क्या आपको पता है सुपरहिट पंजाबी गीत 'छल्ला' के पीछे की असली कहानी?
‘छल्ला’ पंजाबी भाषा से निकला एक ऐसा लोकगीत है जिसे कभी न कभी हर आदमी ने सुना है। अधिकतार लोगों ने ‘छल्ला’ सुना है पंजाब की शान कहे जाने वाले पंजाबी गायक गुरदास मान साहब की आवाज़ में, लेकिन इस गाने के और भी कई वर्ज़न बहुत पॉपुलर हैं। पारम्परिक पंजाबी ढोल के साथ जब ‘छल्ला’ गाया जाता है तो सुनने वालों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इस गाने के बोल तो बड़े इमोशनल हैं मगर क्या आपको ‘छल्ला’ के लिरिक्स का असली मतलब पता है? क्या आपको पता है ये बेहद इमोशनल गाना असल में लिखा किसलिए गया? आइए आपको बताते हैं ‘छल्ला’ के पीछे की असली कहानी।
‘छल्ला’ कहानी है पंजाब की, आज वाले पंजाब की नहीं, उस पंजाब की जब भारत और पाकिस्तान एक हुआ करते थे। उस वक़्त के पंजाब में झल्ला नाम का एक मल्लाह था, मल्लाह यानी नाव चलाने वाला। झल्ला अपनी नाव से मुसाफिरों को नदी के आर-पार लाता और ले जाता। उसकी बीवी नहीं थी बस एक लड़का था जिसका नाम छल्ला था और झल्ला अपने लड़के को खूब प्यार करता था। झल्ला जब नदी पर नाव चलाता तो अपने बेटे छल्ला को भी अपने साथ ले जाता। एक रोज़ झल्ला बीमार पड़ गया और वो इस लायक नहीं था कि नाव चला सके।
नाव ना चलने से लोगों को परेशानी हुई तो उन्होंने आ कर झल्ला को कहा कि वो खुद नाव नहीं चला सकता तो अपने बेटे को भेज दे। आखिर रोज़ साथ रहते-रहते वो इतना तो सीख ही गया होगा। कहते हैं झल्ला अपने प्यारे बेटे को भेजना नहीं चाहता था। लेकिन उसके बेटे छल्ला ने यह जिद पकड़ ली कि वह नाव लेकर जाएगा और उस पार से अपने पिता के लिए दवाई भी लेता आएगा। झल्ला रोकता रह गया, लेकिन छल्ला नहीं माना और चल दिया। छल्ला नाव लेकर चला तो गया मगर नदी में लहराती नाव को संभाल नहीं पाया और पानी में बह गया या डूब गया। जब झल्ला को ये पता लगा कि उसका बेटा नहीं रहा तो वो दहाड़ें मारकर रोते हुए कहने लगा-
‘जावो नी कोई मोड़ ले आवो
मेरे नाल गया लड़ के
अल्लाह करे जे आ जावे सोणा
देवां जान कदमां विच धर के !’
(कोई जा कर मेरे बेटे को वापिस ले आओ वो मुझसे लड़कर गया है। अगर भगवान मेरे बेटे को वापिस भेज दे तो मैं बदले में अपनी जान भगवान के चरणों में रख दूं)।
बेटे के न रहने से झल्ला एकदम अकेला हो गया। उसने नाव चलाना तो नहीं छोड़ा, लेकिन अब वो भी जब भी नाव लेकर नदी में उतरता अपने बेटे को याद कर के रोने लगता। नाव पे बैठा झल्ला नदी के पानी में हाथ डालकर कुछ खोजता हुआ सा गाता- ‘छल्ला नौ-नौ खेवे, पुत्तर मिठड़े मेवे, अल्लाह सबनूं देवे’ (बेटे मीठे मेवे की तरह होते हैं ईश्वर सबको बेटे दे)।
इस घटना के कई सालों के बाद नौटंकी थिएटर यानी बाद में पाकिस्तान थिएटर कहे जाने वाले एक थिएटर ग्रुप को चलाने वाले फ़ज़ल शाह ने इस कहानी को गाने की शक्ल दी। इस गाने को धुन में पिरोया उनकी बीवी अम्मान ने और इसे गाया उनके गोद लिए बेटे आशिक़ हुसैन जट्ट ने। 1934 में इस गाने को म्यूजिक कम्पनी HMV ने एल पी पर रिलीज़ किया। एल पी यानी वो बड़ी वाली गोल सी डिस्क जिसे आम तौर पर रिकॉर्ड भी बोला जाता है।
इसके काफी साल बाद पाकिस्तान के एक गायक इनायत अली ने लाहौर रेडियो पर ये गाना गाया।
सुनिए इनायत अली का गाया छल्ला
उनका गाया हुआ गाना इतना मशहूर हो गया कि उनका नाम ही पड़ गया इनायत अली ‘छल्ले वाला।’
सन 1986 में एक पंजाबी फिल्म आई ‘लौंग दा लश्कारा’। इस फिल्म के एक सीन में एक बड़ा सादा सा आदमी फ़कीर सा भेस बनाए ‘छल्ला’ गा रहा था। ये गायक था गुरदास मान, वही गुरदास मान जिसे आगे चलकर ‘पंजाब की शान’ कहा गया।
सुनिए मान साहब का गाया 'छल्ला'
और ‘छल्ला’ ? वो तो दूरियों का गीत बन गया। हालांकि आगे चलकर ‘छल्ला’ के कई खुशनुमा वर्ज़न भी आए, लेकिन आज भी लोग दर्द और दूरी के गीत ओरिजिनल ‘छल्ला’ को ही पसंद करते हैं।