Madgaon Express Review: कॉमेडी और सस्पेंस का मिक्स्चर है प्रतीक गांधी और दिव्येंदु शर्मा की फिल्म
गडगांव एक्सप्रेस
तीन दोस्त हैं जो बचपन के सपने को पूरा करने के लिए गोवा जाते हैं लेकिन वहां कोकेन की मुसीबत में फंस जाते हैं। गैंस्टर से लेकर पुलिस उनके पीछे पड़ जाती है। लेकिन वो कैसे इन सबसे पीछा छुड़ाते हैं, यही पूरी फिल्म की कहानी है।
- कुणाल खेमू
- प्रतीक गांधी,
- दिव्येंदु शर्मा,
- अविनाश तिवारी और नोरा फतेही
- हिंदी
प्रतीक गांधी, दिव्येंदु शर्मा और अविनाश तिवारी स्टारर फिल्म मडगांव एक्सप्रेस का 22 मार्च को सिनेमाघरों में दस्तक दे चुकी है। कुणाल खेमू ने इस फिल्म के जरिए डायरेक्शन की दुनिया में डेब्यू किया है। ये एक कॉमेडी और सस्पेंस से भरपूर फिल्म है। तो क्या एक्टर से डायरेक्टर बने कुणाल अपनी इस नई फिल्म में कमाल दिखा पाए हैं? जैसे वो खुद कॉमेडी फिल्म में काम करते थे क्या वो वैसी ही कॉमेडी फिल्म बना पाए हैं? आइए जानते हैं।
फिल्म की कहानी?
जैसा की आपने ट्रेलर में देखा है कि ये तीन दोस्तों की कहानी है और तीनों गोवा बचपन से ही गोवा जाना चाहते हैं लेकिन बड़े होकर वो गोवा जा पाते हैं। लेकिन गोवा जाते ही ये तीनों बड़ी मुसीबत में फंस जाते हैं। ये जिस रूम में रुकते हैं वहां बेड में ड्रग्स मिलता है और वो ड्रग्स एक गैंग चुरा लेता है जबकि ये दूसरे गैंग का ड्रग्स होता है। पुलिस से लेकर माफिया गैंग इन तीनों के पीछे पड़ जाते हैं। आखिर में ये तीनों कैसे इस मुसीबत से पीछा छुटाते हैं, बस यही फिल्म की कहानी है।
फिल्म में क्या अच्छा?
फिल्म में कॉमेडी तो एवरेज है लेकिन फिल्म का सस्पेंस अच्छा है। क्लाईमैक्स को बाकी कॉमेडी मूवीज की तरह सिर्फ होचपोच दिखाकर सब लास्ट में ठीक नहीं किया गया है बल्कि पूरे लॉजिक्स के साथ एंड किया गया है। फिल्म का सेकेंड हाफ मजेदार है।
फिल्म को फरहान अख्तर और रितेश सिधवानी की एक्सेल एंटरटेनमेंट ने बनाया है जिन्होंने फुकरे फ्रेंचाइजी बनाई है। एक बार को ऐसा लगा था कि फिल्म फुकरे टाइप की हो सकती है या फुकरे के कैरेक्टर्स इसमें आएंगे और एक क्रॉसओवर होगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ बल्कि एक नया कॉमेडी और सस्पेंस का मिक्सचर देखने को मिलता है।
फिल्म के हर एक कैरेक्टर ने अपना रोल अच्छे से निभाने की कोशिश है। प्रतीक गांधी, दिव्येंदु शर्मा और अविनाश तिवारी की पहली बार तिकड़ी बनी है, लेकिन आपस का तालमेल ठीक नजर आता है।
कहां रह गई कमी?
कुणाल खुद भी कॉमेडी फिल्म्स कर चुके हैं तो उन्हें डायरेक्शन में उसका फायदा मिला है। लेकिन कुछ चीजों में तो वो चूक गए हैं। फिल्म के गाने तो बिल्कुल अच्छे नहीं है। बैकग्राउंड स्कोर भी ऐसा लगता है जैसे कि कुछ मूवीज में से उठाकर मिक्स कर दिया गया हो। वहीं फर्स्ट हाफ थोड़ा स्लो पड़ता नजर आता है। चूंकि फुकरे जैसी फिल्मों ने लेवल हाई रखा है तो आप यहां भी कुछ वैसी ही उम्मीद लेकर आते हैं लेकिन चीजें वैसी नहीं हैं।
फिल्म की कहानी बिल्कुल फ्लैट है। सारी चीजें प्रीडिक्ट की जा सकती हैं, सिवाय आखिरी के सस्पेंस के। फिल्म का क्लाईमैक्स ही इस फिल्म को मजेदार बनाता है। वरना कहानी में बहुत दम नजर नहीं आता है।
तीनों एक्टर्स के अलावा नोरा फतेही भी फिल्म मे हैं लेकिन उनसे एक्टिंग की उम्मीद कम और ग्लैमर की उम्मीद ज्यादा रहनी चाहिए और वही यहां हुआ है। छाया कदम और उपेंद्र लिमाय जैसे जानदार मराठी एक्टर भी कॉमेडी में अपना 100 % नहीं दे पाए हैं। वहीं कोरियोग्राफर और डायरेक्टर रेमो डिसूजा आपको फिल्म में सरप्राइज पैकेज के रूप में दिखेंगे। लेकिन एक्टिंग के मामले में वो फीके दिखाई दिए हैं। हालांकि उनका सिर्फ कैमियो ही है।
लेकिन कुल मिलाकर इस फिल्म को एक बार तो जरूर देखा जा सकता है और आप फन टाइम के लिए अपनी फैमिली के साथ भी सिनेमाघरों में जा सकते हैं।