फैमिली मैन’ का सीजन 2 आ ही गया। इस बार शो डार्क है, ज़्यादा थ्रिलर है और इसका प्लॉट आतंकवादी घटनाओं वाले शोज़ में घिस चुकी भारत-पाकिस्तान-कश्मीर कहानी से डिफरेंट है। लेकिन ‘द फैमिली मैन 2’ की सबसे अलग बात ये है कि एक टॉप हिन्दी शो में साउथ को जगह तो मिली, वरना हिन्दी कंटेन्ट में कहानियां उत्तर भारत के 5 राज्यों और हद से हद मुंबई जाते जाते दम तोड़ देती हैं।
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मनोज बाजपेयी का श्रीकांत तिवारी एक बढ़िया से बनाया हुआ चटपटा मसालेदार अचार है, मतलब सालों साल चलेगा, और जब निकाला जाएगा पहले से और ज़ायकेदार लगेगा। सेकंड सीजन की शुरुआत में जब श्रीकांत अपनी नई कॉर्पोरेट जॉब और ‘अर्बन टच’ के साथ आता है तो आपको खुद फील होता है कि हमारा श्रीकांत बेचारा कितना बुरा फंस गया है। और जैसे ही मौका मिलता है, टास्क (Threat Analysis and Surveillance Cell) वाला श्रीकांत, कॉर्पोरेट वाले श्रीकांत को फाड़ के बाहर आता है। कहानी के कोर में अभी भी श्रीकांत का परिवार और उसकी सीक्रेट एजेंट वाली जॉब का नेचर ही है। लेकिन इस बार खतरा और ज़्यादा बड़ा है, और इस बार फैमिली पर भी श्रीकांत की जॉब का असर थोड़ा ज़्यादा डायरेक्ट। इस बार खतरा है श्रीलंका की एक बागी तमिल आउटफिट, जिसके एजेंडे से इंडिया-श्रीलंका पॉलिटिक्स ऐसे मिक्स होती है कि आखिरकार उनके दर्दों का इलाज अब इंडियन प्राइम मिनिस्टर पर अटैक कर के ही हो सकता है। इस आउटफिट की सबसे खतरनाक ऑपरेटिव है राजी। पिछली सीरीज़ में जो पाकिस्तानी आईएसआई एजेंट्स थे, उन्होने भी अपना ‘मिशन जुल्फीकार’ इस बागी गुट के साथ मिला लिया है। अब बात करते हैं राजी की। राजी मैडम एक स्पिनिंग मिल में काम करती हैं, वहां ये धागा बनाती हैं, और ज़रूरत पड़ने पर लोगों के धागे खोल देती हैं।
समांथा अक्किनेनी की राजी जैसा कैरेक्टर मैंने तो अभी तक अपने यहां नहीं देखा। भयानक डार्क, हाड़ कंपाने वाली बैक स्टोरी और एक्शन की देवी, भाईसाहब... देवी। समांथा एक दब्बू और डरी हुई लड़की से, जिस तरह पलक झपकते ही एक खौफनाक ‘किलिंग मशीन’ में बदलती हैं उसे देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। और थोड़ी ही देर में राजी को देखने के बाद साफ हो जाता है कि इसका किसी से मुक़ाबला तो हो ही नहीं सकता। श्रीकांत या उसकी टीम के 5 लोग मिलकर भी अकेली राजी से नहीं भिड़ सकते। समांथा के चेहरे पर पोते गए ब्राउन कलर से होने वाली चिढ़ को पचाने के बाद, उनकी बॉडी लैंगवेज, एक्स्प्रेशन, आँखें, सब आपको एक सतत भय में रखती हैं कि उनके स्क्रीन पर रहते आसपास सबकी जान को बहुत खतरा है। साउथ की मिलिटेंट आउटफिट को इस तरह डिटेल में दिखाना शो के राइटर्स के लिए भी चैलेंजिंग तो रहा होगा। ऑथेन्टिक बनाने के लिए लोगों को तमिल में बात करते भी दिखाना है, लेकिन हिन्दी जनता का भी खयाल रखना है। ये एक ऐसा पॉइंट है, जहां शायद एक एवरेज हिन्दी भाषी व्यक्ति शो के पहले 5 एपिसोड से दुखी हो सकता है क्योंकि स्क्रीन पर सबटाइटल बहुत पढ़ने पड़ते हैं। लेकिन अब ये समझना ज़रूरी है कि हम कबतक स्क्रीन पर ‘डुगना लगान डेना परेगा’ जैसी ज़बरदस्ती की हिन्दी बोलने वाले कैरेक्टर ढो सकते हैं। ये तो समझना पड़ेगा यार कि कैरेक्टर्स जहां से हैं, वहां की ज़बान तो बोलेंगे ही।
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श्रीकांत और जेके का तमिल कल्चर और लैंगवेज को समझने का स्ट्रगल स्टोरी में मज़ेदार भी लगता है। और जेके जितना मज़ेदार स्पोर्टिंग कैरेक्टर राज एंड डीके ही लिख सकते हैं। श्रीकांत में जेके का तड़का लगा के जो मस्त कॉमिक रिलीज़ मिलती है वो कमाल है। ‘द फैमिली मैन 2’ की पॉलिटिक्स पर अलग से बात होगी तो वहाँ बहुत कुछ ऐसा है जो नया नहीं भी है लेकिन स्क्रीन पर सबकुछ घटित बहुत अच्छे से हुआ है। हालांकि, स्क्रीन पर कई जगह डबिंग थोड़ी ऑफ लगी जिससे ये समझ आ रहा है कि शो की रिलीज़ कर के शायद कुछ-कुछ जगह चीज़ें बदली गई हैं, ताकि कंट्रोवर्सी न हो। ऐसी टेरर अटैक वाली स्टोरीज़ के कुछ क्लीशे एलीमेंट शो में भी आए हैं। जैसे, कॉल ट्रेसिंग का रिकॉर्ड उठाएं तो शायद ही किसी फिल्म या शो में ट्रेसिंग से कोई टेररिस्ट पकड़ा गया हो, मगर ट्राई हर बार करते हैं।
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कुल मिलाकर कहें तो ‘द फैमिली मैन 2’ स्टोरी बुनने के मामले में पहले सीजन से भी बेहतर लगा। शो का एक्शन बहुत ज़बरदस्त है, राइटिंग जोरदार है। मनोज हों, समांथा हों या शरीब हाशमी सबका काम जोरदार है। खासकर, साउथ के जितने एक्टर्स को कास्ट किया गया है सबने परफॉर्मेंस का लेवल बढ़ा दिया है। ‘द फैमिली मैन 2’ पूरी तरह से एक बढ़िया सीक्वल है।