Main Atal Hoon Review: पंकज त्रिपाठी ने दिखाया दम फिर भी अटल बिहारी वाजपेयी से रहे कम
भारत के दसवें प्रधानमंत्री, बीजेपी के कद्दावर नेता और कवि रह चुके अटल बिहारी वाजपेयी की बायोग्राफी फिल्म मैं अटल हू् 19 जनवरी को सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है। फिल्म में अटल बिहारी वाजपेयी का रोल पंकज त्रिपाठी ने किया है और पूरी फिल्म में वो छाए रहे हैं। फिल्म में अटल बिहारी वाजपेयी के बचपन से लेकर कारगिल युद्ध की जीत तक के पहलुओं को दिखाया गया है। तो क्या ये फिल्म दर्शकों के दिल में उतर पाएगी या नहीं, आइए जानते हैं।
फिल्म की कहानी?
फिल्म की कहानी बिल्कुल साफ है। अटल बिहारी के बचपन से शुरुआत होती है और फिर उनके कॉलेज राजनीति में उतरने का सफर दिखाया जाता है। इस बीच वो राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से भी जुड़े होते हैं। ये तो सभी जानते हैं कि लोग अटल बिहारी ने शादी नहीं की थी लेकिन उनको भी कॉलेज के दिनों में प्रेम हुआ था, वो इस फिल्म में बखूबी दिखाया गया है। इसके बाद उनके लखनऊ जाने और आरएसएस को अपने आप को समर्पित करने की कहानी शुरू होती है।
वो अपनी कविताओं से श्यामा प्रसाद मुखर्जी के दिल में भी उतर जाते हैं और श्यामा प्रसाद नई पार्टी बनाने के लिए आ जाते हैं। वाजपेयी भी उनके साथ पार्टी का काम संभालते हैं और फिर पूरी राजनीति में उतर जाते हैं। इसके बाद जो सबको पता है कि कैसे राजनीति घटनाक्रम हुए। पार्टियों की सरकार बनी और गिरी। फिर वाजपेयी प्रधानमंत्री बने और वो प्रमाणु परिक्षण और कारगिल की वजह से हाईलाइट हुए, ये सब फिल्म में दिखाया गया है।
फिल्म में क्या अच्छा?
मैं अटल हूं फिल्म एक पीरियड ड्रामा फिल्म ही है और इसका सेट काफी अच्छा है जो आपको पूरी तरह से बीते जमाने में ले जाता है। हर एक चीज का बारीकी से ध्यान रखा गया है। डायरेक्टर रवि जाधव ने हर एक कैरेक्टर को भी हूबाहू वैसे दिखाने की कोशिश की है जैसे कि असल में वो व्यक्ति हुआ करते थे। अब जैसे पंकज त्रिपाठी को हूबाहू अटल बिहारी वाजपेयी का लुक देने की कोशिश की गई है। आडवाणी भी बुढ़ापे में ठीक वैसे ही लगते थे जैसे कि इस फिल्म में दिखाया गया है। सुषमा स्वराज का कैरेक्टर भी मिलता है।
पंकज त्रिपाठी ने पूरी तरह से अटल बिहारी वाजपेयी के कैरेक्टर में उतरने की कोशिश की है। फिल्म खत्म होने से पहले जब उनका संसद में सरकार के गिरने का सीन दिखाया जाता है तो वहां पर पंकज त्रिपाठी ने काफी अच्छी परफोर्मेंस दी है।
कहां रह गई कमी?
रवि जाधव ने इस बायोग्राफिकल ड्रामा को देशभक्ति फिल्म ज्यादा बनाने की कोशिश कर दी है। किसी भी सिचुएशन को दिखाने और उसमे जज्बा भरने के लिए बैकग्राउंड म्यूजिक काफी ज्यादा कर दिया गया है, जिससे कहीं कहीं पर वो जबरदस्ती का शोर लगता है। पंकज त्रिपाठी कहीं कहीं पर अटल बिहारी बनने के चक्कर में बिना जरूरत के भी सिर और हाथ हिलाते नजर आते हैं। जिसकी जरूरत वहा नहीं थी।
कई कैरेक्टर्स की आवाज आपको तीखी और चुभने वाली लग सकती है। जैसे सुषमा स्वराज और कारगिल पर दिखाई गई रिपोर्टर। लालकृष्ण आडवाणी की आवाज ऐसे लग रही थी कि जैसे कोई हॉलीवुड फिल्म का वॉइस ओवर आर्टिस्ट हो। फिल्म का फर्स्ट हाफ राष्ट्रीय स्वंय सेवा संघ के साथ ही बीत जाता है और सेकेंड हाफ के पॉलिटिकल इवेंट्स या वाजपेयी की जिंदगी के पॉलिटिकल करियर को काफी तेजी के साथ दिखा दिया गया है। आखिरी में जिस तरह फिल्म को खत्म किया गया है, उससे भी आपको निराशा ही हाथ लगेगी।
आप अगर वाकई अटल बिहारी वाजपेयी की जिंदगी को खंगालना चाहें तो फिल्म से ज्यादा दिलचस्प किस्से आपको इंटरनेट पर मिल जाएंगे। अटल बिहारी वाजपेयी की खुद की बोली हुईं कविताएं और भाषण जो यूट्यूब पर हैं, वो इस फिल्म से ज्यादा सही लगेंगे।